आखिर क्या है सेंगोल? जिसकी पूरे देश में हो रही चर्चा..
28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं। इसकी तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं। इस बीच अचानक सेंगोल शब्द खासा चर्चाओं का विषय बना हुआ है। सोशल मीडिया पर ‘सेंगोल’ (Sengol) चर्चा का विषय बना हुआ है। 28 मई को भारत के नए संसद भवन के उद्घाटन अवसर पर इसे स्थापित किया जाएगा। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर सेंगोल है क्या? नई संसद के साथ एक शब्द और चर्चा में है सेंगोल…. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर सेंगोल है क्या? तो आइए जानते हैं कि सेंगोल किसे कहते हैं, सेंगोल का इतिहास क्या है और क्यों इसे इतना महत्व दिया जा रहा है..
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नए संसद भवन में स्थापित होगा सेंगोल
नए सांसद भवन में ऐतिहासिक परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए यहां सेंगोल स्थापित किया जाएगा। दरअसल, सेंगोल को स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रतीक माना जाता है। सेंगोल को राजदंड भी कहा जाता है। नए संसद भवन में सेंगोल स्पीकर की सीट के पास स्थापित किया जाएगा।
क्या है सेंगोल का इतिहास?
सेंगोल की प्रथा को आजादी से जोड़कर देखा जाता है। यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था। सेंगोल तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से बना हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, निष्ठा और सच्चाई। सेंगोल राजदंड प्राचीनकाल में भारतीय राजाओं की शक्ति और अधिकार का प्रतीक माना जाता था।
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जवाहरलाल नेहरु ने स्वीकारा था सेंगोल
इतिहासकार बताते हैं कि 14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से सेंगोल को स्वीकार किया था। यह भारत पर अंग्रेजों की सत्ता खत्म होने और लोगों को सत्ता सौंपने का संकेत था। इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में भी रखा गया था। सेंगोल जिसे दिया जाता है उससे निष्पक्ष शासन करने की उम्मीद की जाती है। भारत की स्वतंत्रता के वक्त इस पवित्र सेंगोल को प्राप्त करने की घटना को दुनियाभर के अखबारों ने कवर किया था।
तमिल चोल साम्राज्य से जुड़ा है सेंगोल
इतिहासकार आगे बताते हैं कि चोल काल के दौरान राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का खास महत्व था। भाले की तरह दिखने वाले सेंगोल पर शानदार नक्काशी और सजावट होती थी। इसके साथ ही सेंगोल को अधिकार व शक्ति का एक प्रतीक माना जाता था, जो एक सत्ता परिवर्तन या हस्तांतरण के दौरान एक शासक दूसरे शासक को देता था।
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कैसे चर्चा में आया सेंगोल
एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक कि इस सेंगोल को खोजने की तलाश प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी गई एक चिट्ठी से हुई। ये चिट्ठी जानी मानी क्लासिकल डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने लिखी थी। रिपोर्ट में संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि इस चिट्ठी में पद्मा सुब्रमण्यम ने तमिल पत्रिका ‘तुगलक’ में छपे एक आर्टिकल का हवाला दिया गया। इसमें 1947 के उस समारोह की जानकारी थी, जिसमें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल सौंपा गया था। ये आर्टिकल मई 2021 में छपा था। पद्मा सुब्रमण्यम ने उसी साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सेंगोल से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक करने की अपील की थी।
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