चुनावी माहौल में सोशल मीडिया की चुनौतियां..
कोरोना संक्रमण से उपजे चुनावी प्रचार-प्रसार की विवशताओं के कारण वर्तमान चुनाव का परिदृश्य बदल रहा है, लेकिन इसके साथ ही सोशल मीडिया की कई चुनौतियों का सामना नेता जनता और चुनाव आयोग कर रहा है। सोशल मीडिया पर नेताओं के कारनामों के पुराने पुराने वीडियो वायरल होने से नेता बेहद परेशान हो रहे हैं। राजनीतिक दलों द्वारा सस्ते बेरोजगारों की एक फौज को रोजगार देकर ऐसे वीडियो एक-दूसरे के लिए हथियार के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं।
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जनता का एक वर्ग ऐसा है, जिसे नये पुराने वीडियो के वायरल होने के पीछे बात समझाने और समझने से कोई मतलब नहीं है। ऐसे वायरल पोस्टों में अखबार की कटिंग, ऑडियो, वीडियो खूब प्रचारित किए जा रहे हैं। चुनावी माहौल में इन दिनों ऐसी वायरल पोस्टों की खूब बाढ़ आ गई, जिसमें नेताजी की जुबान फिसलना, जनता से अभद्र व्यवहार, महिलाओं से अश्लील व्यवहार, काम के लिए सौदेबाजी, सरकारी कर्मचारी, पुलिस-प्रशासन आदि से बदसलूकी जैसे कारनामे हैं। राजनीतिक पार्टियों के समर्थकों के बीच ऐसी वायरल पोस्टे विवाद का कारण बन रही हैं।
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चुनावी माहौल में एक-दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा और अपने नेताजी के किये धरे पर मिट्टी डालने में समर्थक पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कई बार ऐसी स्थिति भी पैदा हो रही है कि नेताजी के चक्कर में समर्थक अपना आपा खो रहे हैं। चुनाव आयोग के लिए सोशल मीडिया में चुनावी खर्चे का लेखा-जोखा रखना मौजूदा दौर में असंभव प्रतीत हो रहा हैं। बहरहाल पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया राजनीतिज्ञों के लिए प्रचार प्रसार का सबसे बड़ा साधन जरूर बना है, लेकिन सोशल मीडिया पॉलिटिक्स को डर्टी पॉलिटिक्स बनाकर कई तरह की चुनौतियां पैदा कर रहा है।
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