सैटेलाइट इंटरनेट कैसे बदलने आ रहा हमारी जिंदगी? क्या 5जी से बेहतर होगा यह?

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2022 में देश में करीब 70 करोड़ इंटरनेट यूजर्स थे। इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) की रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक यह तादाद करीब 90 करोड़ पहुंच चुकी होगी। जब तक आप इस खबर को पढ़ना खत्म करेंगे, करीब 500 से 600 नए लोग इंटरनेट के साथ जुड़ चुके होंगे। इंटरनेट की बात चली है तो दो तरह के ऑप्शन दिमाग में आते हैं, पहला है ब्रॉडबैंड और दूसरा मोबाइल इंटरनेट। ब्रॉडबैंड में बीते कुछ साल से ऑप्टिकल फाइबर इंटरनेट काफी पॉपुलर हुआ है तो वहीं पिछले साल 5जी ने भी देश में एंट्री मार ली है। अब टेलीकॉम और टेक्नॉलजी की दुनिया की दिग्गज कंपनियां सैटेलाइट इंटरनेट देश में उतारने की तैयारियों में जुट गई हैं। इसकी मदद से बिना तार और बगैर मोबाइल टावर के सीधे आसमान से इंटरनेट आपके घरों तक पहुंचेगा। देश-दुनिया में इंटरनेट के इतने बड़े नेटवर्क में आखिर कहां खामियां हैं, जहां से सैटेलाइट इंटरनेट के लिए दरवाजा खुल रहा है? क्या है यह और कैसे काम करता है? क्यों आखिर बड़ी कंपनियां सैटेलाइट से इंटरनेट देना चाहती हैं? 5जी के मुकाबले क्या बेहतर होगा सैटेलाइट इंटरनेट और किन के काम आ सकती है यह सर्विस? इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने में हम आपकी मदद करेंगे।

सबसे पहले जानते हैं सैटेलाइट इंटरनेट के लिए किन कंपनियों में होड़ होगी?
दुनिया के कई देशों में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस मिल रही है। टेस्ला के सीईओ ईलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक, रिलायंस जियो और एयरटेल भारत में इसे लाने की तैयारी में हैं। स्टारलिंक ने तो इंडिया में इस सर्विस के लिए बुकिंग भी शुरू कर दी थी, लेकिन परमिशन नहीं मिलने पर इसे वापस लेना पड़ा। हालांकि यह देश में एंट्री के लिए फिर कोशिश कर रही है। कंपनी ने लाइसेंस के लिए पिछले साल फिर अप्लाई भी किया है। इसके अलावा रिलायंस जियो ने सैटेलाइट इंटरनेट के लिए एसईएस कंपनी से हाथ मिलाया है। यह कंपनी ग्लोबली सैटेलाइट कनेक्टिविटी देने का काम करती है। वहीं भारती एयरटेल ने ह्यूजेज कम्युनिकेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (HCIPL) के साथ मिलकर एक जॉइंट वेंचर ‘वनवेब’ बनाया है।

सैटेलाइट इंटरनेट से क्या बदल जाएगा?
कोरोना पीरियड में कितने ही लोग घर से काम करने की सुविधा होने के बावजूद अपने गांव नहीं जा सके, क्योंकि वहां ब्रॉडबैंड अभी पहुंचा ही नहीं। मोबाइल कनेक्टिविटी भी अभी भरोसेमंद नहीं है। कोरोना ने स्कूलों के दरवाजे बंद किए तो न जाने कितने बच्चों की पढ़ाई छूट गई, क्योंकि ऑनलाइन क्लास के लिए इंटरनेट जरूरी था और दूरदराज के इलाके अभी भी इससे अछूते हैं। टेलीकॉम टॉक के मुताबिक भारत में मई 2021 तक केवल 1 फीसदी घरों में ऑप्टिकल फाइबर कनेक्शन थे। मोबाइल नेटवर्क की भी अपनी सीमाएं हैं। सभी जगह टावर लगाने संभव नहीं हैं। मौजूदा इंटरनेट सेवाओं की इन्हीं कमियों के बीच सैटेलाइट इंटरनेट के लिए रास्ता बन जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह उन दूरदराज के इलाकों तक भी इंटरनेट पहुंचाएगा जो किसी भी वजह से अब तक इससे अछूते थे। गांवों में ऑनलाइन सर्विस का दायरा बढ़ेगा। स्टूडेंट्स भी डिजिटल एजुकेशन का हिस्सा बन पाएंगे। भूकंप और बाढ़ जैसी आपदा या दूसरी किसी इमरजेंसी सिचुएशन में यह बहुत यूजफुल साबित होगा, क्योंकि ऐसे वक्त केबल या मोबाइल टावर खराब हो जाते हैं। सैटेलाइट इंटर इस दरमियान भी काम कर सकता है। इसके साथ ही सेना के जवानों के लिए भी यह कारगर रहेगा, क्योंकि कई बार ऐसी जगह इनकी तैनाती होती है जहां इंटरनेट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होता है। ऐसे इलाकों में सीधे सैटेलाइट से इंटरनेट पहुंचाया जा सकता है।

क्या 5जी से बेहतर होगा यह?
इंटरनेट स्पीड के मामले में 5जी सर्विस सैटेलाइट इंटरनेट से ज्यादा तेज है। लेकिन, ऐसी जगह जहां मोबाइल टावर नहीं लगाए जा सकते या जहां केबल बिछाना मुश्किल है। ऐसे दूरदराज के गांवों, पहाड़ों तक इंटरनेट पहुंचाने में सैटेलाइट इंटरनेट गेम चेंजर साबित हो सकता है। हालांकि इसमें भी एक दिक्कत है, तेज बारिश, बर्फबारी और आंधी-तूफान में सिग्नल आने में रुकावट आ सकती है, जैसे डीटीएच टीवी सर्विस में थोड़ी परेशानी आती है।
कैसे काम करता है सैटेलाइट इंटरनेट?
आसान तरीके से समझिए तो जैसे आपका टीवी डिश एंटीना की मदद से चलता है, कुछ उसी तरह सैटेलाइट इंटरनेट भी काम करता है। इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनी अपना रिसीवर या एंटीना आपके घर या आसपास लगाएंगे। कंपनी स्पेस में मौजूद सैटेलाइट को इंटरनेट सिग्नल भेजते हैं जो आप की छत पर लगे रिसीवर तक पहुंचता है। इसे मॉडम से कनेक्ट किया जाता है, जिससे वायरलेस इंटरनेट मिल जाता है। इंटरनेट स्पीड की बात करें तो इसके जरिए यूजर्स को 50 Mbps से 200 Mbps की स्पीड मिलती है।

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