उत्तराखंड: खूबसूरत पर्यटन गांव सारी, इस गांव के हर घर में है होमस्टे..
सारी गांव रुद्रप्रयाग जनपद के ऊखीमठ विकासखंड में स्थित है। जिसकी ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 6554 फीट है। सारी गांव को भारत सरकार ने 2007 में पर्यटन ग्राम घोषित किया है। पर्यटन और खेती स्थानीय ग्रामीणों की आय का मुख्य स्रोत है। यह गांव ओक और रोडोडेंड्रॉन के घने जंगलों के बीच बसा हुआ है। सारी गांव से करीब ढाई किमी की दूरी पर रहस्यमयी झील देवरिया ताल स्थित है। सारी गांव सुंदर झील देवरिया ताल का आधार आधार शिविर भी है। इस गांव को होमस्टे विलेज भी कहा जाता है। वर्तमान में इस गांव में 45 के करीब होमस्टे हैं। इस गांव से सामने नजर दौड़ाओ तो तुंगनाथ चोपता और चंद्रशिला की चोटी बहुत ही खूबसूरत दिखाई देती है।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंडः रंग-बिरंगी मछलियों का संसार, जहां मछली सेवा ही है नारायण की सेवा। देखें वीडियों..
इस गांव के वर्षभर सैलानी पहुंचते हैं जिस वजह से यहां के युवाओं ने पर्यटन को ही अपना रोजगार बना लिया है। सारी गांव के युवाओं ने बड़ी संख्या में आ रहे सैलानियों को ट्रैकिंग, कैंपिंग और होम स्टे में ही अपना स्वरोजगार अपनाया हुआ है। अब गांव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बदल गई है। सारी गांव में जब आप ऊखीमठ-चोपता-मंडल मोटर मार्ग से जाते है तो वहां का प्राकृतिक नजारा बहुत ही खूबसूरत दिखता है। तुंगनाथ चंद्रशिला चोटी की तलहटी में बसे इस गांव की खूबसूरती देखते ही बनती है। माना जाता है कि पहाड़ में खेत के समूहों को सारी भी कहते है और इस गांव में बड़ी संख्या में खेत हैं जिसकी वजह से इसका गांव का नाम सारी पड़ा होगा।
यह भी पढ़ें: पहाड़ की हकीकतः खंडहर में तब्दील हुआ खूबसूरत लुठियाग गांव..
सारी गांव में ठहरने के लिए लॉज या होम स्टे आसानी से मिल जाते हैं। यहां से देवरिया ताल, तुंगनाथ, चंद्रशिला शिखर ट्रेक का एक आसान-मध्यम ट्रेक भी है। इस ट्रेक में पहली बार हिमालयी ट्रेकिंग की दुनिया में कदम रखने वालों के लिए यह बेहद खुबसूरत जगह हैं। यहां आप पक्षियों, तितलियों, प्रकृति के रंगों, ओक और रोडोडेंड्रॉन पेड़ों की कई प्रजातियां देख सकते हैं। यहां की सड़क यात्रा बहुत ही रमणीय है। सारी गांव से चोपता तक केवल एक से दो घंटे लगते हैं। इस गांव में पलायन काफी कम है करीब 150 परिवार इस गांव में निवास करते है। इस गांव में आलू, चौलाई, मंडुवा, गेंहूँ, का उत्पादन किया जाता है।
यह भी पढ़ें: भाग-द्वितीयः आज भी बुजुर्गों की यादों में बसा है अपना लुठियाग गांव..