पहलः गगास नदी जैव विविधता शोध केंद्र की होने जा रही स्थापना, परंपरागत नौले-धारों का सरंक्षण अति आवश्यक…
अल्मोड़ाः विश्व पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में द्रोणगिरि भटकोट एवं पाण्डुखोली के मिश्रित वनों से उत्पन्न गैर हिमानी नदी गगास नदी की जलीय जैव विविधता बनाये रखने हेतु नौला हिमालयन वेटलैंड्स एंड स्प्रिंग बायोडायवर्सिटी कंज़र्वेशन नेटवर्क गगास नदी जैव विविधता शोध केंद्र की स्थापना करने जा रहा हैं। जिसका उद्देशय गगास घाटी क्षेत्र में प्रतिबद्धता के साथ क्षेत्रीय जन भागीदारी से जैव विविधता सरंक्षण एवं मृतप्राय पेयजल स्रोतों के पुनर्निर्माण, संरक्षण, संवर्द्धन और निरंतर विकास के लिए तकनीकी सहयोग एवं जागरूकता फैलाना हैं। जहां उत्तराखंड में विशेषतः पर्वतीय जनपदों में पेयजल के मुख्य जल स्रोत परंपरागत नौले-धारे चुपटोले मगर (झरनों) और गधेरों आदि के रूप मे हैं। समस्त उत्तराखंड में पहाड़ पानी परम्परा की पुनर्स्थापना हेतु संकल्पित समुदाय आधारित गैर लाभकारी संस्था नौला फाउंडेशन परस्पर जन सहभागिता से सतत जल प्रबंधन के साथ, सतत आजीविका प्रबंधन, हिमालयी जैव विविधता का सरंक्षण, जमीन, जंगल, प्राकृतिक एवं भूजल सरंक्षण, संवर्धन एवं शोध (रिसर्च) पर मध्य हिमालयी क्षेत्र के गांवो से कार्य शुरू कर चुका हैं।
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जिसके परिणाम देर से पर दीर्घकालीन होंगे। हिमालयी के वर्षा वनों में निकलने वाले परम्परागत जल स्रोतों स्प्रिंग से बनी नदियां (गाड या गधेरा) एक जटिल वेब बनाती है जो गंगा बेसिन में बारहमासी जल आपूर्ति की रीढ़ है। समृद्ध पारिस्थितिकी व मिश्रित जैव विविधता से परिपूर्ण मिश्रित जंगल न केवल पानी को संरक्षित करते है बल्कि जल सपंज को भी बनाये रखते है। यही बहते वर्षा जल को आज संरक्षित करने की जरुरत है। बांस जल और जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मिट्टी और जल प्रबंधन में योगदान करते हैं। वे बायोमास उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं और स्थानीय और विश्व अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ती भूमिका निभाते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए नदियों के किनारे उच्च गुणवत्ता वाले बांस का संरक्षण और टिकाऊ प्रबंधन उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, खासकर जहां नदियों की क्षति और वनों की कटाई एक महत्वपूर्ण खतरा है।
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पहाड़ी क्षेत्र में बांस आजीविका संवर्धन हेतु शानदार विकल्प हैं। नदियों के आसपास बांस एवं बैंस जैव विविधता संवर्धन का योगदान ये हैं कि बांस की जड़ जंगल में मिट्टी के कटाव को नियंत्रित करने में मदद करती है, लंबे समय तक पानी रखने और भूमिगत जल प्रवाह को बनाए रखने की क्षमता के कारण बांस के पौधे पानी के संरक्षण के लिए प्रभावी होते हैं। यह मिट्टी के कटाव नियंत्रण, जल संरक्षण, भूमि पुनर्वास और कार्बन पृथक्करण जैसी प्राकृतिक प्रणाली में भी योगदान देता है। पहाड़ में अधिकतर जगहों पर भूमिगत जल का दोहन भौगोलिक स्थिति के कारण संभव नहीं है। प्रदेश में प्राकृतिक पेयजल स्रोतों के स्राव में निरंतर कमी, स्रोतों के क्षतिग्रस्त होने और सूख जाने के कारण पानी का संकट गहराता जा रहा है।
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अतः यह नितांत आवश्यक है कि नौलों, चालों, खालों व लुप्तप्राय जल स्रोतों को वैज्ञानिक ढंग से उपचारित कर बचाया जाए। परन्तु पुनर्जीवित करने के पश्चात उनकी उचित देखभाल, संरक्षण, प्रबंधन भी जरुरी हैं, वर्षा जल का सही भण्डारण व संचयन न होना एवं सड़कों और भवनों में सीमेंट, कंक्रीट आदि का अत्यधिक इस्तेमाल, जिससे कच्ची जमीन (जो वर्षा जल को सोखकर स्रोतों को रिचार्ज कर सकती है), जल स्रोतों के स्राव में निरंतरता बनाए रखने और भूमि का क्षरण और कटाव रोकने के लिए विशेष स्थानीय किस्म के वृक्षारोपण आवश्यक है। आज विभिन्न वैश्विक सस्थांये, सरकारें व विभिन्न समाज सेवी सस्थांये अपने स्तर पर कार्यरत है, परन्तु मानव सभ्यता पर आया यह सकंट बहुत बडा है और इससे लडने के लिये हम सब को अपने अपने स्तर पर कार्य करने की जरूरत है। इसके लिये बडे स्तर पर सामाजिक जन जागरुकता कार्यक्रम चलाये जाने की जरुरत है। गगास नदी जैव विविधता सहभागी ग्रामीण मूल्यांकन में मुख्य अतिथि पर्यावरणविद श्री मदन सिंह बिष्ट, नौला फाउंडेशन से पर्यावरणविद श्री मनोहर सिंह मनराल, स्वामी वीत तमसो, श्री खेम सिंह कठायत, श्रीमती कमला कैड़ा, श्री भूपेंद्र बिष्ट, श्री गणेश कठायत, श्री सुरेंद्र सिंह मनराल, देव राज एवं समस्त ग्रामीण महिलाओ का सहयोग रहा।
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