कृषि कानून से पहले भी बैकफुट पर आ चुकी है सरकार, विपक्ष ने बताया किसानों की जीत..

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केंद्र सरकार ने उन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है, जिसे लेकर लंबे समय से किसान आंदोलन चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के बाद से प्रदर्शन कर रहे किसान खुशी मना रहे हैं। हालांकि किसान नेता राकेश टिकैत ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसानों का आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा। अब देखना है कि प्रदर्शन कर रहे किसान क्या फैसला लेते हैं। कानून वापस लेने के फैसले के बाद इसे प्रदर्शन कर रहे किसानों की जीत माना जा रहा है। केंद्र सरकार के बैकफुट पर आने के बाद अब लोगों का सवाल है कि क्या पहले भी कभी ऐसा हुआ है कि सरकार को कोई कानून वापस लिया हो। ऐसे में जानते हैं क्या पहले ऐसा हुआ है और अगर ऐसा हुआ है तो यह कब कब हुआ है…

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भूमि अधिग्रहण कानून पर झेलनी पड़ी थी फजीहत
इससे पहले साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को फजीहत झेलनी पड़ी थी। ये मौका था भूमि अधिग्रहण कानून का और उस वक्त अंत में विधेयक वापस लेना पड़ा था। यह विधेयक भी किसानों से जुड़ा हुआ था और उस वक्त भी किसानों में उबाल था और पूरे देश में विधेयक को लेकर विरोध किया गया था। उस दौरान भी पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में यह कहना पड़ा कि वे भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस ले रहे हैं। बता दें कि केंद्र सरकार ने संशोधित भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर चार बार अध्यादेश जारी किए थे, लेकिन वह संसद से बिल को मंजूरी नहीं दिला पाए। अंत में यह वापस भी लेना पड़ा।

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दरअसल 2014 में सरकार में आते ही नरेंद्र मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 में संशोधन को लेकर एक अध्यादेश लेकर लाई थी। अध्यादेश के जरिये सरकार ने 2013 के कानून में कई बदलाव किए थे। यह अधिनियम यूपीए सरकार का था जो 1 जनवरी 2014 से प्रभावी हो चुका था। यह अधिनियम भूमि अधिग्रहण कानून, 1994 के बदले में था जो कई वर्षों से चला आ रहा था। यूपीए का कानून लागू होने के लगभग एक साल बाद यानी कि 31 दिसंबर 2014 को एनडीए सरकार ने इस कानून में संशोधन का अध्यादेश पारित कर दिया था।

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यूपीए सरकार ने भी वापस लिया था अध्यादेश
प्रधानमंत्री मोदी सरकार से पहले कांग्रेस सरकार भी ऐसा कर चुकी है। यूपीए सरकार ने अपराधी ठहराए गए सांसदों और विधायकों को बचाने वाले विवादास्पद अध्यादेश को वापस ले लिया था। यह अध्यादेश जनप्रतिनिधि कानून से जुड़ा था जिसमें एक अध्यादेश और एक विधेयक था। यूपीए सरकार ने ऐलान किया कि विरोध को देखते हुए सरकार दोनों को वापस ले रही है। यूपीए सरकार के अध्यादेश में साफ था कि दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसद या विधायक कोर्ट में अपील करने तक अपने पदों पर बने रह सकते हैं। विरोध को देखते हुए राहुल गांधी ने इस अध्यादेश को बकवास करार दिया था और सरकार को अंत में इसे वापस लेना पड़ा।

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क्या सरकार अब MSP पर कानून भी बनाएगी?
नरेंद्र मोदी सरकार ने 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा तो कर दी है। लेकिन एक सवाल यह है कि क्या सरकार एमएसपी पर कानून भी बनाएगी। हालांकि सरकार ने एमएसपी पर एक समिति बनाने को कहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन के केंद्र में शामिल तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। उनके मुताबिक इसकी प्रक्रिया इस महीने के अंत में शुरू होगी। लेकिन आंदोलन कर रहे किसान और किसान संगठन 3 काननों को वापस लेने के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की भी मांग कर रहे हैं। देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक कमेटी गठित की जाएगी। किसी फसल की एमएसपी वह किमत होती है, जिसके नीचे उस फसल की खरीद नहीं हो सकती। एमएसपी सरकार तय करती है। लेकिन इसको लेकर अभी कोई कानून नहीं है. किसान संगठनों की मांग है कि इसपर कानून बनाकर एमएसपी से कम पर खरीद को अपराध बनाया जाए।

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विपक्ष की ये रही प्रतिक्रिया
करीब दो साल तक तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांग आज जाकर पूरी हुई है। इसके लिए सरकार और किसानों के बीच 11 बार वार्ता भी हुई लेकिन सहमति नहीं बन सकी। आज इन्हें वापस लिए जाने के फैसले पर विपक्ष की प्रमुख पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सर झुका दिया। अन्याय के खिलाफ ये जीत मुबारक हो। जय हिंद, जय हिंद का किसान।’ उन्होंने अपने ट्वीट के साथ 14 जनवरी का एक वीडियो क्लिप भी साझा किया है जिसमें उन्होंने किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा था कि उनकी शब्दों को मार्क कर लें, सरकार ये बिल वापस जरूर लेगी।

किसानों का आंदोलन अभी जारी रहेगा
तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि यह आंदोलन वापस नहीं होगा। टिकैत ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा और उस दिन तक का इंतजार किया जाएगा जब तक इन्हें संसद में रद्द नहीं कर दिया जाता है। इसके अलावा टिकैत ने कहा कि सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे।

किसान बिल 2020 क्या है? 
22 सितम्बर 2020 को केंद्र सरकार की ओर से कृषि व्यवस्था से जुड़े तीन नए विधेयक लागू किये गए थे, इन विधेयकों को ही किसान बिल 2020 कहा जाता है। इन तीनों बड़े कृषि विधेयकों को अब राष्ट्रपति की सहमति के बाद, पूरे देश में लागू किया जा चूका था जो आज प्रधानमंत्री मोदी ने वापस ले लिए हैं। ये कृषि सुधार विधेयक कुछ इस प्रकार थे..
1- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, जो कि कृषि बाजारों से सम्बंधित है।
2- किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, जो कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से सम्बंधित है।
3- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, यह खाद्य पदार्थों के भण्डारण से सम्बंधित है।

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