भाग-द्वितीयः आज भी बुजुर्गों की यादों में बसा है अपना लुठियाग गांव..
रुद्रप्रयागः जनपद के जखोली विकासखंड के अंतर्गत ग्राम सभा लुठियाग आज रोड के आभाव में बदहाली का रोना रो रहा है। इस ग्राम सभा में पुराने पुश्तैनी घर आज खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। इस गांव में पूर्व में 150-200 परिवार रहा करते थे लेकिन आज यह गांव 15 परिवारों में तक ही सीमित रह गया है। जिसका मुख्य कारण इस गांव में रोड़ का न होना है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि जब आज हम गांव को देखते हैं तो बहुत दुःख होता है कि एक आबाद खुशहाल गांव खंडहर में स्वरूप में है। वहीं महिलाओं का भी कहना है कि जब हम लोग लुठियाग गांव में रहते थे तो सभी मिलजुल कर रहते थे लेकिन अपनी सुविधा को देखते हुए जब सभी लोग तोक चिरबटिया, खल्वा की तरफ रुख करने लगे तो एक दूसरे से अलग हो गए। वो जो गांव की चहल पहल होती थी वह देखने को नहीं मिलती है। महिलाएं आगे कहती हैं कि हम सभी महिलाएं साथ में पानी लेने जाती थी घास पत्ती लेने साथ में जाते थे और साथ में वक्त बिताते थे लेकिन आज सभी एक दूसरे से दूरी बनाकर रहते हैं।
पूरे क्षेत्र में यहां के देवकार्य थे विख्यात
ग्रामिण बताते हैं कि जब लुठियाग में पांडव नृत्य या लीला होती थी तो दूर दूर से लोग यहां आते थे। पूरे क्षेत्र में यहां की पांडव लीला नृत्य काफी चर्चित थी। साथ ही कई प्रकार के अन्य देव कार्य भी होते थे जैसे देव जात, देव जग्गी, नागराजा, नगेल, राजराजेश्वरी देवी जात, रणभूत नृत्य, नगदोऊ पूजन सहित कई देव कार्य होते थे लेकिन आज ये सब देवकार्य बातों और चर्चाओं में ही हैं। वक्त के साथ साथ नई पीढी इसकों भूलती जा रही है जिसके चलते हमारी परंपरा और संस्कृति खत्म होती जा रही है।
देवकार्य, त्यौहार और शादी समारोह में पहुंचते थे गांव
गांव में जब भी देवकार्य हो या शादी समारोह हो तो सभी लोग चिरबटिया, खल्वा तोक से गांव पहुंचते थे। अपने मवेशियों बाल बच्चों के साथ लुठियाग गांव में ही रहते थे। सभी लोग देवकार्य व संस्कृति का निर्वाह करते थे लेकिन वक्त के साथ साथ और सुविधाओं के न होने के चलते लोगों ने लुठियाग गांव से मुंह फेर लिया। एक बुजुर्ग बताते हैं कि जब दिपावली आती थी तो ग्राम के औजी(ढौल बजाने वाले) गांव में पहुंचे थे और सभी ग्रामिण गांव पहुंच जाते थे। जिसके बाद दिपावली को बडे हर्षोंल्लास के साथ मनाया जाता था। गांव के पंचायती चौक(आंगन) में करीब 150-200 लोग एकत्रित होते थे नाच गाना करते थे पर आज वो दिन याद करके बहुत दुख होता है बुजुर्ग का कहना है कि हमारा खेलने का पालना टूट गया है।
मिलजुल कर रहने की प्रथा हुई समाप्त
हमारे पूर्वज पहले मिलजुल कर एक जगह में रहना पसंद करते थे जिससे की किसी को कोई दिक्कत हो तो एक दूसरे के काम आ सकें परंतु उसके विपरित आज लोग अलग अलग रहना पसंद करते हैं किसी की दखल पसंद नहीं करते। बुजुर्गों का कहना है कि जब हम गांव में रहते थे तो रात रात तक सभी लोग बैठकर बातें करते थे ग्राम की समस्याओं पर चर्चा करते थे एक दूसरे का दुखदर्द समझते थे। लेकिन आज हम एक दूसरे के घर भी नहीं जाते। ग्रामीणों एक में दूरी सी प्रतित होती हैं जिससे अंदर ही अंदर दुःख होता है।
विधायक भरत सिंह चौधरी ने दिया अश्वासन
रुद्रप्रयाग के नवनिर्वाचित विधायक भरत सिंह चौधरी ने गांव वाले को संदेश भेज कर ग्रामवासियों को अपनी जीत में गांववासियों का धन्यवाद किया है जिसमें मातृशक्ति का विशेष आभार व्यक्त किया है। उन्होने ग्रामवासियों और गांव की मातृशक्ति को कहा कि इस बार वह ग्राम लुठियाग तक रोड़ जरूर पहुंचाएंगे, यह विषय उनकी प्राथमिकता में हैं। जिस संदर्भ में कुछ प्रक्रिया शेष है जिसकों पूर्ण होते ही गांव में रोड इस बार जरूर पहुंचेगी।