उत्तराखंड का एक अलौकिक मंदिर, जो सिर्फ रक्षाबंधन पर खुलता है। पढ़िए यहां से जुड़ी मान्यताएं..

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A supernatural temple of Uttarakhand. Hillvani News

A supernatural temple of Uttarakhand. Hillvani News

उत्तराखंड का एक अनोखे मंदिर जो सिर्फ राखी के त्योहार पर ही खुलता है और दर्शन करने के लिए हजारों लोग दूर-दूर से रक्षाबंधन के दिन यहां पहुंचते हैं। उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली में एक अनोखा मंदिर स्थित है जो पूरे साल में केवल एक दिन खुलता है। मंदिर के कपाट 364 दिन बंद रहते हैं। केवल रक्षाबंधन के दिन ही मंदिर को खोलकर वहां पूजा अर्चना की जाती है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर में अलग ही रौनक देखने को मिलती है, जिस तरह से राखी का त्यौहार अपना खास महत्व रखता है और भाई बहन के स्नेह को मजबूत बनाता है। इसी तरह से धार्मिक स्थलों को लेकर भी देश भर में अलग-अलग परंपराएं हैं। उर्गम घाटी में स्थित ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसीलिए इस मंदिर को वंशी नारायण मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। वैसे तो मंदिर में भगवान शिव गणेश और वन देवी की मूर्तियां भी स्थापित की हुई है।

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रक्षाबंधन के दिन स्थानीय लोग सुबह सवेरे पहुंचकर मंदिर को खोलकर यहां साफ सफाई करते हैं और उसके बाद पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर में पूजा करने के बाद मंदिर परिसर में लोग राखी का त्यौहार मनाते हैं। आदिकाल की मान्यताओं से जुड़ी परंपराओं का यहां आज भी निर्वहन होता है। जहां पूरे साल ये मंदिर बंद रहता है। वहीं केवल एक दिन मंदिर को खोलने पूजा करने और उसके बाद राखी का त्यौहार मनाने की परंपरा आज भी पूर्ण निष्ठा के साथ निभाई जा रही है। रक्षाबंधन के किमाना, डुमक, जखोल, पल्ला और उर्गम गांव के ग्रामीण यहां उत्सव का आयोजन करते हैं।

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भगवान विष्णु लिया था वामन अवतार
धारणा है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि के अहंकार को खत्म करने के लिए इसी स्थान पर वामन अवतार लिया था। भगवान विष्णु ने देवताओं के आग्रह पर वामन रूप धारण कर दानवीर राजा बलि का घमंड चूर किया था। इसके बाद राजा बलि ने पाताल लोक में जाकर विष्णु भगवान की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को उनके सामने रहने का वचन दिया। इस पर पाताल लोक में भगवान नारायण राजा बलि के द्वारपाल बनकर रहने लगे। तब अपने पति को पाताल लोक से मुक्त करने के लिए माता लक्ष्मी ने जतन करने शुरू किया। तब नारद मुनि ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधने का उपाय माता लक्ष्मी को बताया।

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भगवान विष्णु को मानतीं हैं भाई
इसके बाद माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन लिया। वचन के बाद भगवान विष्णु को द्वारपाल के बंधन से मुक्ति मिली थी। मान्यता है कि उसके बाद से ही यहां रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा। पाताल लोक में भगवान विष्णु इसी क्षेत्र में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस गांव में महिलाएं भगवान विष्णु को अपना भाई मानती हैं और रक्षाबंधन के दिन इस मंदिर में पहुंचकर भगवान विष्णु को राखी बांधती हैं।
हर घर से आता है मक्खन
एक पौराणिक कथा के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु को वामन अवतार को यहां मुक्ति मिली थी। इसीलिए मंदिर के पास ही लोग रक्षाबंधन के दिन प्रसाद बनाते हैं। प्रसाद बनाने के लिए गांव के हर घर से मक्खन आता है। प्रसाद का भोग भगवान विष्णु को लगाने के बाद ही लोगों को प्रसाद बांटा जाता है।

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मंदिर तक जाने का रास्ता
जोशीमठ से उर्गम घाटी 10 किलोमीटर है, जबकि उर्गम गांव से मंदिर 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 13 हजार की ऊंचाई पर स्थित है। दुर्गम गांव के बाद लगभग 12 किमी का रास्ता पैदल ही तय करना होता है। यह मंदिर हिमालय पर्वत पर स्थित नंदा देवी पर्वत श्रृंखलाओं और घने जंगलों से घिरा हुआ है। यहां तक पहुंचाने के लिए घने के जंगलों के बीच से होकर जाना होता है। माना जाता है कि ये मंदिर छठवीं से आठवीं शताब्दी के आसपास बना होगा।

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