प्रमुख औषधीय वनस्पतियों का भंडार है उत्तराखंड, पढ़ें इन बहुमूल्य वनस्पतियों के बारे में..
उत्तराखंड: देवभूमि उत्तराखंड को प्राकृतिक वनस्पतियों एवम औषधियों की भी जननी कहा जाता है। यह भी कह सकते हैं कि उत्तराखंड प्राकृतिक वनस्पतियों और औषधीय वनस्पति का खजाना है। उत्तराखंड के हिमालय को हिमवंत औषधम भूमिनाम कहा गया है। अतः चरक संहिता में इस क्षेत्र को वानस्पतिक बगीचा भी कहा गया है। उत्तराखंड राज्य में लगभग 500 प्रकार की जड़ी बूटियां पाई जाती हैं जिनमें से कुछ सब्जी, चटनी, कुछ तेल निकालने, कुछ जूस पीने और औषधियों के रूप में प्रयोग में आती हैं। इनसे विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक, यूनानी, तिब्बती, ऐलोपैथिक एवं होम्योपैथिक आदि औषधि के रूप में हैं। जिनसे सौंदर्य प्रसाधन, खाद्य पदार्थ ओर कई तरह के रंग भी बनाये जाते हैं। यह जड़ी बूटियां मुख्य रूप से फार्मक्यूटिक्ल इंडस्ट्री, कॉस्मेटिक इंडस्ट्री, परफ्यूम और फ़ूड इंडस्ट्री में प्रयोग होती हैं। आगे भी पढ़ें..
उत्तराखंड में कई औषधीय पौधे है जो निम्न प्रकार से हैं
ब्राहमी: उत्तराखंड के हरिद्वार क्षेत्र में पाई जाने वाली यह औषधीय पौधे है। यह एक बहु वर्षीय शाक हैं। ब्राहमी बुद्धिवर्धक है इसका उपयोग भी बुद्धिवर्धक दवाइयों में इस्तेमाल की जाता है।
घिंगारू: यह एक कांटेदार झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसमें छीटे छोटे लाल फल लगते है। यह झाड़ीनुमा पौधे उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। घिंगारू हृदयरोग के लिए गुणकारी है। इस पर हमने एक लेख था, आप वह पढ़ सकते हैं.. औषधीय गुणों का भंडार है घिंगारू, जानें इसके औषधीय उपयोग..
शिकाकाई: शिकाकाई ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके फलों से आयुर्वेदिक शैम्पू बनाया जाता है जोकि बालों का गिरना, काले घने बालों के लिए और बाल बढ़ाने के काम आता है। आगे भी पढ़ें…
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड: पंजाब रोडवेज के ड्राइवर ने दौड़ाई उल्टी दिशा में बस। चपेट में आए बाइक सवार, एक की मौत..
भीमल: भीमल एक पेड़ की तरह ही होता है पर इसकी ज्यादा ऊंचाई नहीं होती। भीमल की हर चीज काम आती है इसके कोमल तनों को कूटकर जो जाग बनता है वह शैम्पू बनाने के काम मे आता है।
कंडाली या बिच्छु घास: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में कंडाली बहुत ज्यादा मात्रा में मिलती है। यह घास यूरोप मूल की है इसकी पत्तियों को सब्जी के रूप में खाया जाता है। इसकी सब्जी विटामिन और खनिज लवणों से परिपूर्ण होती है।
किलमोडा या किंग्गोड़: किलमोडा को दारुहरिद्रा, जरिश्क और किंगोडा भी कहते हैं। यह एक शीतोष्ण पौधा है यह एक कांटेदार झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसकी अर्क, फल, जड़, तना व लकड़ी सभी चीजें काम आती हैं। इसकी जड़ों में बरबेरियन हाइड्रोक्लोराइड पाया जाता है। इसका रसौद आंख रोग के उपचार में काम आता है। यह पौधा वन्य जीव अधिनियम की प्रथम श्रेणी में आता है।
यह भी पढ़ें: हादसा: लापता ड्राइवर का शव खाई में मिला। 2 दिन से था लापता, दर्दनाक मौत..
पीली जड़ी या ममीरा: इस पौधे की जड़ें पीली होती हैं जिसको ममीरा गांठ कहते हैं। इसकी पीली जड़ आंखों का सुरमा बनाने के काम आता है तथा इसकी जड़ों को टॉनिक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
अमेश या हिप्पोपी: इस पौधे में काल्सियम, फास्फोरस और आयरन अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसका उपयोग दवाइयां बनाने कॉस्मेटिक तथा टॉनिक बनाने के काम आता है उत्तराखंड में इसका प्रयोग चटनी बनाने व टमाटर की जगह इस्तेमाल किया जाता है।
झूला: उत्तराखंड राज्य में यह झूला वनस्पति बहुत ऊंचाई वाले स्थानों में पाई जाती है। इसकी कई प्रजातियां होती हैं इसका उपयोग साम्भर, गर्म मसाला, रंग रोगन और हवन सामग्री बनाने में किया जाता है।
भैंकल: यह औषधीय भैंकल वनस्पति ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इस पौधे के बीज से तेल निकाला जाता है जो कि गठिया रोग के उपयोगी होता है।
यह भी पढ़ें: बड़ी खबर: मुख्यमंत्री ने ली समीक्षा बैठक, दिए ये निर्देश। बढ़ते कोरोना को लेकर सीएम गंभीर..
श्यांवाली या निर्गुण्डी: यह वनस्पति श्यांवाली या निर्गुण्डी राज्य में 1000 मीटर की ऊंचाई तक पाई जाती है। इस पौधे का हर भाग उपयोगी और औषधीय होता है। इसकी पत्तियां गठिया रोग व कटने छिलने की दवा के काम आती है। इसके फूलों का उपयोग डायरिया, हैजा, बुखार की दवाओं में किया जाता है तथा लिवर व हृदय रोग की बीमारियों में भी काम आती है।
धुनेर या थुनेर: यह वनस्पति धुनेर भी 1000 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है जोकि टैक्सस प्रजाति का होता है यह वनस्पति कैंसर के इलाज के लिए काम में लाया जाता है।
ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अन्य औषधीय वनस्पतियां
इसके अलावा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में और भी कई प्रकार की औषधीय पौधें हैं….
1-1000 मीटर की ऊंचाई में पाई जाती हैं जैसे गिलोय, पणीया, वनतुलसी, अदरख, तेजपात, अश्वगंधा, इलाइची, सतावरी, मैंथा, भांग आदि वनस्पतियां भी यहां पाई जाती हैं।
2-1000 से 1500 मीटर की ऊंचाई में केसर, ब्रधि, बलोरिम, चाय, पायरेथ्रम, जिरेनियम, कड़वी, हंसरान आदि वनस्पतियां पाई जाती हैं
3-1500 से 270 मीटर की ऊंचाई में सुमोय, पाती, वन, अजवायन, चिरायता, नायर, सोमलता, रतनजोत, कचरी, महाथेदा, बज्रदन्ति, पाषाणभेद आदि वनस्पतियां पाई जाती हैं।
4- 2700 से ऊपर की ऊंचाई में कुटकी, वन ककड़ी, साल, मिश्री, निर्विशी, रीठा, गन्दरायन आदि वनस्पतियां पाई जाती हैं
5- उत्तराखंड में अधिकांशतः जड़ी बूटियां प्राकृतिक रूप से उग जाती हैं लेकिन कुछ वनस्पतियां जिनकी मांग और मूल्य बहुत ज्यादा है उनका रोपण किया जाता है। जैसे रीठा, हरड़, तेजपात, बहेड़ा, आंवला आदि वनस्पतियों का रोपणकर उत्पादन किया जाता है।
यह भी पढ़ें: बड़ी खबर: अनियंत्रित होकर कार खाई में गिरी, SDRF ने सर्च अभियान चलाकर शव किया बरामद..