उत्तराखंड: क्षेत्रीय सिनेमा और लोक कलाकारों की हालात बदतर..

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वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से.. कल गढ़वाली अभिनेत्री गीता उनियाल की श्रद्धांजलि सभा में गया था। गढ़रत्न नेगीदा, पदमश्री प्रीतम भरतवाण, मीना राणा, संगीता ढौंडियाल, बलराज राणा समेत कई दिग्गज हस्तियां मौजूद थी। वेंटिलेर पर लेटी संस्कृति की रनरअप मधु भट्ट भी थी। परम्परा के अनुसार सभी ने गीता के अभिनय और उसके सिनेमा में दिये गये योगदान की सराहना की। पर्वतीय नाट्य मंच ने सीएम के नाम एक मांग पत्र भी उनके प्रतिनिधि को सौंपा। मांगपत्र का सार सब समझ सकते हैं कि गीता उनियाल के निधन के बाद उनके परिवार को एकमुश्त धनराशि दी जाए।

अधिकांश कलाकार और पत्रकार अक्सर बीमारी से ही मरते हैं। दोनों के मरने के बाद उनके काम की कद्र होती है। मरने पर घनघोर श्रद्धांजलि दी जाती है। कुछ लोग नम आंखों से परिजनों को सांत्वना भी देते हैं। मरने के बाद उसे महान बताया जाता है और जीते जी कद्र नहीं होती। जब कलाकार बीमारी से ग्रसित होता है तो यही 100-200 लोग भी एक-एक हजार की भी मदद नहीं कर पाते हैं। कबूतरी देवी, हीरा सिंह राणा से लेकर गीता उनियाल तक कलाकारों की एक लंबी लिस्ट है।

पिछले 23 साल में प्रदेश में लोककलाकारों की सामाजिक सुरक्षा पर किसी ने सवाल नहीं उठाया। एक दिन मौजूदा मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के निवास पर आयोजित साहित्यकारों की एक गोष्ठी में मैंने तत्कालीन एसीएस राधा रतूड़ी से पूछ लिया था कि साहित्य बंद कमरों या आंगन में कब तक पसरा रहेगा? भाषा अकादमी, नाट्य एवं ललित कला अकादमी क्यों नहीं बने? तो सभा में चुप्पी छा गयी। हालांकि बाद में सीएस राधा रतूड़ी ने मेरे पास आकर कहा कि कुछ कर रही हूं। संभवत करें भी। पर पर्वतीय नाटय मंच समेत अन्य संगठन अपनी सामाजिक सुरक्षा और कला अकादमी की बात क्यों नहीं करते? लाख-दो लाख की मदद लेकर चुप हो जाते हैं। मान लेते हैं कि सरकार उन पर एहसान कर रही है।

संस्कृति विभाग के अधिकारी 24 साल में करोड़ों रुपये लोक कलाकारों का खा गये। ईडी अगर इनके घर पर छापे मारे तो अथाह पैसा मिलेगा। लेकिन कलाकार बीमारी से ग्रसित होकर मर जाएगा। नेताओं को यदि जुकाम भी लगता है तो उन्हें मेदांता ले जाया जाता है, लेकिन गीता को ब्रेस्ट कैंसर होता है तो जौलीग्रांट। पहले तो टैक्सास के एमडी एंडरसन अस्पताल में इलाज किया जाता नहीं तो कम से कम टाटा मेमोरियल में तो होता। यदि ऐसा होता तो ब्रेस्ट कैंसर लंग्स कैंसर में नहीं बदलता और 38 साल की छोटी सी उम्र में गीता को जान से हाथ नहीं धोना पड़ता।

गीता के पति विकास से मैंने बात की। वह अवाक है। मैंने उसकी जुनूनी हालत देखी है। पत्नी की असमय मौत का दुख और अनिश्चित भविष्य का खौफ उसकी आंखों में था। तीन साल की बेटी और दस साल के बेटे का यह बाप कैमरामैन है। ऐसा कैमरामैन जिसका गुजारा फिल्म या एलबम की शूटिंग पर निर्भर है और रोज नहीं होती। इतना लंबा चौड़ा लिखने का अर्थ यह है कि निर्भगी कलाकारो, एकजुट हो जाओ। अन्याय का विरोध करो। शांति मार्च निकालो और अपनी सामाजिक सुरक्षा की बात करो। सरकार से दो-पांच लाख की बात मत करो। रोजगार और सुरक्षा की बात करो। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो आज नहीं तो कल तुम भी मरोगे।

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