उत्तराखंड: जंगल है तो जीवन है। सौ साल पुराने साल के जंगल का सफाया..

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लेख: त्रिलोचन भट्ट
देहरादून: विकास के नाम पर एक बार फिर से उत्तराखंड में विनाश का खेल शुरू कर दिया गया है। चारधाम सड़क परियोजना के नाम पर हजारों पेड़ों की बलि देने और पर्यावरण प्रभावों का अध्ययन करने वाली कमेटी की सिफारिशों को दरकिनार करने के बाद जिस अवैज्ञानिक तरीके से राज्य में चारधाम सड़क परियोजना के लिए पहाड़ों को काटा गया है, वह हमेशा के लिए नासूर बन जाने की स्थिति में है। इस बीच देहरादून से दिल्ली के बीच सड़क मार्ग के सफर का समय कम से कम करने के लिए देहरादून- सहानरपुर- दिल्ली कोरिडोर बनाया जा रहा है। यह कथित कोरिडोरी देहरादून-दिल्ली हाईवे को चौड़ा करके बनाया जा रहा है। इस हाईवे पर उत्तर प्रदेश के सहानपुर जिले और उत्तराखंड के देहरादून जिले का करीब 11 किमी लंबा अरावली का घने जंगलों वाला क्षेत्र भी आता है। सहारनपुर जिले का यह क्षेत्र मोहंड रेंज और देहरादून जिले का क्षेत्र आशारोड़ी रेंज है। इन दोनों रेंज पर इन दिनों साल और सागौन जैसे बेशकीमती पेड़ों को काटा जा रहा है। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश की सीमा में 11 हजार और उत्तराखंड की सीमा में 4200 पेड़ काटे जाने हैं। देहरादून की कुछ संस्थाएं जंगलों को काटे जाने का विरोध कर रही हैं, लेकिन यह विरोध नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित हो रहा है।

आशारोड़ी में प्रदर्शन करने पहुंचे कुछ लोग।

देहरादून की सिटीजन फॉर ग्रीन दून और द अर्थ एंड क्लाइमेट इनिशिएटिव जैसी संस्थाओं के लोगों ने आशारोड़ी जाकर पेड़ों के कटान का विरोध किया। बहुत कम संख्या में पहुंचे इन लोगों ने गीत गाकर और और तख्तियां लेकर पेड़ काटे जाने का विरोध किया और आने वाले दिनों में फिर से बड़ा विरोध प्रदर्शन करने का भी ऐलान किया। आशारोड़ी में सौ साल से भी पुराने साल के पेड़ों को काटा जा रह है। काम इतनी तेजी से चल रहा है कि एक भरे-पूरे साल के पेड़ तो जमींदोज कर ठिकाने लगाने तक में बस कुछ मिनट का समय लग रहा है। पेड़ों को इलेक्ट्रिक आरी से गिराने के बाद कुछ ही मिनट में उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये जाते हैं और फिर सड़क पर खड़े वाहनों में लादकर रवाना कर दिया जाता है। अब तक 500 से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं और बाकी को काटने का काम भी तेजी से चल रहा है।

जंगल है तो जीवन है…

पेड़ बचाने के इस प्रदर्शन में जितने लोग शामिल हुए, उससे ज्यादा पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई थी। इस छोटे से प्रदर्शन की प्रतिक्रिया में 31 मार्च सुबह सीएम ऑफिस उत्तराखंड के ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट आया। इस ट्वीट में मुख्यमंत्री की ओर से कहा गया है कि देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस वे पर तेजी से कम चल रहा है। जल्दी निर्माण कार्य पूरा होगा जिससे देहरादून से दिल्ली की दूरी महज 2.30 घंटे रह जाएगी। एक तरह से इस ट्वीट के माध्यम से मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से पेड़ों के काटन को उचित और जरूरी ठहरा दिया गया है, क्योंकि देहरादून से दिल्ली 2.30 घंटे में पहुंचना जरूरी है। खास बात यह है कि सिर्फ पांच दिन पहले चिपको आंदोलन की वर्षगांठ से पुष्कर सिंह धामी नाम के ट्विटर हैंडल से मुख्यमंत्री की ओर से पर्यावरण आंदोलनकारियों को नमन किया गया था और गौरादेवी, सुन्दरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट को पर्यावरण संरक्षण के मामले में प्रेरणा स्तंभ के रूप में याद किया गया था।

आशोरोड़ी पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का ट्वीट

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दो दिन पहले यानी 29 मार्च, 2022 को उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के वन भूमि संबंधी एक मामले में स्पष्ट तौर पर कहा है कि ‘पर्यावरण आपके सभी नागरिक अधिकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ न्यायालय ने हर हाल में वनों को संरक्षित रखने की बात कही और साथ में यह भी जोड़ा की सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के कारण ही आज देश में वन क्षेत्र बढ़ रहा है। सुप्रीम के इस आदेश के उलट उत्तराखंड में कुछ और ही चल रहा है। आशोरोड़ी में पेड़ बचाने की मुहिम को लेकर सोशल मीडिया पर शेयर किये गये पेड़ गिराये जाने लाइव वीडियो और अन्य तस्वीरों पर बड़ी संख्या में एक खास पार्टी के लोग सक्रिय हैं। वे न सिर्फ इस मुहिम को चलाने वालों को विकास विरोधी बता रहे हैं, बल्कि व्यक्तिगत टिप्पणियां और अभद्र भाषा का भी इस्तेमाल जमकर कर रहे हैं।

चिपको दिवस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का ट्वीट।

आशारोड़ी के अलावा देहरादून में सहस्रधारा रोड के पेड़ों और थानो रेंज के जंगलों को काटने की भी योजना बनाई जा चुकी है। इस दोनों योजनाओं के खिलाफ देहरादून में बड़े आंदोलन भी हुए और दोनों योजनाओं पर फिलहाल काम बंद है। थानों रेंज में 243 एकड़ में फैले जंगलों को काटकर यहां जौलीग्रांट एयरपोर्ट का विस्तार किया जाना प्रस्तावित है। इस योजना में 9,745 पेड़ों को काटा जाना है। 2020 में इस प्रस्ताव को लेकर बड़ी हलचल रही थी और बड़ा आंदोलन हुआ था। फिलहाल यहां पेड़ काटे जाने की योजना स्थगित है, हालांकि योजना को वापस नहीं लिया गया है और कभी भी थानों के जंगलों का कटान शुरू हो सकता है। थानों रेंज के जिस हिस्से पर जंगल काटे जाने हैं, वह अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यह हजारों तरह की वनस्पतियों के अलावा हाथी और टाइगर सहित सैकड़ों प्रजाति के पशु-पक्षी भी हैं। सहस्रधारा रोड के सैकड़ों पेड़ों को भी काटने की योजना तैयार है। ये पेड़ मसूरी बाईपास को चौड़ा करने के लिए काटे जाने हैं, हालांकि विरोध के कारण फिलहाल इस योजना पर भी काम रुका हुआ है।

ऐसे काटे जा रहे साल के पेड़।

अब झाझरा का जंगल भी संकट में
देहरादून के एक और जंगल के भी सड़क चौड़ीकरण के लिए तबाह हो जाने की आशंका बन गई है। आज यानी 31 मार्च 2022 की सुबह 9.12 बजे केन्दीय्र सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट करके सूचना दी है कि उत्तराखंड में एनएच-72, पांवटा साहिब से बल्लूपुर (देहरादून) रोड को 4 लेन बनाने के लिए 1093.01 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है। हालांकि यह हाईवे अब भी दो लेन का ठीेक-ठाक चौड़ा हाईवे है। इस हाईवे पर फिलहाल जाम जैसी भी कोई समस्या नहीं होती। यदि इस हाईवे को 4 लेन बनाया जाता है कि देहरादून के एक और वन क्षेत्र की भेंट चढ़ानी होगी। झाझरा के इस वन क्षेत्र में भी सैकड़ों पेड़ काट दिये जाएंगे।

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का ट्वीट।

चौड़ी सड़कों से पर्यटन को बढ़ावा और आम नागरिकों को सहूलियत मिलने की बात पर सिटीजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा असहमति जताते हैं। वे इसे आम लोगों और पर्यटकों के साथ धोखा करार देते हैं। हिमांशु कहते हैं कि यदि जंगलों का विनाश करके 4 या 6 लेन सड़कें बन भी जाएं और लोग सचमुच ढाई घंटे में दिल्ली से देहरादून के बॉर्डर तक पहुंचने लगें तो आगे कहां जाएंगे और इन चौड़ी सड़कों के कारण शहर में जो ट्रैफिक पहुंचेगा, उससे कैसे निपटा जाएगा, इस बारे में सरकार के पास कोई रोड मैप नहीं हैं। हिमांशु कहते हैं अभी भी देहरादून की ये हालत है कि हर दिन मुख्य सड़कों पर घंटों लंबा जाम लग जाएगा। बॉर्डर तक चौड़े हाईवे बन जाने के बाद जो ट्रैफिक उमड़ेगा, उससे निपटना आसान नहीं होगा। ऐसे में ढाई घंटे में दिल्ली से दून की सीमा तक पहुंचने वाले लोगों को शहर की सड़कों पर कई घंटे तक रेंगना पड़ेगा।

आशारोड़ी में तबाही

द अर्थ एंड क्लाइमेंट इंनिशिएटिव के डॉ. आंचल शर्मा कहती हैं कि आशारोड़ी रेंज में फिलहाल जो हाईवे है, वह ठीक-ठाक चौड़ा है। वाहन आसानी से आ-जा सकते हैं। यूपी के मोहंड में चढ़ाई पर कभी कोई बड़ा वाहन पलट जाता है तो जाम लगता है, इसके अलावा कोई परेशानी नहीं होती, फिर इतनी चौड़ी सड़क की क्यों जरूरत हो रही है, वह भी साल जैसी वनस्पति के सैकड़ों साल पुराने जंगल की बलि देकर। पेड़ के बदले पेड़ लगाने के तर्क को वे खारिज करती हैं, कहती हैं कि पेड़ लगा सकते हैं, जंगल नहीं। यहां जंगल काटे जा रहे हैं। डॉ. आंचल कहती हैं कि साल ऐसा वृक्ष है, जो नर्सरी में नहीं उगाया जा सकता। ये प्राकृतिक तरीके से ही उगता है। एक बार चला गया तो वापस नहीं आता। इसलिए इन पेड़ों के काटते वक्त पर्यावरण संबंधी सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

आशोरोड़ी में पेड़ काटे जाने के बाद

विशेष साभार- जनचौक

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