उत्तराखंडः रंग-बिरंगी मछलियों का संसार, जहां मछली सेवा ही है नारायण की सेवा। देखें वीडियों..
भारत जैव विविधता के सन्दर्भ में सर्वोपरि देश है। इसका मुख्य कारण भारत को मिला प्रकृति का वो वरदान है जिसने एक तरफ जहां इस देश को दक्षिणी और उतरी-पूर्व भू-भाग में सदाबहार वन दिए तो वहीं दूसरी तरफ पश्चिम में विशाल रेगिस्तान भी दिया है। वहीं उत्तर में सुन्दर और मनमोहक बर्फ से लदी हुई पहाड़ियां दी तो दक्षिण में एक शांत और विशालकाय समुद्र भी दिया। देश की यह भू-गर्भीय विविधिता विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं को रहने के लिए अनुकूल आवास प्रदान करती है। यही कारण है कि पारिस्थितिकी की दृष्टि से दुनिया में महत्वपूर्ण जीव बाघ के लिए भी हिमालय का तराई क्षेत्र विश्व का अनुकूल स्थान है। इसका एक उदहारण यह भी है कि विश्व में पाई जाने वाली पौधों की 33 प्रतिशत प्रजातियां केवल भारत में ही पाई जाती हैं।
वहीं बात करें उत्तराखंड की तो यहां हर जगह की अपनी अनोखी विशेषता है और साथ ही धर्म से जुड़ी अलग-अलग मान्यताएं हैं। देवभूमि में इन्हीं में से एक स्थान है बधाणीताल जो धार्मिंक मान्यताओं के साथ ही जैव विविधता को भी समेटे हुए है। रंग-बिरंगी मछलियों के लिए मशहूर बधाणीताल में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। बधानी ताल रुद्रप्रयाग जनपद के उत्तरी जखोली वन अनुभाग में स्थित बधानी गांव, जोकि बांगर पट्टी का एक गांव है। बधानी ताल समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भगवान त्रिजुगीनारायण का एक सिद्ध स्थान भी है। प्रकृति के वरदान से सुशोभित इस धरती पर स्थान स्थान पर धर्म से जुड़ी हुई भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं जो कि इस जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान निभाती हैं।
धार्मिक दृष्टि से महत्व
यह स्थान भगवान विष्णु का स्थान है। ऐसी मान्यताएं हैं कि रुद्रप्रयाग जिले में त्रिजुगीनारायण गांव में भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह हुआ। जिसमें भगवान विष्णु ने उनके भाई के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपनी नाभि से जल धारा निकालकर वहां कुण्ड का निर्माण किया। ये कुंड आज एक ताल बन चुका है। इस क्षेत्र के इर्द-गिर्द सुरम्य पहाड़ियां, हरी-भरी मखमली घास, कई प्रजातियों के पुष्प और पक्षियों का कलरव सैलानियों को खूब भाता है। इसके सामान में बधानी ताल को “ओरण (सेक्रेड ग्रूव)” कहें तो गलत नहीं होगा क्योंकि यहां पर हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली मछलियों का संरक्षण भी हो रहा है। इस ताल का नाम बधाणी गांव के नाम पर ही रखा गया है। धार्मिक मान्यता है कि ये भगवान त्रिजुगीनारायण का सिद्ध स्थान है। त्रिजुगीनारयण तीन शब्दों त्रि यानी तीन, जुगी यानी युग और नारायण यानी भगवान विष्णु से मिलकर बना हुआ है।
ग्रामीणों की मान्यता
जब हिलवाणी की टीम बधानी ताल पहुंची तो बधानी गांव के ग्रामीणों से बात की.. वहां के लोगों का कहना है कि पूर्व में जब त्रिजुगीनारायण में कोई पूजा होती थी तो बधानी ताल में वहां से तिल जौ बहकर आते थे। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि इस ताल की खासियत है कि यह ताल फसलों के रंग के हिसाब से अपना रंग बदलाता है। जिस रंग की फसल होगी उस रंग का पानी हो जाता है। बधानी गांव के लोग खाना खाने के बाद जब हाथ धोते हैं तो ताल की दिशा में नहीं धोते क्योकि वह लोग मानते हैं कि पानी ताल में चला जाएगा। ग्रामीण खाना खाने के बाद हाथ किसी बर्तन में धोते हैं ओर फिर उस पानी को ताल से दूर दुसरी दिशा में पानी फैंकने जाते हैं। ग्रामीण ताल, मछली और ताल के पानी को पवित्र मानते हैं।
मछलियों को पकड़ना है प्रतिबंधित
इस ताल की विशेषता है कि ये जल संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देता ही है, साथ ही इस ताल में हिमालय में पाई जाने वाली अनेक प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियां भी हैं। इन रंग-बिरंगी मछलियों को न तो कोई पकड़ता है और न ही कोई नुकसान पहुंचता है। यहां पर मछलियों को पकड़ना मना है। यहां मछलियों की सेवा भगवान त्रिजुगीनारायण की सेवा करना माना जाता है। इन्हें नुकसान पहुंचाना मतलब देवता को नुकसान पहुंचाना है। यहां के इष्ट श्री त्रिजुगीनारायण इस ताल के संरक्षक है। इसी मान्यता के आधार पर यहां मछलियां पकड़ना प्रतिबंधित है। लोगों का मत है कि यहां मछलियों की सेवा देवता की सेवा है।
बढ़ रही है पयर्टकों की आवाजाही
अब तक पर्यटन की दृष्टि से ओझल रहा बधाणीताल अब धीरे-धीरे लोगों की पसंदीदा जगहों में शामिल हो रहा है। अधिक उंचाई पर होने के कारण बधाणीताल में सर्दियों में जमकर बर्फबारी भी होती है। बधाणीताल में पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोग भी बर्फबारी का जमकर लुप्त उठाते हैं। बधाणीताल सुन्दर प्राकृतिक झील और झील में मिलने वाली रंग-बिरंगी मछलियों के लिए जाना जाता है। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ ही सुरक्षित पर्यटक स्थल होने के कारण अब हर साल यहां पर पयर्टकों की आवाजाही लगातार बढ़ रही है। जब से यह क्षेत्र सड़क मार्ग से जुड़ा है तब से यह पर्यटन का केंद्र बन गया है। ऊंची ऊंची पहाड़ियों के बीच एक शान्त स्थान पर स्थित ताल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यहां लोग भगवान् विष्णु के दर्शन कर स्वयं को अभिभूत महसूस करते हैं और यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य से प्रफुल्लित होते है।
कैसे पहुंचे बधाणीताल
अगर आप दिल्ली या देहरादून से चल रहे हैं तो ऋषिकेश होते हुए आपको रुद्रप्रयाग तक का सफर तय करना होगा। यहां से केदारनाथ मार्ग के एक मुख्य पड़ाव तिलवाड़ा तक पहुंचना होगा। तिलवाड़ा से जखोली ब्लॉक के मुख्य पड़ाव मयाली होते हुए आप बधाणीताल तक का सफर आराम से अपनी गाड़ी से तय कर सकते हैं। आपको बताते चलें की हिमालय की गोद में पहाड़ियों के मध्य में स्थित यह बधानी ताल भारतीय सभ्यता की संरक्षण प्रकृति का पर्याय भी है और निकटवर्ती क्षेत्रों का धार्मिक पर्यटन स्थल भी है।