बारहनाजा: स्थिरता के बारह बीज- विजय जड़धारी के “बीज बचाओ आंदोलन” का सदा आभारी रहेगा उत्तराखंड..
बड़े शहरों में रहते हुए हमें शायद इस बात का कोई अंदाजा न हो कि ‘बीज’ हमारे लिए कितने जरूरी होते हैं। मगर, उत्तराखंड टिहरी गढ़वाल में रहने वाले विजय जड़धारी पहाड़ के बीजों की अहमियत को अच्छे से जानते और समझते हैं। यही कारण है कि कई दशकों से विजय जड़धारी ने ‘बीजों के संरक्षण’ के लिए आंदोलन छेड़ हुआ है। बीजों को बचाने के लिए विजय जड़धारी ने 80 के दशक में ‘बीज बचाओ आंदोलन’ शुरू किया था, जोकि अब तक जारी है। ऐसे में जानना दिलचस्प होगा कि विजय जड़धारी का ‘बीज बचाओ आंदोलन’ क्या है और वो कैसे पहाड़ के बीज बचाने में जुटे हुए हैं।
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आखिर क्यो पड़ी ‘बीज बचाओ आंदोलन’ ज़रूरत
यह बात है 1980 के दशक की। उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के जड़धार गांव के रहने वाले विजय जड़धारी को इस बात का एहसास हुआ कि वक्त के साथ-साथ उत्तराखंड के किसान अपनी प्राचीन फसलों को खोते जा रहे हैं। देश प्रदेश मॉडर्न हो रहा था और हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा था। इसके चलते प्राचीन काल से इस्तेमाल होते आ रहे बीजों का इस्तेमाल खत्म होने लगा था। विजय जड़धारी को इस बात का डर था कि कहीं आने वाले वक्त में हमारे पास अपने असली प्राचीन बीज ही न बचें। इस बात ने उन्हें और उनके कुछ दोस्तों को इतने गहन चिंतन में डाल दिया कि उन्होंने इसका कोई रास्ता खोजना शुरू कर दिया। इसके चलते ही उन्होंने फैसला किया कि वह एक आंदोलन शुरू करें, ताकि भविष्य में हो सकने वाली इस बड़ी परेशानी को रोका जा सके।
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पहाड़ी बीजों को वह संरक्षित करते गए
इस सोच के साथ ही साल 1986 में विजय जड़धारी ने ‘बीज बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत की उन्होंने पहले अपने आस-पास के गांव में जा कर लोगों को बीज की अहमियत बताने की कोशिश की। उन्होंने किसानों को समझाया कि बीजों का संरक्षण कितना जरूरी है। हालांकि, शुरुआती दिनों में लोगों ने उनकी बातों को महज एक मज़ाक समझा लेकिन विजय जड़धारी रुके नहीं और उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा। विजय जड़धारी ने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मुहीम को जारी रखा और जितने बीज वह संरक्षित कर सकते थे, वो करते गए। इतना ही नहीं उन्होंने किसानों को परंपरागत तरीके से एक ही खेत पर समय के अनुसार अलग-अलग फसल उगाना भी सिखाया। अपने कई सालों के इस संघर्ष में वह कई किसानों की दहलीज पर पहुंचे।
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लोगों को फिर से बारहनाजा तकनीक सिखाई
किसान उनकी बात इसलिए नहीं मानते थे, क्योंकि जो फसल वो उगाते थे उसे उगाने में बहुत मेहनत लगती थी। वहीं दूसरी ओर सरकार लोगों को नए किस्म के बीज और बहुत ही सस्ते दाम पर उर्वरक दे रही थी। इससे फसल उगाना थोड़ा आसान हो गया था, जिसे किसान बहुत पसंद कर रहे थे। ऐसे में विजय ने घर-घर जा कर लोगों को बारहनाजा तकनीक सिखाई। यह प्राचीन काल में उत्तराखंड के किसानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक तकनीक थी, जिसके जरिए वह एक ही ज़मीन पर अपने इस्तेमाल में आने वाली हर फसल उगाते थे। इतना ही नहीं इसमें कई फसलें ऐसी भी थीं, जो प्राकृतिक आपदाओं के समय भी उगाई जा सकती थी। 80 के दशक में यह तकनीक धीरे-धीरे विलीन हो रही थी इसलिए विजय ने इसे भी सबको बताना शुरू किया।
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कई लोग विजय जड़धारी के खिलाफ खड़े हो गए
साथ ही साथ उन्होंने सैकड़ों प्राचीन बीजों का सफल संरक्षण भी कर लिया। पूरे प्रदेश में भ्रमण कर उन्होंने सैकड़ों बीजों की प्रजातियों को संरक्षित किया है। विजय जड़धारी का यह संघर्ष आसान नहीं था। समय-समय पर कई लोग उनके खिलाफ खड़े हुए। कई बार उन पर किसानों को बहकाने का इलज़ाम लगाया गया। लोगों ने कहा कि वह नहीं चाहते हैं कि किसान प्रगति की ओर बढ़ें। हालांकि, वक्त ने खुद विजय जड़धारी की सच्चाई लोगों के सामने ला कर रख दी। उत्तराखंड में जब-जब सूखा आया, या भारी बारिश हुई। वहां सिर्फ प्राचीन फसल ही उग पाई। बाकी कमर्शियल फसलें जैसे सोयाबीन इत्यादि यहां नहीं की जा सकी, हुई भी तो बेहद कम। इन समस्याओं के बाद किसानों को समझ आया कि विजय जड़धारी का कहना ठीक है। जिस खेत में वह सिर्फ एक फसल उगा रहे हैं, वहां पर वह प्राचीन तरीकों से कई फसलें उगाकर अपने परिवार का पेट भी भर सकते थे।
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‘जीरो बजट’ खेती से कैसे कमाया नाम?
सालों की मेहनत के बाद विजय की कोशिश अब रंग लाने लगी है। साल 2020 में हर कोई विजय जड़धारी के किए गए एक प्रयोग से हैरान हो गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि साल 2020 में विजय ने बिना खेत जोते उत्तराखंड के अपने खेत में गेहूं की फसल तैयार करके दिखा दी। इसपर विश्वास करना बहुत मुश्किल है मगर विजय ने इस असंभव काम को करके दिखाया। अपने इस प्रयोग को उन्होंने ‘जीरो बजट खेती’ का नाम दिया। विजय ने बताया कि जब नवंबर 2019 में उन्होंने धान की कटाई की तो खेत में खाली हुई जगह पर उन्होंने गेहूं बो दिया और धान की पराली से उसे ढक दिया। जैसे ही धान की पराली सूख गई वैसे ही गेहूं अंकुरित होने शुरू हो गए। देखते ही देखते कुछ समय में उनके गेहूं कटाई के लायक हो गए। अब विजय जड़धारी अन्य किसानों को भी अपनी यह तकनीक सिखाना चाहते हैं।
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विजय जड़धारी को मिल चुके हैं सैकड़ों पुरस्कार
खेती की क्षेत्र में किए गए ऐसे ही कामों के लिए विजय को साल 2009 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से नवाजा गया। साथ ही उनकों बीज बचाओ और कृषि के क्षेत्र में अभी तक कही पुरस्कार मिला चुके हैं। जब हम उनके घर पर गए तो एक कमरा उनके पुरस्कारों से भरा हुआ है। हालांकि, उनके द्वारा किए गए काम का मोल किसी पुरस्कार से नहीं लगाया जा सकता है। बिना किसी निजी स्वार्थ के जिस तरह से विजय जड़धारी ने सालों तक यह काम किया है वह वाकई सराहनीय है।
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विजय जड़धारी का गांव जड़धार
विजय जड़धारी का गांव जड़धार समुद्र तल से 1383 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऋषिकेश गंगोत्री हाईवे पर चम्बा शहर से 10 किलोमीटर पहले नागणी हेंवल घाटी की तरफ सड़क कटती है। इस सड़क पर करीब साढ़े 4 किमी की दूरी पर स्थित है। यह गांव बमुंड पट्टी में पड़ता है। जड़धार गांव में करीब 450 परिवार रहते है और यह गांव करीब 8 किमी क्षेत्र में फैला है। ग्राम पंचायत जड़धार में छोटे बड़े मिलाकर 28 तोक हैं। स्युलखाला नदी के जड़ से लेकर धार तक बसे जड़धार गांव में आज भी मोटे अनाजों की खेती की जाती है। विजय जड़धारी पिछले 3 दशक से हाइब्रिड बीजों के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए है।
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