Success of Operation Silkyara: बदलते उत्तराखंड का संदेश और सबक.. सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन बन गया सिलक्यारा, देश के ये अभियान भी रहे चर्चित..
Success of Operation Silkyara: 17 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद 41 मजदूरों को सफलतापूर्वक बाहर निकालने वाला ऑपरेशन सिलक्यारा किसी सुरंग या खदान में फंसे मजदूरों को निकालने वाला देश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन बना गया है। जिसे देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने दिन-रात एक कर इस अभियान को मकाम तक पहुंचाया। वहीं सिलक्यारा तक टनल में फंसे 41 मजदूरों के सुरक्षित बाहर निकलने की दुआएं कबूल हुईं। ऑपरेशन सिलक्यारा के तहत जब आखिरी मजदूर ने टनल से बाहर आकर खुली हवा में सांस ली तो देश और दुनिया में बदलते उत्तराखंड का संदेश भी गया। सिलक्यारा तक टनल में फंसे 41 मजदूरों के सुरक्षित बाहर निकलने की दुआएं कबूल हुईं। ऑपरेशन सिलक्यारा के तहत जब आखिरी मजदूर ने टनल से बाहर आकर खुली हवा में सांस ली तो देश और दुनिया में बदलते उत्तराखंड का संदेश भी गया। इस हादसे के बाद उत्तराखंड ही नहीं, देशभर में सुरंग निर्माण के नीति-नियोजन को सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल अलग ढंग से देखा जाना तय है।
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देश में यह अभियान चर्चा में रहे। Success of Operation Silkyara
पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला खदानः इससे पहले वर्ष 1989 में पश्चिमी बंगाल की रानीगंज कोयला खदान से दो दिन चले अभियान के बाद 65 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था। 13 नवंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के महाबीर कोल्यारी रानीगंज कोयला खदान जलमग्न हो गई थी। इसमें 65 मजदूर फंस गए थे। इनको सुरक्षित बाहर निकालने के लिए खनन इंजीनियर जसवंत गिल के नेतृत्व में टीम बनाई गईं। उन्होंने सात फीट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को पानी से भरी खदान में भेजने के लिए नया बोरहॉल बनाने का आइडिया दिया। दो दिन के ऑपरेशन के बाद आखिरकार सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था। उस अभियान में गिल लोगों को बचाने के लिए खुद एक स्टील कैप्सूल के माध्यम से खदान के भीतर गए थे।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हल्ढेरी गांवः कुछ ऐसा ही एक अभियान वर्ष 2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हल्ढेरी गांव में हुआ था, जहां एक पांच साल का बच्चा प्रिंस बोरवेल में गिर गया था। करीब 50 घंटे की कड़ी जद्दोजहद के बाद बचाव दलों ने बच्चे को बाहर निकालने में कामयाबी पाई थी। इस अभियान में बराबर के ही अन्य बोरवेल को तीन फीट व्यास के लोहे के पाइप के माध्यम से जोड़कर बच्चे को बाहर निकाला गया था।
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विदेशी धरती पर ये अभियान रहे चर्चित। Success of Operation Silkyara
थाई गुफा अभियान: 23 जून 2018 को थाईलैंड की थाम लुआंग गुफा में वाइल्ड बोअर्स फुटबॉल टीम गई और बारिश के कारण हुए जलभराव की वजह से भीतर फंस गई। गुफा में लगातार बढ़ रहे पानी के बीच खिलाड़ियों को खोजना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था। करीब दो सप्ताह तक चले अभियान में 90 गोताखोर भी लगाए गए। सभी ने मिलकर टीम को बाहर निकाला। इस बचाव अभियान में पूर्व थाईलैंड के नेवी सील समन कुनान को जान गंवानी पड़ी। यह दुनिया के सबसे जटिल रेस्क्यू अभियान में से एक माना जाता है।
चीली खदान अभियान: पांच अगस्त 2010 को सैन जोस सोने और तांबे की खदान के ढहने से 33 मजदूर उसमें दब गए थे। जमीन के ऊपर से करीब 2000 फीट नीचे फंसे इन मजदूरों से संपर्क करना ही मुश्किल था। 17 दिन की मेहनत के बाद सतह के नीचे एक लाइफलाइन छेद बनाकर फंसे मजदूरों को भोजन, पानी, दवा भेजी जा सकी। 69 दिन के बाद 13 अक्तूबर को सभी मजदूरों को एक-एक करके सुरंग से बाहर निकाला गया।
क्यूक्रीक माइनर्स अभियान: 24 जुलाई 2002 को अमेरिका के पेंसिल्वेनिया के समरसेट काउंटी की क्यूक्रीक माइनिंग इंक खदान में नौ मजदूर फंस गए। इन्हें केवल 22 इंच चौड़ी आयरन रिंग के सहारे 77 घंटे बाद बाहर निकाला जा सका था।
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पुख्ता तैयारी करने का सबक सिखाया। Success of Operation Silkyara
पहले जोशीमठ फिर मानसून का कहर और उसके बाद सिलक्यारा। हिमालय की नाजुक पहाड़ में बसे उत्तराखंड में आपदाओं का यह सिलसिला शायद ही कभी रुकेगा। सिलक्यारा हादसा आपदाओं के लिए संवेदनशील उत्तराखंड राज्य को सबक भी सिखा गया कि वह आपदा में केंद्रीय एजेंसियों का बार-बार मुंह नहीं ताक सकता। उसको खुद अपने बूते पर पुख्ता तैयारियां करनी होंगी। ऑपरेशन की कामयाबी के लिए उत्तराखंड सरकार ने बेशक सहयोगी की भूमिका में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, लेकिन जानकारों का मानना है कि सरकार को इससे अधिक तैयारी करनी होगी। आपदाएं हर बार सिलक्यारा हादसे जैसा समय नहीं देंगी, इसलिए आपदा प्रबंधन से जुड़े उपकरणों, दक्ष मानव संसाधनों, तकनीकी विशेषज्ञों को तैयार करने के लिए खुद के बूते तैयारी करनी होगी।
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