उत्तराखंड की हसीन वादियों में बसा है एक ऐसा गांव है जो उधार देता है। ये सुन कर आपको भी अजीब लग रहा होगा लेकिन ये हकीक़त है। टिहरी जनपद के सीमान्त विकासखंड भिलंगना में स्थित है एक हैरतंगेज गांव… जिसकी अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है.. इस गांव के लोग दूसरी घाटियों को उधार दिया करते थे। जिसमें केदारघाटी प्रमुख क्षेत्र हुआ करता था।
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खेती और पशुपालन ने बनाया गंगी को लोन विलेज। Last Village of Tehri Garhwal
गंगी गांव खेती और पशुपालन के लिए प्रसिद्व है। पूरी भिलंगना घाटी में गंगी ही ऐसा गांव है जहां सबसे अधिक खेती योग्य जमीन है और प्रत्येक घर में आपको बडी संख्या में भेड़, बकरी, गाय और भैंस दिख जाएंगी। गंगी गांव के पूर्वज पहले से कम धनराशि में अपना जीवन यापन करते थे। बचत के कारण उनके पास जो धनराशि जमा होती गई उसे धीरे धीरे ब्याज पर लोन देना शुरु कर दिया। धीरे धीरे ये गांव लोन विलेज के रुप में विकसित होता गया। जानकारों का कहना है कि गंगी गांव की अपनी अर्थव्यवस्था है। गंगी गांव के लोग ही प्राचीन समय में केदारघाटी, गंगोत्री और तिब्बत के साथ व्यापार करते थे। गंगी गांव के पूर्व प्रधान रहे नैन सिंह कहते है कि वे भेड़ पालन, आलू, चौलाई और राजमा को बेचने के बाद जो धनराशि बचाते है उसे ही ब्याज पर लोन देते थे।
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अमूल्य वन संपदा से घिरा है गंगी गांव। Last Village of Tehri Garhwal
गंगी गांव हिमालय की गोद में बसा है। प्राकृतिक सौन्दर्य और चारों तरफ से घने जंगलों से घिरा ये गांव आलू, चौलाई और राजमा की खेती के लिए ही प्रसिद्व नही है बल्कि यहां की आबोहावा और हिमालय की ठंडी हवाएं आपको अलग की दुनिया में होने का अहसास कराती है। गंगी गांव से लगे जंगल में बांज, बुरांश, खर्सू, मोरु, थुनेर, पांगर, राई और मुरेंडा सहित कई प्रजाति के पेड जंगलों में पाए जाते है। जीव जन्तुओं के लिए भी ये इलाका किसी स्वर्ग की भांति है। जहां काला भालू, भूरा भालू, हिमालयन थार, कस्तूरी मृग, मोनाल, भरल, सांभर और बारहसिंघा जंगलों में पाए जाते है। इसके अलावा यहां कई जड़ी बूटियों का खजाना भी छुपा है।
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अनोखी खेती और परम्परा है गंगी गांव में..। Last Village of Tehri Garhwal
खेती की जमीन केवल गंगी गांव में ही नही है बल्कि कई तोक में फैली है। गंगी गांव के लोग रीह, नलाण, देवखुरी और ल्वाणी तोक में भी खेती करते है और यहां पर उनकी छानियां मौजूद है। भेड़ पालन के कारण वे अस्थाई रुप से वर्ष भर इनमें रहते है या यूं कहे कि धुमन्तु जीवन जीते है। गंगी गांव के ग्रामीण कहते है कि वे वर्ष भर अपने अन्य तोक में जाते है। सदियों से उनके पूर्वजों ने कड़ी मेहनत की और फिर बचत से द्वारा कुछ धनराशि केदार, गंगोत्री और भिलंगना घाटी में ब्याज पर उधार देनी शुरु की। गांव में अन्न और पशुधन से कमाई होती है।
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केदारघाटी में दिया सबसे ज्यादा उधार..। Last Village of Tehri Garhwal
गंगी गांव के लोगों ने सबसे अधिक धनराशि लोन के रुप में केदारघाटी में दी है। केदारनाथ से लेकर गौरीकुंड, सोनप्रयाग, त्रिजुगीनारायण, सीतापुर और गुप्तकाशी जैसे बाजारों में कई होटल, ढाबे, घोडे़ खच्चर और छोटे बडे व्यवसायी गंगी गांव से उधार लेते आए है। उधार देने की प्रक्रिया भी अजीबोगरीब है। यहां केवल सोमेश्वर भगवान ही गवाह होता है। केदारघाटी ही नही बल्कि गंगोत्री और भिलंगना घाटी में भी इस गांव के लोगों ने उधार दिया है। गंगी के ग्रामीण बताते हैं कि केदारनाथ त्रासदी के बाद अब अधिकतर लोग ब्याज पर ली गई धनराशि को देने से मुकर रहे है। कई लोगों की धनराशि जगह जगह फंसी हुई है। गंगी गांव का केदारघाटी से सदियों पुराना नाता है। गंगी गांव से त्रिजुगीनारायण और केदारनाथ के लिए आज भी पैदल मार्ग है साथ ही गंगी से खतलिंग ग्लेशियर होते हुए गंगोत्री घाटी में जा सकते है। गंगी गांव के ग्रामीण पूर्व में तिब्बत से भी व्यापार करते थे।
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ना कोई खाता ना कोई लिखा-पढ़ी सिर्फ… देवता की सौगंध। Last Village of Tehri Garhwal
गांव के बीचोबींच भगवान सोमेश्वर का प्राचीन मंदिर स्थित है। उधार देने से पहले इसी मंदिर के प्रांगण में एक दिया जलाकर भगवान सोमेश्वर को साक्षी मान उधार दिया जाता है। केदारनाथ त्रासदी से पहले सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन उसके बाद इस गांव की पूरी तस्वीर बदल गई। सालों से पूर्वजों ने केदारघाटी के व्यवसाईयों को उधार दिया था लेकिन जलजले में कई लोगों के होटल, लाज, घोडे खच्चर सब कुछ खत्म हो गये। अब गंगी के साहूकारों का मूलधन और ब्याज सब रुक गया। साहूकार कई बार केदारघाटी में अपने पैसों के लिए गये लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पडा था। 2013 में केदारघाटी में तबाही के बाद गंगी के ग्रामीण भी सीधे प्रभावित हुए। बताया जाता है कि गंगी के लोग पहले से ही केदारघाटी से जुडे हुए थे। ना सिर्फ व्यापारिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक रिश्तों से गंगी उस घाटी से जुडा हुआ था लेकिन आपदा के बाद वे भी उधार लौटाने के लिए आनाकानी कर रहे है।
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18वीं सदी का जीवन जीने को मजबूर हैं ग्रामीण। Last Village of Tehri Garhwal
गंगी गांव नई टिहरी जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर सीमांत में बसा हुआ है। बड़ी आबादी वाला गंगी गांव आज भी डिजिटल इंडिया के इस दौर में मोबाइल नेटवर्क-इंटरनेट और ऊर्जा प्रदेश होने के बावजूद बिजली से कोसों दूर है। आजादी के इतने साल बाद भी ग्रामीणों को मोबाइल फोन पर बात करने के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। सूचना तकनीकी के अभाव में गंगी गांव के ग्रामीण 18वीं सदी का जीवन जीने को मजबूर हैं। आज जहां डिजिटल इंडिया के दौर में देश के बच्चे अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं वहीं, गंगी गांव के बच्चे बिना मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट के अपना भविष्य अंधेरे में जीने को मजबूर हैं। वहीं बिजली की बात करें तो आज भी ग्रामीण गांव में बिजली आने का इंतजार कर रहे हैं। बिजली के पोल भी दो साल पहले विभाग द्वारा तो लगा दिए गए लेकिन आज भी ग्रामीण इंतजार कर रहे हैं कि कब गांव में बिजली पहुंचे और उनके घर जगमगाएं। ग्राम सभा की प्रधान लक्ष्मी देवी का कहना है कि यहां नेता सिर्फ वोट लेने आते हैं जिसके बाद कभी नहीं दिखाई देते। उन्होंने कहा कि इस गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
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कैसे पहुंचे द लोन विलेज गंगी गांव। Last Village of Tehri Garhwal
घनसाली से करीब 30 किमी की दूरी पर बसा है खूबसूरत कस्बा घुत्तू… घुत्तू से एक पैदल मार्ग पंवालीकांठा बुग्याल के लिए जाता है और दूसरा मार्ग भिलंगना घाटी में स्थित देश के अंतिम गांव गंगी के लिए निकलता है। प्राचीन समय में जब सडकें नही थी तब गंगोत्री से पैदल सफर कर घुत्तू होते हुए केदारनाथ की यात्रा की जाती थी। उस दौरान घुत्तू पैदल यात्रा का केन्द्र बिन्दु हुआ करता था। घुत्तू से करीब 10 किमी सड़क से सफर करने के बाद रीह तोक पडता है…..रीह तोक भी गंगी गांव का ही हिस्सा है। यहां से करीब दस किमी सड़क मार्ग से सफर कर गंगी गांव पहुचा जाता है। समुद्रतल से करीब 2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगी को प्रकृति ने अनमोल खजाने से नवाजा है।