उत्तराखंडः विकास से कोसों दूर मनणामाई तीर्थ, यहां हुआ था महिषासुर राक्षस का वध..

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Hillvani-Manyamai-Uttarakhand

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ऊखीमठ। लक्ष्मण नेगीः मदमहेश्वर घाटी के रासी गाँव से लगभग 39 किमी दूर सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य व चौखम्बा की तलहटी में बसा मनणामाई तीर्थ आज भी विकास से कोसों दूर है। रासी से मनणामाई तीर्थ के भूभाग को प्रकृति ने अपने अनोखे वैभवों का भरपूर दुलार तो दिया है मगर प्रचार-प्रसार के अभाव में मनणामाई तीर्थ व उसके आंचल में बसा सुनहरा रुपहली विस्तार दुनिया की नजरों से ओझल बना हुआ है। यदि प्रदेश सरकार की पहल पर वन विभाग व पर्यटन विभाग मनणामाई तीर्थ के चहुंमुखी विकास की पहल करता है तो रासी-मनणामाई, चौमासी-खाम-मनणामाई पैदल ट्रैक विकसित होने के साथ-साथ मदमहेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी में तीर्थाटन-पर्यटन व्यवसाय में भारी इजाफा हो सकता है तथा रासी व चौमासी गाँव में होम स्टे योजना को बढ़ावा मिलने से स्थानीय युवाओं के सन्मुख स्वरोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं।

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वेद पुराणों में वर्णित है कि महिषासुर राक्षस भगवती काली के भय से हिमालय की ओर अग्रसर हो गया क्योंकि उस महिषासुर राक्षस को शिवजी का वरदान था कि यदि तू युद्ध के समय हिमालय पर्वत को स्पर्श करेगा तो अमर हो जायेगा। महिषासुर राक्षस के हिमालय की तरफ आगमन का पता जब भगवती काली को लगा तो भगवती काली ने अपने योगमाया से उस भूभाग को दलदल में तब्दील कर दिया तथा महिषासुर राक्षस दलदल में फस गया। समय रहते भगवती काली महिषासुर राक्षस के पास पहुंची तथा महिषासुर का वध कर जगत कल्याण के लिए मदानी नदी के किनारे बसे मनणा के बुग्यालों में तपस्यारत हो गयी। तब से यह धाम मनणामाई तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ। मनणामाई को भेड़ पालकों की अराध्य देवी माना जाता है। पूर्व में जब क्यूजा घाटी के भेड़ पालक अश्विन माह में बुग्यालों से गाँव लौटते थे तो मनणामाई की मूर्ति को साथ लेकर आते थे मगर धीरे-धीरे भेड़ पालन व्यवसाय में कमी आयी तो भेड़ पालकों ने मनणामाई की मूर्ति को राकेश्वरी मन्दिर रासी में स्थापित करना उचित समझा।

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युगों से चली आ रही परम्परा के अनुसार आज भी रासी गाँव के ग्रामीणों के अथक प्रयासों से सावन माह में रासी गाँव से भगवती मनणामाई की लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है तथा मनणा तीर्थ पहुंचने पर भगवती मनणामाई की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस मनणामाई लोक जात यात्रा में ग्रामीणों द्वारा अनेक पौराणिक परम्पराओं का निर्वहन आज भी किया जाता है। रासी गाँव के शिक्षाविद भगवती प्रसाद भटट् बताते है कि मनणामाई तीर्थ में पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को मनौवाछित फल की प्राप्ति होती है। मनणा का अर्थ है कि मन की कामना पूर्ण होना। उन्होंने बताया कि मनणामाई तीर्थ में भगवती के भक्त को अपार आनन्द की अनुभूति होती है। हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि सनियारा, पटूडी, शीला समुद्र, कुल्वाणी सहित विभिन्न यात्रा पड़ावों को पार करने के बाद मनणामाई तीर्थ पहुंचा जा सकता है मगर पटूडी से मनणामाई तीर्थ तक पैदल मार्ग बहुत ही विकट है।

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जिला पंचायत सदस्य विनोद राणा ने बताया कि रासी गाँव से मनणामाई तीर्थ के भूभाग को प्रकृति ने नव नवेली दुल्हन की तरह सजाया व संवारा है इस भूभाग में भटके मन को अपार शान्ति मिलती है। मन्दिर समिति के पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत, राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि बरसात के समय शीला समुन्द्र से मनणामाई तीर्थ के भूभाग में अनेक प्रजाति के पुष्प खिलने से ऐसा आभास होता है कि इन्द्र देव के फूलों का बगीचा इसी धरती पर उतर आया हो। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि यदि प्रदेश सरकार की पहल पर पर्यटन व वन विभाग मनणामाई तीर्थ सहित रासी-मनणामाई तथा चौमासी-खाम-मनणामाई पैदल ट्रैक को विकसित करने की पहल करता है तो दोनों घाटियों के तीर्थाटन, पर्यटन व्यवसाय में भारी इजाफा हो सकता है तथा विश्व मानचित्र पर मनणामाई तीर्थ अंकित हो सकता है।

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