मांगल गीतों का संरक्षण करती केदारघाटी की स्वर कोकिला रामेश्वरी भट्ट। अन्य लोकगीतों को भी किया जीवित..
उत्तराखंड में 16 संस्कारों में मांगल गीतों की अनोखी परंपरा रही है। शुभ कार्यों में मांगल गीत गाये जाते थे। जन्म से लेकर विवाह तक इन मांगल गीतों में देवताओं का स्तुति की जाती है। उत्तराखंड के गढ़वाली, कुमाउँनी, जौनसारी और भोटिया जनजाति में मांगल गाने की प्रक्रिया है। गढ़वाल के रुद्रप्रयाग और चमोली को मल्या मुलक यानी अपर गढ़वाल कहा जाता है। बद्री केदार की भूमि में भगवान शिव पार्वती को आधार मानकर मांगल गीतों का गायन किया गया। मांगल गीतों में देववाणी है। हमारे पूर्वजों ने इन गीतों को संस्कृति और पुराणों से लिया है। मांगल और खुदेड गीत अभी भी केदारघाटी में जीवित है। यहां अभी भी मांगल उसी स्वरूप में गाये जाते है।
यह भी पढ़ेंः देवताओं का ताल: यहां है प्रकृति का अद्भुत और खूबसूरत संगम, ताल से जुड़ी हैं कई रोचक कथाएं..
केदारघाटी में मांगलों के सरक्षंण का सबसे बड़ा श्रेय मांगल गायिका श्रीमती रामेश्वरी देवी भट्ट को जाता है। रामेश्वरी भट्ट मांगल गीतों की एक प्रमुख लोकगायिका है। वे अपने पति के साथ सारी गांव में रहती है। सारी गाँव में देवरियाताल मार्ग पर स्थित शिवालय में अपने पति के साथ रहती हैं। रामेश्वरी भट्ट वैसे तो बचपन से ही मांगल, जागर और खुदेड गीत गाती थी लेकिन 2000 के बाद उन्होंने जागर गीतों को प्रारंभ किया। रामेश्वरी भट्ट की शादी 1982 में मोहन भट्ट से हुई। शादी के बाद रामेश्वरी भट्ट ने जागर गाने शुरू किए। रामेश्वरी भट्ट कहती हैं कि मांगल गीत उन्होंने अपनी दादी से सीखे। बचपन में वे अपनी दादी के साथ शादी ब्याह के मौकों पर जाती थी। उनकी 2 बेटियों और एक बेटा है और सभी की शादी हो चुकी है।
यह भी पढ़ेंः उत्तराखंडः रंग-बिरंगी मछलियों का संसार, जहां मछली सेवा ही है नारायण की सेवा। देखें वीडियों..
रामेश्वरी देवी की आवाज में एक जादू है। आप इस बात से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि दूरदर्शन और आकाशवाणी ने उन्हें B-HIGH श्रेणी में रखा है वही श्रेणी गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी की भी है। रामेश्वरी भट्ट आज पूरे रुद्रप्रयाग सहित उत्तराखंड में प्रसिद्ध हो चुकी है। मांगल गायिका रामेश्वरी भट्ट जी का कहना है कि केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया कि वे मांगल और जागर गीतों को आगे बढ़ाए। केदारघाटी में मांगल और जागर आज भी अपने पुराने स्वरूप में विद्यमान है और रामेश्वरी भट्ट उन्ही को आगे बढ़ा रही है। विलुप्त होते मांगल गीतों को रामेश्वरी देवी ने फिर से लोगों के बीच ला दिया है। जिसके बाद आज हर कोई अपनी उत्तराखंड़ की परंपरा से जुड़े मांगलों के बारे में जानना चाहते हैं।
यह भी पढ़ेंः साहस: इस शख्स ने 90 साल पहले तोड़ा था जिस घाटी का गुरूर, आज है तोताघाटी नाम से मशहूर.
आपकों बता दें कि केदारघाटी में गौरा और पार्वती को बेटी और बहू के रूप में मांगल गीतों की रचना की गई है। वैसे हिन्दू रीति रिवाजों में केवल उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, हिमांचल, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य कई राज्यों में भी संस्कार गीत गाये जाए है। लेकिन केदारघाटी में मांगल अभी भी पुराने स्वरूप में मौजूद है। यहां में भगवान शिव और पार्वती को आधार मानकर मांगल गीतों की रचना की गई। केदारघाटी, कालीमठ घाटी, मदमहेश्वर घाटी सहित कई अन्य घाटियों में मांगल गायन शादियों में होता रहा है।