भाजपा प्रदेश कार्यालय में जमकर हुई बंदरबांट, किसकी सांठगांठ से चहेते पोर्टलों पर मेहरबान..

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देहरादूनः प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर माहौल पूरे शबाब पर है। इस बीच वोटरों को लुभाने के खातिर तमाम पार्टियों ने बड़े-बड़े वादे किए। वहीं आज 12 फरवरी ठीक शाम पांच बजे प्रचार प्रसार थम गया है। अगर बात करें भारतीय जनता पार्टी की तो देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों में सुमार है और देश में आज इसी के सबसे ईमानदार और एक कुशल नेतृत्व वाले नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होकर पूरे देश का नेतृत्व कर रहे है। आपको बता दे कि अभी भी उतराखंड में चुनाव की सरगर्मी तेज हैं क्योंकि 14 फरवरी को प्रदेश में मतदान होने हैं।

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वहीं सूत्रों के हवाले से पता चला है कि भाजपा प्रदेश कार्यालय रजिस्ट्रड पोर्टलों जो कि समाचारों के माध्यम से पार्टी के प्रचार-प्रसार को देश प्रदेश के कौने कौने तक पहुचांने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पार्टी द्वारा उनके लिए कुछ धनराशि प्रदेश में पार्टी तक पहुंचाई जाती है। जिसका प्रयोग पोर्टलों को संचालित करने वाले पत्रकारों के लिए किया जाता है। लेकिन पोर्टल को संचालित करने वाले पत्रकारों को दी जाने वाली इस राशि का भाजपा कार्यालय में जमकर बंदरबांट हुई है। क्योकि नेता और पार्टी की मीडिया को देखने वाले लोग या तो अपने परिचितों के पोर्टल को पैंसा बांट देते हैं या किसी सांठगांठ वाले पोर्टल के साथ मिल बांट कर हजम कर जाते हैं। जिन पोर्टल संचालकों के लिए ये पैंसा भेजा जाता है उन तक ये राशि नहीं पहुंच पाती।

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आपको बता दें कि आज के समय में उतराखंड में 300 से अधिक पोर्टल है और जो हमेशा सक्रिय रहते हैं। लेकिन चुनाव के समय इन लाखों रुपये की धनराशि को पोर्टल संचालको को न देकर मिलजुल कर ठिकाने लगा देते है। यानी चुनाव से पहले ही पार्टी के अंदर एक बड़ा भ्रष्टाचार हो जाता है। सवाल इस बात का है कि आखिर इस धनराशि को कौन कौन लोग डकार रहे हैं। अगर इस धनराशि को सही तरीके से पोर्टल संचालकों को वितरित की जाती तो चुनावी प्रचार-प्रसार का कुछ और ही मजा था। अगर भाजपा ने किसी पोर्टल चलाने वाले संचालकों को कुछ धनराशि दी भी होगी तो कुछ गिने चुने पत्रकारों को दी होगी, जबकि संविधान की भाषा मे पत्रकारिता को राजनीति का चौथा स्तंभ कहा जाता है।

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जिससे की पार्टी को पत्रकारों का भी विशेष ध्यान रखना अनिवार्य माना जाता है। वहीं माना जा रहा का यह खेल भाजपा के बडे नेता के शह पर खेला जा रहा है। जिससे कई न्यूज़ पोर्टलों का प्रपोजल जमा करने के बाद उनका नाम हटाया गया और अपने चहेते पोर्टलों या सांठगांठ वाले पोर्टलों को यह धनराशि बांटी गई। यही नही कुछ नेताओं और मीडिया देखने वालों के द्वारा संचालित पोर्टलों को भारी रकम दी गई है। अगर किसी अन्य को दी भी गई है तो उन पोर्टलों को जिनके साथ उनकी सांठगांठ है और अच्छा कमिशन मिला हो। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जीरो टाॅलेरेंस का नारा देने वाली पार्टी के अंदर ही उनके नेता व मीडिया देखने वाले भ्रष्टाचार में कितने लिप्त हैं।

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