बूढ़ी दिवाली: जौनसार बावर में शुरू 5 दिवसीय उत्सव, सबसे अलग और अद्भुत होती है यहां कि इको फ्रैंडली दिवाली..
पूरे देश में प्रकाश पर्व दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाते है, लेकिन वहीं जौनसार के करीब दो सौ गांवों में दीपावली के ठीक एक माह बाद परपंरागत तरीके से पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है। हालांकि क्षेत्र के करीब डेढ़ सौ से अधिक गांवों में देशवासियों के साथ नई दीवाली मनाने की शुरुआत भी कुछ सालों पहले हो चुकी है। लेकिन अंदाज वही पुराना इको फ्रैंडली दीवाली का ही है। यहां की दीवाली पूरे देश को प्रदूषणरहित दीवाली मनाने का संदेश भी देती है। जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में हर तीज-त्योहार मनाने का अंदाज हटकर है।
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लोक संस्कृति की शानदार झलक देखने को मिलती है
जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में मनाई जाने वाली पांच दिवसीय जौनसारी दिवाली या बूढ़ी दिवाली की आज बुधवार को शुरूआत हो गई। पहले दिन गांवों में जश्न का वातावरण दिखाई दिया। गांवों में छोटे बच्चे व बड़े भीमल की लकड़ी से बनाई गई मशालों को जलाकर खुशी मनाते दिखाई दिए। देशभर में मनाई जाने वाली दिवाली के एक महीने बाद जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। पर्व की खास बात यह है कि इसमें क्षेत्र की लोक संस्कृति की शानदार झलक देखने को मिलती है। बुधवार से शुरू हुई दिवाली के पर्व के पहले दिन गांवों में भीमल की लकड़ी से बनाई गई मशाल जिसे स्थानी भाषा में होला कहा जाता है, जलाकर पर्व का आगाज किया गया।
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बूढ़ी दिवाली पर्व पर बनाए जाते हैं विशेष व्यंजन
बताते चलें कि बूढ़ी दिवाली की तैयारी क्षेत्रवासी एक सप्ताह से करते हैं। इस दौरान विशेष व्यंजन के रूप में धान को भिगोकर व उसे तलकर तैयार किया गया चिवड़ा प्रसाद के रूप में देवताओं को समर्पित करने के साथ गांवों में वितरित किया जाता है। साथ ही पर्व की तैयारियों के तहत की जाने वाली खरीदारी के लिए क्षेत्र के बाजारों में ग्रामीणों की भारी भीड़ जुट रहती है। क्षेत्रवासी जरूरत के हिसाब से मेवे, कपड़े व अन्य सामान की खरीदारी करते हैं। होला जलाने की रस्म के बाद बच्चों ने नाचते गाते हुए गांव के पंचायती आंगन में पहुंचकर अपने-अपने इष्ट देवी देवताओं की प्रार्थना करने पहुंचते हैं। इसी क्रम में रातभर पंचायती आंगनों में हारुल नृत्य व लोक गीतों पर ग्रामीण थिरकते हुए पर्व की खुशियों को 5 दिन साझा करेंगे।
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मनाई जाती है इको फ्रैंडली दिवाली
जौनसार बावर क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर्व हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। गांव-गांव में लोक गीतों की धुनों पर नाचते गाते ग्रामीण पर्व की खुशीयां बांटते हैं। जनजाति क्षेत्र जौनसार में तीज-त्योहार मनाने का अंदाज और परंपराएं निराली हैं। देशभर में अपनी अनूठी संस्कृति के लिए विख्यात जौनसार-बावर में देश की दीवाली के एक माह बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है। लेकिन इस दौरान न पटाखे का शोरगुल और न ही आतिशबाजी देखने को मिलती है। इससे वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता। यहां पर सिर्फ इको फ्रेंडली दीवाली मनाई जाती है।
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पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा
दीवाली मनाने के बाद पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग अलग तर्क हैं। जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुर्जुर्गों की माने तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाते हैं। जबकि अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं। जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं। यहां पहले पहले दिन छोटी दीवाली, दूसरे दिन रणदयाला, तीसरे दिन बड़ी दीवाली, चौथे दिन बिरुड़ी व पांचवें दिन जंदौई मेले के साथ दीवाली पर्व का समापन होता है।
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