नहीं रहे मुलायम सिंह यादव। अलग उत्तराखंड राज्य के पक्ष में नहीं थे मुलायम सिंह, जानें…
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता मुलायम सिंह यादव ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आज 10 अक्टूबर को सुबह 8:16 बजे अंतिम सांस ली। उनके बेटे अखिलेश यादव ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। पिछले कुछ दिनों से सपा नेता की हालत गंभीर बनी हुई थी। 22 नवंबर, 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिन्होंने तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री के रूप में भी कार्य किया। वे 10 बार विधायक और 7 बार लोकसभा सांसद चुने गए थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को दिग्गज राजनेता मुलायम सिंह यादव के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनके निधन से देश में संघर्ष और समाजवाद के एक युग का अंत हो गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन दिन के राजकीय शोक की भी घोषणा की और कहा कि दिग्गज नेता का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
यह भी पढ़ेंः जिला पंचायत अध्यक्ष रुद्रप्रयाग ने CM को सौंपे क्षेत्र की समस्याओं के ज्ञापन, मुख्यमंत्री के सामने रखी यह मांगें..
पॉलिटिक्स में एंट्री से पहले शिक्षक थे मुलायम
राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव बतौर शिक्षक अध्यापन का कार्य करते थे। उन्होंने अपना शैक्षणिक करियर करहल क्षेत्र के जैन इंटर कॉलेज से शुरू किया था। दरअसल 1955 में मुलायम सिंह यादव ने जैन इंटर कॉलेज में कक्षा नौ में प्रवेश लिया था। यहां से 1959 में इंटर करने के बाद 1963 में यही सहायक अध्यापक के तौर पर अध्यापन का कार्य शुरू कर दिया था। जानकार बताते हैं कि उस दौर में उन्हें 120 रुपए मासिक वेतन मिलता था। उन्होंने हाई स्कूल में हिंदी और इंटर में सामाजिक विज्ञान पढ़ाया।
कितना पढ़े-लिखे थे मुलायम?
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में हुआ था। मुलायम की शिक्षा राज्य के हीं इटावा, फतेहाबाद और आगरा से हुई है। मुलायम सिंह यादव ने करहल (मैनपुरी) के जैन इन्टर कालेज से पढ़ाई की है। उन्होंने बीटी (बैचलर ऑफ टीचिंग) और बीए की डिग्री प्राप्त की थी। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए भी किया है।
यह भी पढ़ेंः मुख्यमंत्री धामी के दौरे से जखोली की जनता को निराशा हाथ लगी- अर्जुन गहरवार
बच्चों के फेवरेट थे मुलायम
जानकार बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव के पढ़ाने का अंदाज काफी अलग और रोचक था। वे किसी शिक्षक की तरह रटा- रटाया पाठ बच्चों को नहीं पढ़ाते थे। वे विषय मे रोचकता लाने में माहिर थे। वह बच्चों की पिटाई के सख्त विरोधी थे। वे मानते थे कि बच्चों को मारने से उनकी बुद्धि का कौशल विकास रुक जाता है।
राजनीति में सुनहरा रहा करियर
मुलायम सिंह यादव ने 1960 के करीब राजनीति में प्रवेश किया था। उन्होंने लोहिया आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया था। उन्होंने जनसंख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद तीन बार (1989 से 1991, 1993 से 1995 और 2003 से 2007) संभाला था। साल 1996 से 1998 तक मुलायम सिंह यादव ने देश के रक्षा मंत्री का भी पद संभाला था।
यह भी पढ़ेंः रिटायरमेंट के बाद बागवानी और कीवी की खेती से बनाई अपनी अलग पहचान, मिल चुके हैं कई पुरस्कार।
उत्तराखंड राज्य के पक्ष में नहीं थे मुलायम सिंह
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उनके निधन पर शोक जताया। सीएम धामी सहित प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा है। मुलायम सिंह यादव कभी भी अलग उत्तराखंड राज्य के पक्ष में नहीं थे। उत्तराखंड अलग राज्य की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतरे और इसने एक जनांदोलन का रूप ले लिया। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहने के दौरान ही रामपुर तिराहा कांड हुआ और उस काली रात को आंदोलनकारी आज भी नहीं भूले हैं। एक अक्तूबर रात के लगभग दस बजे देहरादून के दर्शनलाल चौक से लगभग दो-ढाई सौ बसों का काफिला निकला। एक वरिष्ठ आंदोलनकारी बताते हैं कि किसी को आभास भी नहीं था कि कुछ ही क्षणों में हमारा सामना खौफनाक मंजर से होगा। रामपुर तिराहा पहुंचते ही गोलियों की आवाज आई। हमारे सामने लाशें गिरीं, खून से लथपथ पड़े लोग, जलती गाड़ियां… हमारी आंखों से बस आंसू बह रहे थे। थोड़ी देर बाद महिलाओं के साथ बदसलूकी की खबरें मिलीं। दिल बैठ सा गया।
यह भी पढ़ेंः क्या हाकम गैंग ही है दरोगा भर्ती घोटाले का सूत्रधार? खुले कई राज, जल्द कई दरोगाओं पर गिरेगी गाज..
उस रात को नहीं भूले उत्तराखंड आंदोलनकारी
दो अक्तूबर की सुबह तक 1994 में राज्य आंदोलनकारियों को मिले जख्म 26 साल बाद भी आज तक नहीं भर पाए हैं। एक अक्तूबर की वह रात दमन, बलप्रयोग और अमानवीयता की हदों को पार करने वाली साबित हुई। यह सबकुछ जिस वजह से हुआ परिणाम भी सियासत को ठीक उलटा ही मिला। राज्य आंदोलन की आग तेज हुई और पहाड़ में रातों रात मुलायम सिंह खलनायक बन गए। यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश का यह पहाड़ी हिस्सा मंडल के झंझावत से निकला ही था। कोदा-झंगोरा खाएंगे, अपना उत्तराखंड बनाएंगे के नारे हवा में तैरा करते थे। हर कोई किसी न किसी रूप में राज्य आंदोलन से जुड़ा हुआ था। पहाड़ उस समय दो चीजों के लिए जना जाता था- पनिशमेंट पोस्टिंग या फिर फौज। राज्य आंदोलन संघर्ष समिति का जन्म हो चुका था और इसी के आह्वान पर दो अक्तूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना तय किया गया था। राज्य आंदोलन के कई नेता पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे। यही आह्वान और आंदोलन की भावना का सबब था कि गढ़वाल और कुमाऊं से बसों में भरकर लोग एक अक्तूबर को दिल्ली के लिए रवाना हुए थे।
यह भी पढ़ेंः UKSSSC VPDO भर्तीः रावत-कन्याल की जोड़ी ने किया खेल, घर में तैयार किया रिजल्ट। खुले कई राज..