कुमाऊं: ‘हिमालय का महत्व एवं हमारी जिम्मेदारियां’ कार्यक्रम में कई युवा हुए सम्मानित..

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अल्मोड़ा: भारत का मुकुट कहलाने वाले पर्वतराज हिमालय के स्थानीय निवासियों को समर्पित दिवस “हिमालय दिवस” पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार एवं नौला फाउंडेशन के सयुंक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम ‘ हिमालय का महत्व एवं हमारी जिम्मेदारियाँ’ में क्षेत्र के युवाओं को सम्मानित किया हैं। जिसमें विकासखंड चौखुटिया ग्रामं कनोनी मासी के युवा ग्राम प्रधान गिरधर बिष्ट, फुलौरा ग्राम के इंजीनियर हिमांशु फुलोरिया, विकासखंड द्वाराहाट की युवा ग्राम प्रधान सुमन कुमारी, विकासखंड ताड़ीखेत ग्राम चलसिया पड़ोली के पर्यावरणविद संदीप मनराल को विशेष तौर पर नमामि गंगे के द्वारा सम्मानित किये जाने पर समस्त क्षेत्र में ख़ुशी की लहर है। 

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पर्यावरणविद संदीप सिंह मनराल का कहना हैं की भारत वर्ष में नदियों के जल का 70% स्प्रिंगफेड यानि पारम्परिक प्राकृतिक जल स्रोत है, जो वनाच्छादन की कमी, वर्षा का अनियमित वितरण एवं अनियंत्रित विकास प्रक्रिया के कारण सूखते जा रहे हैं।  इस हिमालयी राज्य में स्प्रिंगशेड ( नौले-धारे का रिचार्ज क्षेत्र) संरक्षण, संवर्धन पर असल हितधारक स्थानीय जन समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करनी ही होगी । समस्त उत्तराखंड में जल मंदिर नौले धारों के संरक्षण को संकल्पित समुदाय आधारित संस्था नौला फाउंडेशन कुमाऊँ मंडल में परस्पर जन सहभागिता से पहाड़ पानी परम्परा के सरंक्षण संवर्धन में लगी है।  गगास घाटी की बेटी लोकप्रिय युवा ग्राम प्रधान सुमन कुमारी का कहना हैं की गभीर चितां का विषय है कि पर्यावरण से सबसे ज़्यादा नुक़सान हमारे परम्परागत जल स्रोतों स्प्रिंग नौले धारों गधेरों को हो रहा है।

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ग्राम प्रधान गिरधर बिष्ट का कहना हैं कि इस सम्मान वो समस्त राम गंगा घाटी को समर्पित करते हैं जिनके परस्पर जन सहयोग से वो धरातल पर जमीनी कार्य करने में सफल हुए है। आज पहाड के हर गांव में ठोस व तरल कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। सब ग्राम वासी प्लास्टिक को खुले में जल स्रोतों के आसपास फेंक कर चले जाते है जो हिमालयी वैटलेडंस व जैव विविधता के लिये गंभीर ख़तरा बन गयी है। हमें मिलकर ठोस समाधान करना ही होगा। ये कदम हर घर से उठाना होगा, तभी गगास, रामगंगा, गंगा, यमुना जैसी नदिया का अस्तित्व रहेगा।

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नौला फाउंडेशन के अध्यक्ष बिशन सिंह का कहना है कि  आज पर्वत राज हिमालय के बारे में हम मिलकर एक नई सोच स्थापित करें, जिसमें समाज और सरकार का समन्वय हो, स्थानीय समुदायों को साथ लेकर ही हिमालय सरंक्षण नीति बनाई जाए। जिसमें जल, जंगल, और जमीन के तहत हिमालय की सामाजिक,आर्थिक, परिस्थितिक, जैव विविधता व सांस्कृतिक पहलुओं पर कुछ विशेष नियम बनाये जाएं। जिनका किसी भी प्रकार का उल्लंघन दण्डनीय हो। सच मानिए जलवायु परिवर्तन व अनियंत्रित दोहन से हिमालय की मौत हुई तो देश का अस्तित्व क्या बचेगा? आज 100 करोड़ से ज्यादा का पर्यटन व्यापार देता है हिमालय, बदले में हम क्या वापस करते है, ये आज का महत्वपूर्ण प्रश्न है।

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