केदारपुरी का विकास या भविष्य की नई आपदा…

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वरिष्ठ पत्रकार व फाउंडर रूरल टेल्स संदीप गुसाईं की फेसबुक वॉल से.. केदारनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य पर भू वैज्ञानिक सवाल खडे करते रहे है। जून 2013 की आपदा के बाद से भी केदारनाथ में कई स्थाई निर्माण हो चुका है।वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान के शोध में चौकाने वाले तथ्य सामने आए है। हमने पहले भी इन शोध को आपके सामने रखा था आज फिर बता रहे है। सबसे बड़ा सवाल खडा होता है कि क्या केदारनाथ में हो रहे निर्माण कार्य भविष्य में किसी बडी अनहोनी को न्यौता तो नही दे रहे? 2013 की आपदा के बाद जीएसआई ने एक विस्तृत रिपोर्ट राज्य और केंद्र सरकार को सौंपी थी जो उस समय के सभी बड़े भू वैज्ञानिकों और ग्लेशियर एक्सपर्ट की राय के आधार पर थी, लेकिन अपने देश में वैज्ञानिकों की राय कौन सुनता है।

हिन्दुओं के आस्था का केन्द्र और ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम को लेकर वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। वाडिया संस्थान के साथ ही इस रिपोर्ट में बिरबल साहनी संस्थान लखनऊ, गढवाल विवि, फिजीकल रिसर्च लैबोरेटरी अहमदाबाद और नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी नई दिल्ली के वैज्ञानिक शामिल थे। वैज्ञानिकों ने केदारनाथ में करीब 130 सैम्पल एकत्रित कर पांच प्रयोगशालाओं में भेजे। इस रिपोर्ट में इसका भी उल्लेख किया गया कि वैश्विक जलवायु का केदारनाथ धाम पर क्या असर पडा। भू वैज्ञानिकों ने केदारनाथ के 10 हजार सालों का जलवायु का रिकार्ड हासिल किया।

वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक बताते है कि केदारनाथ में जलवायु परिवर्तन का असर पहले भी था। उस समय प्रदीप श्रीवास्तव इस शोध में शामिल थे जो अब आईआईटी रुकडी जा चुके है। केवल यही रिपोर्ट नहीं बल्कि कई संस्थाओं ने यहां शोध कर ये चेतावनी दी है कि केदारनाथ में ज्यादा निर्माण भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है। पूरे देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हिमालय में शोध का सबसे बड़ा संस्थान वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान है जिसकी अपनी एक प्रतिष्ठा है। यहां ग्लेशियर विभाग के हेड रहे डॉ. डीपी डोभाल (रि.) भी कई बार कहते रहे कि केदारनाथ में भारी निर्माण बेहद नुकसान देह है वो कहते है केदारघाटी में रुद्रा प्वाईंट से रामबाडा तक कई एवलांच प्वाईंट है और केदारनाथ मंदिर के पीछे भी चोराबाड़ी और कम्पेनियन ग्लेशियर में कई एवलांच प्वाईंट है।

वाडिया संस्थान की नई रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये आया है कि केदारनाथ की भूमि अस्थिर है। इस शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि केदारनाथ में भारी निर्माण बेहद खतरनाक है। दस हजार साल पहले जिस ग्लेशियर केदारनाथ से पिघल गया तो वहां स्नाऊट के पास बडे बडे बोल्डर बच गये। इन्ही बोल्डरों पर करीब 5-6 हजार साल पहले मिट्टी की 5 मीटर परत बनती चली गई जो बिल्कुल दलदल था। इससे पहले भी वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान ने 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ को लेकर विस्तृत अध्ययन किया था और अपनी रिपोर्ट भारत सरकार सहित कई संस्थानों को भेजी थी। उस रिपोर्ट में भी स्पष्ट था कि केदारनाथ में रामबाडा से ऊपर भारी निर्माण ना किया जाए। भू वैज्ञानिकों की चेतावनी के बाद भी केदारनाथ में विगत 7 सालों से कंक्रीट का जंगल तैयार किया जा रहा है।

सवाल खड़ा होता है कि जब लगातार भू वैज्ञानिक अपनी रिपोर्ट में केदारनाथ में निर्माण कार्य को खतरनाक बता रहे है तो फिर क्या फिर जून 2013 जैसी आपदा का इंतजार हो रहा है। केदारनाथ जलजले से भी हमारी सरकारों ने सबक नहीं सीखा तो आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते है। भू वैज्ञानिक मानते है कि केदारनाथ में भारी निर्माण कार्य तुरंत बंद होना चाहिए। ये तो निर्माण कार्यों से जुड़े सवाल है लेकिन मंदिर प्रांगण को बदल दिया गया। केदारनाथ में मंदिर के ठीक सामने उद्धव कुंड था जिसका पानी गो मूत्र के समान पवित्र माना जाता था। श्रद्धालु उसके पानी को घर की शुद्धिकरण के लिए ले जाते थे। इस प्राचीन कुंड को इसलिए हटा कर दूसरी जगह बना दिया क्योकि यह 70 फ़ीट चौड़े आस्था पथ के बीच में आ रहा था। मंदिर के पीछे आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति और स्थान भी बदला गया।

सरस्वती नदी 2013 की आपदा के बाद अपनी दिशा बदल चुकी थी उसे भी बदल दिया गया। कुल मिलाकर वहां काम वाडिया भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार नहीं बल्कि दिल्ली और गुजरात के इंजीनियर के अनुसार किया गया। पहाड़ और मैदान के मंदिरों की वास्तु और निर्माण की अपनी अलग विधि है। अभी भविष्य में भी केदारनाथ के साथ बहुत छेड़छाड़ की जाएगी। वक्त सबसे बड़ा बलवान है। बाबा केदार की सब पहले तबाह किया था और जब चाहेंगे ये बाहरी आडंबर और दिखावा खत्म कर देंगे। 12 ज्योतिर्लिंग में केवल केदारनाथ ही हिमालय में विराजमान है। जिस पत्थर को भक्त भगवान भोलेनाथ स्वीकारते है वहां  इसका भंडार है। ना जाने कितने ऐसे पत्थर जमीन के अंदर है जिसमें भोले बसे है। आज भी श्रद्धालु केदार में दर दर की ठोकर खा रहे है। उन्हें कमरे 5 से 8 हजार में मिलते है। हैलीपैड में श्रद्धालु दिन भर वहीं बैठे रहते है।

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