रिटायरमेंट के बाद बागवानी और कीवी की खेती से बनाई अपनी अलग पहचान, मिल चुके हैं कई पुरस्कार।

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Kiwi Fruit Farming. Hillvani News

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क्या आपने कभी सोचा है कि रिटायरमेंट के बाद आप क्या करेंगे? सिर्फ आराम करेंगे या फिर कुछ नया करने की कोशिश करेंगे? जहां कुछ लोगों के लिए रिटायरमेंट का मतलब आराम होता है, वहीं कुछ लोगों के लिए यह एक नयी पहचान बनाने का मौका होता है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के विकासखंड जखोली के नजदीक बसा गांव धनकुराली के रहने वाले 75 वर्षीय मातबर सिंह राणा ने बागवानी व कीवी उत्पादन में एक अलग पहचान बनाई है। साल 2007 में सर्वे ऑफ इंडिया से रिटायर हुए मातबर सिंह राणा रिटायरमेंट के बाद अपने गांव में बागवानी कर कई प्रकार की सब्जी उगाई और गांववासियों को भी प्रेरित किया, साथ ही गांव में सबसे पहले कीवी की खेती की शुरूआत कर एक किसान के तौर पर अपनी नई पहचान बनाई। जहां हमारे उत्तराखंड में रिटायर होने के बाद लोग देहरादून, ऋषिकेश में जमीन खरिदकर अपने लिए आशियाना बनाकर आराम की जिंदगी बसर करने की लालसा लिए होते हैं तो वहीं मातबर सिंह राणा ने देहरादून से रिटायर होने के बाद अपने गांव जाना बेहतर समझा और आज वह अपने क्षेत्र में बागवानी और कीवी उत्पादन में एक अलग पहचान बना चुके हैं।

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धनकुराली गांव विकासखंड जखोली से काफी नजदीक बसा एक खूबसूरत गांव है लेकिन गांव आज भी सड़क मार्ग से बंचित है जिस कारण ग्रामीणों को मुख्य सड़क मार्ग से ढाई से तीन किलोमीटर की खड़ी चढाई पार कर गांव पहुंचना पड़ता हैं। जिस कारण गांव वासियों द्वारा उत्पादित नगदी फसलों को मुख्य बाजार तक पहुंचाना बहुत कठिन होता है। जिस कारण गांव में उत्पादित साग सब्जी, कीवी व अन्य फल के खराब होने के ज्यादा असार बने रहते हैं। हिलवाणी से बात करते हुए मातबर सिंह राणा ने बताया कि वह किसान परिवार से होने के नाते, उन्होंने अपनी नौकरी के दौरान ही तय कर लिया था कि वह रिटायरमेंट के बाद खेती करेंगे। लेकिन खेती में भी वह कुछ अलग करना चाहते थे। हमेशा से ही बागवानी के शौकीन रहे। मातबर सिंह राणा ने कीवी की खेती के बारे में सभी जानकारियां जुटाई। जिसके बाद एक छोटी सी जगह पर कीवी की पौध लगाकर शुरूआत करी। तीन-चार सालों में ये कीवी के पौधे तैयार हो गए और इन पर फल भी लगने लगे। इस सफलता के बाद मातबर सिंह राणा ने कीवी की खेती आगे बढ़ने का फैसला किया और गांव वालों को कीवी की खेती करने के लिए प्रेरित किया साथ ही अगल बगल के गांवों में भी कीवी की पौध व कलम बना कर लोगों को दी। जिससे अगल बगल के गांव भी कीवी की खेती की और आकर्षिक होकर कीवी की खेती करने लगे।

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जब मातबर सिंह राणा ने सब्जी का उत्पादन और कीवी का उत्पादन शुरू किया तो उन्होने इसका अंदाजा कभी नहीं लगाया था कि उनका यह शौक उनको एक अलग पहचान देगा। आपको बता दें कि बागवानी और कीवी उत्पादन में मातबर सिंह राणा को देहरादून में आयोजित हरेला मेले में भी पुरस्कार मिल चुका है और विकासखंड जखोली में आयोजित किसान मेले में तो वह कई सालों से पहला पुरस्कार जीतते आ रहे हैं। साथ ही जिला प्रशासन द्वारा भी वह पुरस्कृत हो चुके हैं। मातबर सिंह राणा ने बताया कि जब वह रिटायर होकर गांव आए थे तो हम लोगों को साग सब्जी के लिए कई किलोमीटर दूर जाकर दुकान से सब्जी खरीदनी पड़ती थी लेकिन आज पूरा धनकुराली ग्रामवासी अपने घरों में उगाई हुई ही जैविक सब्जियों का सेवन करते हैं। वहीं मातबर सिंह राणा का कहना है कि अगर हमारा गांव भी सड़क मार्ग से जुड़ जाता है तो हमारे गांव में उगाई गई सब्जी, कीवी, माल्टा को हम बाजार तक आराम से पहुंचा सके हैं। लेकिन सड़क मार्ग न होने के कारण कई बार सब्जियां, कीवी गांव में ही खराब हो जाते हैं। साथ ही गांव में पशुपालन भी किया जाता है सभी घरों में दूध भरपूर मात्रा में हैं उस को भी बाजार तक पहुंचाया जा सकता है। जिससे ग्रामसभा धनकुराली के लोगों की आर्थिकी में काफी सुधार आ सकता है।

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