उत्तराखंड की बेटी को नहीं मिला इंसाफ। लोगों में आक्रोश, सोशल मीडिया पर आ रही तीखी प्रकिया..
अंकिता भंडारी की तरह ही उत्तराखंड की बेटी के साथ दिल्ली में दरिंदों ने दरिंदगी की थी। दिल्ली के छावला इलाके में 10 साल पहले उत्तराखंड की बेटी के साथ दुष्कर्म और हत्या के तीनों आरोपियों के बरी होने पर प्रवासियों से लेकर राज्य तक रोष है। सोशल मीडिया पर लगातार तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। अब इस मामले का संज्ञान सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक ने लिया है। सीएम धामी ने कहा कि बेटी को न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। तो पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरीश रावत और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हें। बता दें कि वर्ष 2012 के दिल्ली के छावला इलाके में दरिंदों ने उत्तराखंड की 19 वर्षीय बेटी के अपहरण कर दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी थी। यह निर्भया जैसा मामला था। इन वहशी दरिंदों को जिला और उच्च न्यायालय ने सजा ए मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद जो फैसला सामने आया, उसने सभी को स्तब्ध कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तीनों आरोपियों को बरी कर दिया है।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस प्रकरण का मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संज्ञान लिया है। उन्होंने यह केस देख रही वकील और केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू से भी बात की है। कहा कि पीड़ित बेटी को इंसाफ दिलाने के भी सब कुछ करेंगे। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सुझाव दिया है कि उत्तराखंड की बेटी को न्याय दिलाने के लिए राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आरोपियों के बरी होने पर चिंता जताई हैं कहा कि दरिंदगी के जिम्मेदार आरोपियों को जिला न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय ने सजा-ए-मौत दी थी, पर वो बरी हो गए हैं। यह निर्भया हत्याकांड जैसा केस था। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने छावला कांड में आरोपियों के बरी होने पर चिंताजनक बताया। कहा कि 2012 में दरिंदों ने सारी हदें पार कर दी थी। ऐसे जघन्य अपराधियों का छूटना समाज के लिए चिंता की बात है। कांग्रेस उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने दिल्ली सरकार से मामले को सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच में ले जाने की मांग की है। कहा कि वह प्रवासी संगठनों से बातचीत कर संयुक्त लड़ाई का प्रयास भी करेंगे।
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परिजनों को फैसले से लगा धक्का
गौरतलब है कि देश की राजधानी दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में 10 साल पहले 09 फरवरी 2012 को तीन युवकों द्वारा उत्तराखंड की किरन नेगी का अपहरण कर उसके साथ गैंगरेप और बाद में उसकी हत्या कर हरियाणा के खेतों से फेंक देने का मामला सामने आया था। जब उत्तराखंड समाज के लोगों ने सड़कों पर निकलकर इस घटना का जबरदस्त विरोध किया तो पुलिस हरकत में आई। और तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस चर्चित केस पर निचली अदालतों ने आरोपियों के गुनाह को देखते हुए तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी। परिजनों के मुताबिक निचली अदालों में लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद भी इस केस में सुप्रीम कोर्ट में करीब 8 साल लग गए। सोमवार को इस मामले में देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला भी आ गया। लेकिन जैसे ही कोर्ट का आदेश सुनाई दिया, किरन परिजनों के पैरों तले जमीन खिसक गयी । परिजन सीधे कोर्ट पहुंच गए। किरन की मां ने कहा कि कोर्ट का फैसला सुनकर यकीन नहीं हो रहा है। आखिर ऐसे कैसे हो सकता है कि सर्वोच्च अदालत ने कोई सजा ही नहीं सुनाई हो और तीनों आरोपी बरी हो गए। परिजनों को फैसले से धक्का लगा है। उनका कहना है कि सर्वोच्च अदालत के आरोपियों को बरी कर देने से उनकी उम्मीदों को ही खत्म कर दिया है। महेश्वरी देवी का कहना है कि आरोपियों को उम्र कैद या आजीवन कारावास की सजा भी हो जाती तो कम से कम उनका दिल तो मान जाता, लेकिन सभी आरोपी बरी ही हो गए।
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क्या थी वह झकझोर देने घटना
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली 19 वर्षीय किरन नेगी अपने परिवार के साथ दिल्ली के नजफगढ़ में रहती थी। 9 फरवरी 2012 को वह गुडगाँव स्थित कम्पनी से काम करके अपनी तीन सहेलियों के साथ रात करीब 8:30 बजे नजफगढ़ स्थित छाँवला कला कालोनी पहुंची थी, कि तभी कार में सवार तीन युवकों ने तीनों लड़कियों से बदतमीजी करनी शुरू कर दी। जैसे ही तीनों लड़कियां वहां से भागने लगी उसी दौरान तीनों आरोपी किरन को जबरन कार में बिठाकर वहां से ले गए और उसका सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसके आँख, कान में तेज़ाब डालकर हैवानियत की सारी हदें पार कर उसकी लाश को हरियाणा के खेतों में फेंक कर चले गए। उसकी सहेलियों ने किरन के अपहरण की खबर पुलिस व उसके घरवालों को दी। परन्तु पुलिस ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। जिसके बाद उत्तराखंड समाज के लोगों ने सड़कों पर निकलकर इस घटना का जबरदस्त विरोध किया। जिसके बाद पुलिस हरकत में आई और 14 फरवरी को किरन की लाश सड़ी गली हालत में पुलिस को हरियाणा के खेतों से मिली। जिसके बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा। जिसके बाद द्वारका कोर्ट ने दोषियों को फाँसी की सजा निर्धारित की और फिर हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखी। बीते दिन यानी 7 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दोषियों को दी गई फांसी की सजा को पलट दिया। इस मामले में निचली अदालत और हाईकोर्ट ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। दिल्ली के छावला इलाके में उतराखंड की रहने वाली 19 वर्षीय लड़की से गैंगरेप और हत्या के तीनों दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बरी कर दिया। उत्तराखंड समाज के लोगों का कहना है। कि आज देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा सुनाये गए इस फैसले से पूरा समाज स्तंभ है। किसी को इस पर यकीन नहीं हो रहा है कि हाईकोर्ट ने जिस केस को रियर ऑफ़ रेयरेस्ट समझते हुए दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, वो सुप्रीम कोर्ट में साफ बचकर कैसे निकल गए।
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