World Hepatitis Day: हेपेटाइटिस से लिवर-किडनी को होते हैं ये नुकसान, जानें बचाव के उपाय..

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World Hepatitis Day 2022. Hillvani News

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World Hepatitis Day 2022: विश्‍व हेपेटाइटिस दिवस का आयोजन हेपेटाइटिस के बारे में जागरूकता का प्रसार करने के उद्देश्‍य से हर साल 28 जुलाई को किया जाता है। लिवर और किडनी ऐसे अंग हैं जिनका आपस में गहरा संबंध है क्‍योंकि लिवर में पैदा होने वाले विषाक्‍त तत्‍वों (टॉक्सिन्‍स) को शरीर से बाहर निकालने का काम गुर्दे (किडनी) ही करते हैं। हेपेटाइटिस रोग में लीवर में सूजन और क्षति पहुंचने लगती है जिसका असर किडनी पर भी पड़ता है। हेपेटाइटिस के चलते किडनी को पहुंचने वाले नुकसान कई प्रकार के हो सकते हैं। आइए इस खास मौके पर जानते हैं उनके बारे में।

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(1) एक्यूट किडनी इंजरी- यह आमतौर पर एक्‍यूट वायरल हेपेटाइटिस की वजह से होता है जिसका कारण हेपेटाइटिस वायरस ए, बी, सी, डी और ई हो सकता है। इसके लिए हाइड्रेशन थेरेपी की मदद ली जाती है और किसी भी किस्‍म के लिवर रोग के उपचार तथा किडनी को पहुंची क्षति से पूरी तरह से उबरना मुमकिन होता है। जितना ज्‍यादा लिवर को नुकसान होता है उतना ही अधिक नुकसान किडनी को भी होता है। इसलिए इन मरी़जों का इलाज लिवर और किडनी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट्स की एक्‍सपर्ट टीम द्वारा होना चाहिए।
(2) ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस- ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस किडनी फिल्‍टर्स या ग्‍लोमेरुली की सूजन को कहते हैं। ऐसा प्राय: हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी संक्रमणों के मामले में देखा जाता है। इसमें इम्‍यून के प्रभावित होने की वजह से किडनी फिल्‍टर्स को क्षति पहुंचती है और उनमें सूजन आती है। इसकी वजह से पेशाब में ब्‍लड और प्रोटीन जाने लगता है तथा यूरिया एवं क्रिटनाइन का स्‍तर बढ़ जाता है। यदि समय पर पकड़ में आ जाए तो क्रोनिक किडनी डैमेज से बचाव मुमकिन है। इसलिए इन मरीजों को तत्‍काल नेफ्रोलॉजिस्‍ट से सलाह करनी चाहिए और संभव हो तो किडनी बायप्‍सी भी करानी चाहिए। उपचार के लिए एंटीवायरल्‍स तथा इम्‍युनोसप्रेसिव एजेंट्स के इस्‍तेमाल की सलाह दी जाती है।
(3) हिपैटोरीनल सिंड्रोम- यह आमतौर पर लिवर को गंभीर क्षति पहुंचने पर होता है जिससे किडनी को नुकसान होता है। शुरुआती चरण में इसका उपचार दवाओं से किया जा सकता है लेकिन अक्‍सर इसके लिए लिवर ट्रांसप्‍लांट की जरूरत होती है। एडवांस स्‍टेज में किडनी के भी गंभीर रूप से रोगग्रस्‍त होने पर कई बार लिवर और किडनी ट्रांसप्‍लांट दोनों जरूरी होते हैं।

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विभिन्‍न प्रकार के हेपेटाइटिस रोगों में, किडनी को नुकसान आमतौर पर हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी की वजह से पहुंचता है। ये दोनों संक्रमण शेयर्ड सुइयों (जो कि अब आमतौर पर नहीं इस्‍तेमाल होती हैं), संक्रमित शरीर द्रव्‍यों और रक्‍त चढ़ाने पर होते हैं। इसलिए हिमोडायलसिस वाले मरीज़ों को इन संक्रमणों का खतरा अधिक रहता है। इनसे उन मरीज़ों को काफी नुकसान पहुंच सकता है जिनके किडनी ट्रांसप्‍लांट की योजना होती है। इन मरीज़ों में सेप्सिस होने का भी खतरा अधिक होता है। इसके अलावा, किडनी ट्रांसप्‍लांट के बाद इन्‍हें डायबिटीज़ होने का जोखिम बढ़ सकता है और ट्रांसप्‍लांटेड किडनी का जीवनकाल भी घट सकता है। इसलिए, सभी डायलसिस मरीज़ों की हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी संक्रमण के लिए नियमित रूप से जांच होनी चाहिए। हेपेटाइटिस बी तथा हेपेटाइटिस सी इंफेक्‍शन के लिए कई कारगर एंटीवायरल दवाएं उपलब्‍ध हैं और यदि ये संक्रमण जल्‍द पकड़ में आ जाएं तो लिवर को ज्‍यादा नुकसान पहुंचाने से बचा जा सकता है। लेकिन ये दवाएं काफी मंहगी होती हैं और इनके लिए नियमित रूप से मॉनीटरिंग करने की आवश्‍यकता होती है।

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उपचार से बेहतर है बचाव-
इसलिए हेपेटाइटिस बी तथा सी के मामले में, यह कहावत ही ज्‍यादा सार्थक है कि ‘उपचार से बेहतर है बचाव’। हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी वायरस से बचाव के लिए एक कारगर वैक्‍सीन भी उपलब्‍ध है। इस तरह के वायरस से बचाव के लिए बचपन में ही पूरा वैक्‍सीनेशन करवाना चाहिए और अन्‍य वैक्‍सीन भी समय-समय पर लेनी चाहिए। लेकिन अक्‍सर देखा जाता है कि किडनी रोगों से ग्रस्‍त मरीज़ों का या तो वैक्‍सीनेशन नहीं हुआ होता या उनके शरीर में एंटीबॉडीज़ काफी कम होती हैं। क्रोनिक किडनी रोग से ग्रस्‍त मरीज़ों को हेपेटाइटिस बी वैक्‍सीन की अधिक खुराक की आवश्‍यकता होती है। लेकिन हेपेटाइटिस सी से बचाव के लिए फिलहाल कोई वैक्‍सीन उपलब्‍ध नहीं है। डायलसिस मरीज़ों को हेपेटाइटिस के संक्रमण से बचाने का सबसे कारगर तरीका है। ब्‍लड ट्रांसफ्यूज़न से बचना और कड़ाई से अन्‍य सावधानियों का पालन करना, जिसमें एक अच्‍छी डायलसिस यूनिट का चुनाव करना सबसे महत्‍वपूर्ण है, जहां इस प्रकार की सभी प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है। इसके लिए हो सकता है कि आपको सामान्‍य से कुछ अधिक खर्च करना पड़े लेकिन आगे चलकर ऐसा करना फायदेमंद साबित होता है क्‍योंकि इन संक्रमणों से बचाव के लिए दवाएं लेना और संक्रमण का जोखिम होने पर अस्‍पतालों में भर्ती होने के खर्चों की तुलना में यह सस्‍ता विकल्‍प है।

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लिवर को सेहतमंद रखने और लिवर इन्फेक्शन व हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों से बचाव के लिए फायदेमंद योगासनों के बारे में।
भुजंगासन- लिवर को मजबूत रखने के लिए भुजंगासन काफी फायदेमंद है। भुजंगासन के नियमित अभ्यास से लिवर पर सेहतमंद असर पड़ता है। ये आसन लिवर की कई समस्याओं को ठीक करने के लिए असरदार है। इस आसन को करने के लिए पेट के बल सीधे लेट जाए। पैरों के बीच थोड़ी दूरी रखें। अब हाथों को छाती के पास ले जाकर हथेलियों को नीचे टिका लें। गहरी सांस लेते हुए नाभि को ऊपर उठाते हुए आसमान की तरफ देखें। इसी मुद्रा में कुछ देर रहें। इस दौरान सामान्य सांस लेते रहें। अब पुन: वाली अवस्था में आ जाएं। ये प्रक्रिया तीन-चार बार करें।
नौकासन- हेल्दी लिवर के लिए नौकासन का अभ्यास भी फायदेमंद है। इस आसन में शरीर नौका के आकार का हो जाता है। कई बीमारियों से लड़ने के लिए नौकासन योगाभ्यास असरदार है। नौकासन करने के लिए शवासन की मुद्रा में लेटकर धीरे-धीरे एड़ी और पंजे को मिलाएं। अब दोनों हाथों को कमर से सटाकर हथेली और गर्दन को जमीन पर रखें। फिर दोनों पैरों के साथ गर्दन और हाथों को भी ऊपर उठाते हुए अपने शरीर का पूरा वजन हिप्स पर डाल दें। करीब 30 सेकेंड इसी अवस्था में रहें, बाद में शवासन की मुद्रा में वापस आ जाएं।

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शलभासन- लिवर को स्वस्थ रखने और हेपेटाइटिस की बीमारी से बचाव के लिए शलभासन का अभ्यास किया जा सकता है। इस योग को करने के लिए जमीन पर पेट के बल लेटकर हथेलियों को जांघों के अंदर रखें। सांस अंदर की ओर लेते हुए दोनों पैरों को ऊपर उठाएं। इस दौरान घुटने स्थिर रहें और पैर साथ जुड़े रहें। माथे को जमीन पर टिकाकर रखें। करीब 10 सेकेंड इसी अवस्था में रहें और फिर पैरों को नीचे लाते हुए सांस छोड़ें।
कपालभाति- कपालभाति का अभ्यास लिवर को हेल्दी रखने में मदद करता है। नियमित कपालभाति करने से लिवर की बीमारियों से बचाव होता है। ये पेट की समस्या को भी दूर कर सकता है। कपालभाति करने के लिए वज्रासन, सिद्धासन या पद्मासन की अवस्था में बैठ जाएं। गहरी सांस लेते हुए सांस को 5-10 सेकेंड तक इसी अवस्था में रहें और फिर सांस को नाक से छोड़ें। इस आसन को रोजाना 10-15 मिनट करें।

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