कौन थीं दादी बालमणि अम्मा? जिनकी याद में गूगल ने उनके 113वें जन्मदिन पर बनाया डूडल..
कवि भले ही इस दुनिया से चले जाते हैं लेकिन अपनी कविताओं को दुनिया के लिए छोड़कर हमेशा के लिए अमर हो जाते है। उनकी कविताओं को याद किया जाता है। मलयालम भाषा में लिखने वाली मशहूर कवि नलप्पट बालमणि अम्मा (Nalapat Balamani Amma) की कविताएं प्रेरणादायक हैं। बालमणि अम्मा की आज 19 जुलाई 2022 को 113वीं जयंती है। सर्च इंजन गूगल ने अपने खास डूडल की मदद से उन्हें याद किया है। जिसको आर्टिस्ट देविका रामचंद्रन ने बनाकर तैयार किया है। बालमणि अम्मा को मलयालम साहित्य की दादी के नाम से भी जाना जाता है।
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पद्म भूषण से हुईं सम्मानित
‘Poetess of motherhood’ कहलाई जाने वाले बालमणि अम्मा ने कुदुम्बिनी, धर्ममार्गथिल, श्रीहृदयम्, प्रभांकुरम, भवनायिल, ओंजालिनमेल, कलिककोट्टा, वेलिचथिल जैसी महान कविताएं लिखी हैं। जिनके लिए उन्हें सरस्वती सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार और एज़ुथाचन पुरस्कार से नवाजा भी गया। इसके अलावा उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरुस्कार पद्म भूषण अवॉर्ड भी मिला। बालामणि अम्मा नलपत नारायण मेनन और कवि वल्लथोल नारायण मेनन की कविताओं से काफी प्रभावित थीं।
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बिना स्कूली शिक्षा के बनीं कवियित्री
केरल के त्रिशूर जिले में जन्मी बालमणि अम्मा ने औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की लेकिन फिर भी वह इतनी महान कवियित्री बनीं। दरअसल, बालमणि के मामा नलप्पट नारायण मेनन, जो खुद एक कवि थे उनके पास किताबों का बढ़िया कलेक्शन था, जिसने बालमणि अम्मा को एक कवि बनने में मदद की। 19 साल की उम्र में अम्मा की शादी वीएम नायर से हुई जिससे उनकी सुलोचना, श्याम सुंदर, मोहनदास और प्रसिद्ध लेखिका कमला दास चार बच्चे हुए। बेटे कमल दास से बालामणि अम्मा की एक कविता ‘कलम’ का ट्रांसलेशन भी किया है जो एक मां के अकेलेपन को दर्शाती है।
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2004 में ली अंतिम सांस
बालमणि अम्मा के करीबन 20 से ज्यादा गद्य, अनुपाद प्रकाशित हुए हैं। बच्चों और पोते-पोतियों के लिए उनका प्रेम उनके द्वारा लिखी गई कविताओं में झलकता है। इसीलिए उन्हें कविता की मां और दादी की उपाधि दी गई है। 2004 में अम्मा का निधन हुआ और पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
ऐसे मिली ‘दादी’ की उपाधि
बालमणि अम्मा के नाम से कविता, गद्य और अनुवाद के 20 से अधिक संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। Google डूडल के अनुसार, बच्चों और पोते-पोतियों के लिए उनके प्यार का वर्णन करने वाली उनकी कविताओं ने उन्हें मलयालम कविता की अम्मा (मां) और मुथस्सी (दादी) की उपाधि दी।
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पहली कविता से मिली पहचान
बालामणी अम्मा की पहली कविता, कोप्पुकाई साल 1930 में प्रकाशित हुई, जिसके बाद उन्हें कोचीन साम्राज्य के पूर्व शासक परीक्षित थंपुरन से एक प्रतिभाशाली कवि के रूप में पहचान मिली। थंपुरन ने उन्हें ‘साहित्य निपुण पुरस्कार’ से सम्मानित भी किया था। बालामणि अम्मा ने मलयालम में अपनी कविताएं लिखीं और उनकी रचनाएं पूरे दक्षिण भारत में मनाई गईं। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताएं हैं- अम्मा (मां), मुथस्सी (दादी), और मज़ुविंते कथा (द स्टोरी ऑफ़ द कुल्हाड़ी)। अम्मा के बेटे कमला सुरय्या, जो बाद में एक लेखक बने, ने अपनी मां की एक कविता, “द पेन” का अनुवाद किया, जिसमें एक मां के दर्द का वर्णन करने वाली कुछ पंक्तियां थीं।
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