उत्तराखंड: क्या संविदा कर्मचारी नहीं होंगे पक्के? सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती..

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प्रदेश के कई संविदा कर्मचारी नियमितीकरण की आस लगाए बैठे हैं साथ ही सरकार को हाईकोर्ट और श्रम न्यायाधिकरण कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश कर चुका है। लेकिन सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जहां एक तरफ राजस्थान, उड़ीसा, तेलंगाना, पंजाब में संविदा कर्मचारी नियमित हो गए हैं। उत्तराखंड में सरकार हाईकोर्ट के नियमितीकरण आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही है। हाईकोर्ट और श्रम न्यायाधिकरण कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश देने के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इन आदेशों को चुनौती दी है। संविदा कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई, इसी एसएलपी पर सवाल उठाए हैं।

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विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि एक ओर दूसरे राज्यों की सरकारें एक के बाद एक संविदा कर्मचारियों को नियमित कर रही हैं। समान काम का समान वेतन देने की सुविधा दे रही हैं। संविदा कर्मचारी भी नियमित कर्मचारियों के समान पूरा काम कर रहे हैं। मौजूदा समय में यूपीसीएल का पूरा सप्लाई सिस्टम संविदा कर्मचारियों के हाथ में है। ऑफिस का मिनिस्टीरियल काम भी पूरी तरह उपनल कर्मियों के हाथों में है। इन कर्मचारियों को नियमित करने को श्रम न्यायाधिकरण और हाईकोर्ट तक आदेश कर चुकी है। उपनल संविदा कर्मचारी संघ के अनुसार इन आदेशों को लागू करने की बजाय सरकार कर्मचारियों के खिलाफ कोर्ट में करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी है। पहले हाईकोर्ट में करोड़ों रुपये खर्च हुआ और अब सुप्रीम कोर्ट में पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। जो सीधे तौर पर कर्मचारियों के साथ अन्याय है। सरकार जल्द दूसरे राज्यों का अनुसरण करते हुए कोर्ट के आदेशों को लागू करते हुए संविदा कर्मचारियों को नियमित करे।

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आपको बता दें कि सरकार सिडकुल, बीज विकास प्रमाणिकरण एजेंसी, राज्य सहकारी बैंक, जिला सहकारी बैंक, साधन सहकारी समिति, राज्य सहकारी संघ, राज्य भंडारण निगम, विधानसभा में कर्मचारियों को नियमित कर चुकी है। किसी कर्मचारी को पांच तो किसी को दो से तीन साल के भीतर ही नियमित कर दिया गया। जबकि 15 से 20 साल से सेवाएं दे रहे उपनल कर्मियों को नियमित नहीं किया जा रहा है। यहां नौकरी से किए गए बाहर स्वास्थ्य विभाग में कोरोना के दौरान रखे गए कर्मचारियों को नौकरी से बाहर कर दिया गया था। बाद में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन होने पर इन कर्मचारियों को एक साल का सेवा विस्तार दिया गया। इसी तरह विधानसभा में 2016, 2020 और 2022 में रखे गए तदर्थ कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई। ये मामला अब हाईकोर्ट में विचाराधीन है।


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