उत्तराखंड के चुनावी रण में महिला योद्धाओं की कितनी हिस्सेदारी..
उत्तराखंडः यह सभी जानते हैं कि देवभूमि की महिलाओं ने विकट चुनौतियों का मुकाबला कर कई जन आंदोलनों को मुकाम तक पहुंचाया है। बात चाहे स्वतंत्रता आंदोलन की हो या राज्य गठन के आंदोलन की प्रदेश की महिलाओं ने हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज की है। महिलाओं ने अपने संघर्ष से इन आंदोलन को कामयाबी दिलाई है। इसके अलावा प्रदेश में पेड़ को कटाने को रोकने के लिए चिपको आंदोलन और नशे बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ भी महिलाओं ने आवाज को बुलंद किया। उत्तराखंडी महिलाएं अपने सीमित दायरे और सामाजिक रूढ़िवादिता के बावजूद हर समस्या के समाधान के लिए लड़ाई लड़ने में अग्रिम पंक्ति में रही हैं। उन्होंने अपने आंचल को हमेशा ही इंकलाबी परचम बना दिया। लेकिन वीर महिलाओं वाले इस प्रदेश में महिलाओं को सियासत में वाजिब हिस्सेदारी नहीं मिल पाई हैं, मातृशक्ति की यह आवाज अलग राज्य की विधानसभाओं में दबकर रह गई।
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महिलाओं को नहीं मिली सियासत में वाजिब हिस्सेदारी
उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर महिलाओं ने आगे रहते हुए सड़कों पर आंदोलन चलाया। लेकिन मातृशक्ति की यह आवाज अलग राज्य की विधानसभाओं में दबकर रह गई। महिला प्रत्याशी की याद सियासी दलों को उपचुनावों में दिवंगत नेता के नाम पर सहानुभूति वोट जुटाने के समय ही आती है। सामान्य निर्वाचन में कभी महिला विधायकों की संख्या दस प्रतिशत से ऊपर नहीं पहुंच पाई है। उत्तराखंड विधानसभा में निर्वाचित विधायकों की संख्या 70 है। 2017 के निर्वाचन के बाद महज पांच महिलाएं ही सदन में पहुंच पाई। बाद में हुए उपचुनावों में दो और महिलाएं निर्वाचित हुई। इस तरह पहली बार सदन में महिला विधायकों की संख्या दस प्रतिशत तक पहुंच पाई। हालांकि डॉ. इंदिरा हृदयेश के निधन से फिर महिला विधायकों की संख्या वर्तमान में छह ही रह गई है। इसी तरह 2012 में भी पांच महिलाएं ही सदन के लिए निर्वाचित हो पाई थी, जबकि उससे पहले के दो चुनावों में कुल चार-चार महिला विधायक ही निर्वाचित हो पाई थी। वर्तमान में प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या बड़ी तादाद में है, जो कुल मतदाता संख्या के करीब 48 प्रतिशत है। लेकिन महिला विधायकों की संख्या कभी भी दहाई की संख्या तक नहीं पहुंच पाई है।
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क्या कांग्रेस से 40 फीसदी महिलाओं को टिकट मिलेगा?
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने के ऐलान से उत्तर प्रदेश में आधी आबादी की बांछें खिल गई हैं। लेकिन यूपी में महिलाओं के चेहरों को मुस्कान देने वाली यह घोषणा उत्तराखंड की महिला कांग्रेसियों के लिए महज एक उम्मीद से ज्यादा कुछ नहीं। स्थिति यह है कि उत्तराखंड में प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष का ही टिकट खतरे में दिखाई दे रहा है। यही नहीं 2017 में जिन महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया गया था, उनके टिकट पर भी संकट साफ महसूस किया जा सकता है। सबसे पहले जानिए कि 2017 में उत्तराखंड कांग्रेस ने टिकट को लेकर महिलाओं को कितनी तवज्जो दी और क्यों इस बार उन विधानसभा सीटों पर महिलाओं के टिकट कटने का अंदेशा है।
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बीजेपी में भी महिला दावेदारों की भरमार
एक ओर बीजेपी चुनाव की तैयारियों में जुटी है तो वहीं दूसरी ओर अब बीजेपी में भी महिलाएं बड़ी संख्या में निकल कर टिकट की दावेदारी पेश कर रही हैं। विधानसभा के चुनाव में इस बार महिलाएं ज्यादा दमदारी के साथ दावेदारी करती दिखाई दे रही हैं। भाजपा में कुछ महिलाओं ने दिग्गज नेताओं की सीट पर दावेदारी करने का साहस दिखाया है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पांच सीटों पर महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। इस बार महिलाएं पिछले चुनाव की तुलना में अधिक सीटों पर टिकट की उम्मीद कर रही हैं। कांग्रेस की तरह भाजपा ने भी अभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। इसीलिए दोनों ही दलों में महिला दावेदार भी टिकट के लिए पूरी कोशिश में जुटी हैं। महिलाएं भी चाहती हैं कि इस बार उन्हें उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव में कम से कम 50 फीसदी हिस्सेदारी दी जाए। कहने को तो भाजपा भी इस पर काम कर रही है, पर देखना होगा की क्या भाजपा अपनी महिला कार्यकर्ताओं को टिकट देता हैं या उत्तराखंड़ की बड़ी तादाद वाली मतदाताएं महिलाएं इस बार भी सिर्फ पार्टी के लिए एक वोट बैंक बन कर रह जाती हैं।
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आप में टिकट की दौड़ में महिलाएं पीछे
आम आदमी पार्टी में टिकट की दौड़ में महिलाएं पीछे हैं। अब तक पार्टी ने 51 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इसमें तीन सीटों पर पार्टी ने महिलाओं को टिकट दिया है। ज्वालापुर, खानपुर और राजपुर रोड सीट पर महिलाओं को टिकट दिया है। उत्तराखंड में आधी आबादी महिलाओं की है। महिला वोट बैंक को साधने के लिए आप नेता व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल महिलाओं को प्रति माह एक हजार रुपये देने का एलान कर चुके हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव में टिकटों की दौड़ में महिलाएं पीछे हैं। महिलाओं को टिकट देने की स्थिति यही रही तो 70 सीटों में से पांच से छह सीटों पर महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में होगी। केजरीवाल ने सत्ता में आने के बाद 18 साल से अधिक आयु की महिलाओं को प्रति माह एक हजार रुपए देने की गारंटी दी है लेकिन चुनाव में महिलाओं को प्रतिनिधित्व कम है।
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