परंपरा: उत्तराखंड कई लोकनृत्यों का भंडार है, लेकिन पांडव नृत्य का है अपना अलग महत्व..

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उत्तरकाशी: विकासखंड भटवाड़ी के अंतर्गत ग्राम सभा कुरोली में पारंपरिक पांडव लोक नृत्य के समापन पर विकासखंड भटवाड़ी की प्रमुख श्रीमती विनीता रावत एवं गंगोत्री विधानसभा के भाजपा नेता पूर्व जिला संयोजक जगमोहन सिंह रावत एवं विकासखंड भटवाड़ी के कनिष्ठ प्रमुख मनोज पवार जी रहे मौजूद रहे। जहां ग्रामीणों के द्वारा फूल मालाओं से अतिथियों का स्वागत किया गया और अतिथियों ने सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया। पांडव नृत्य समापन दिवस पर आसपास के गांव से भी काफी संख्या में लोग आशीर्वाद लेने पहुंचे। पांडव नृत्य देवभूमि उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य के रूप में जाना जाता है जो अपने गंगा घाटी में आजकल लगभग संपूर्ण क्षेत्र में अपनी रीति-रिवाजों की तहत किया जाता है।

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वैसे तो उत्तराखण्ड में तमाम लोकनृत्यों का भण्डार है लेकिन पांडव नृत्य देवभूमि उत्तराखण्ड का एक प्रमुख पारम्परिक लोकनृत्य है। यह नृत्य महाभारत में पांच पांडवों के जीवन से सम्बंधित है। पांडव नृत्य के बारे में हर वो व्यक्ति जानता है जिसने अपना जीवन उत्तराखंड की सुंदर वादियों, अनेको रीति रिवाजों, सुंदर परम्पराओं के बीच बिताया हो। बताते चले की पांडव लोकनृत्य गढ़वाल क्षेत्र में होने वाला खास नृत्य है। मान्यता है कि पांडव यहीं से स्वार्गारोहणी के लिए गए थे। इसी कारण उत्तराखंड में पांडव पूजन की विशेष परंपरा है।

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बताया जाता है कि स्वर्ग जाते समय पांडव अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होकर स्वर्गारोहणी तक गए। जहां-जहां से पांडव गुजरे, उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है। प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी तक गंगा घाटी में पांडव नृत्य का आयोजन होता है। इसी वजह से उत्तराखंड को पांडवों की धरा भी कहा जाता है। इसमें लोग वाद्य यंत्रों की थाप और धुनों पर नृत्य करते हैं। मुख्यतः जिन स्थानों पर पांडव अस्त्र छोड़ गए थे वहां पांडव नृत्य का आयोजन होता है। उत्तराखण्ड में पांडव नृत्य का पूरे एक माह आयोजन होता है। गढ़वाल क्षेत्र में नवंम्बर और दिसंबर के समय खेती का काम पूरा हो चुका होता है और गांव वाले इस खाली समय में पांडव नृत्य के आयोजन के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाते हैं।

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