गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ‘संगीत नाट्य अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित। पढ़ें नेगी दा की कुछ अनकही अनसुनी बातें..

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नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में 44 प्रतिष्ठित कलाकारों को वर्ष 2018 के लिए संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप एवं संगीत नाटक पुरस्कार जिनमें 4 फेलोशिप और 40 पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2021 के लिए ललित कला अकादमी की 3 फेलोशिप तथा 20 राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए। इस दौरान उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी तथा अभिनय कला के क्षेत्र में योगदान के लिए दीवान सिंह बजेली को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी को पारंपरिक लोक गीत व संगीत के क्षेत्र में तथा दीवान सिंह बजेली को अभिनय कला में योगदान के क्षेत्र में यह पुरस्कार दिया गया है। नरेन्द्र सिंह नेगी पौड़ी गढ़वाल तथा दीवान सिंह बजेली सोमेश्वर अल्मोड़ा के मूल निवासी है।प्रदेश में इसको लेकर खुशी का माहौल है। नई दिल्ली विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में आज शनिवार को उपराष्ट्रपति बैंकेया नायडू ने ये पुरस्कार प्रदान किया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के प्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी तथा अभिनय कला के क्षेत्र में योगदान के लिये दीवान सिंह बजेली को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर बधाई दी है। उन्होंने कहा कि पारम्परिक लोक गीत के क्षेत्र में नरेन्द्र सिंह नेगी तथा अदाकारी के क्षेत्र में दीवान सिंह बजेली को दिया गया सम्मान प्रदेश का भी सम्मान है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश के लोक गीत संगीत एवं अभिनय कला को भी पहचान मिली है। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदर्शन कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वाले कलाकारों के साथ-साथ इससे जुड़े शिक्षकों एवं विद्वानों को भारत द्वारा प्रदान किए जाने वाले राष्ट्रीय सम्मान हैं।

इन पुरस्कारों के विजेताओं का चयन संगीत नाटक अकादमी की सामान्य परिषद द्वारा किया जाता है, जिसमें प्रतिष्ठित संगीतकार, नर्तक, थिएटर से जुड़े कलाकार एवं इन विषयों के विद्वान और भारत सरकार, राज्य सरकारों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। पुरस्कार से सम्मानित 44 अन्य हस्तियों को पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार के रूप में उन्हें एक लाख रुपये की धनराशि, अंगवस्त्र और ताम्रपत्र दिया गया। नरेंद्र सिंह नेगी को उत्तराखंड में लोकसंगीत के क्षेत्र में वर्ष 2018 के लिए यह पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा कला और साहित्य जगत की 44 अन्य हस्तियों को भी यह पुरस्कार प्रदान किया गया। पहले ये पुरस्कार राष्ट्रपति की ओर से दिया जाना था, लेकिन उनके विदेश दौरे की वजह से उपराष्ट्रपति ने ये पुरस्कार वितरित किए।

नरेंद्र सिंह नेगी के जीवन से जुडे कुछ रोचक तथ्य
नरेंद सिंह नेगी एक ऐसी शख्सियत जिन्हे शायद ही किसी परिचय की आवश्यकता हैं। नरेंद्र सिंह नेगी गायक, कवि , परफ़ॉर्मर, संगीतकार और महान लेखक भी हैं। उत्तराखंड के “गढ़ रत्न” कहे जाने वाले नरेंद्र सिंह नेगी जी जिन्होंने अपने गीतों से उत्तराखंड का नाम भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में गौरान्वित किया हैं। उत्तराखंड की संस्कृति उनके रोम रोम में बस्ती हैं, उन्होंने उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा, ऐतिहासिकता, पौराणिकता, पर्यावरण संरक्षण, उत्तराखण्ड के लोगों की आजीविका, राजनीती, समाज तथा जीवनशैली को अपने गीतों में बहुत ही सुन्दर तरीके से पिरोया हैं उत्तराखंड की सम्पूर्ण झलक उनके गीतों में पायी जाती हैं, ऐसा माना जाता हैं कि उत्तराखंड के विष्य में अगर कुछ भी जानना हैं तो उनके द्वारा गाये हुए गीत सुने। उनका कहना हैं कि बोली-भाषा रहेगी तो संस्कृति भी बचेगी, संस्कृति को बचाना समाज का भी कर्त्तव्य हैं।

नरेंद्र सिंह नेगी जी के बारे में
नरेंद्र सिंह नेगी जी का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पौड़ी गांव में 12 अगस्त 1949 को हुआ था। उनके पिता जी आर्मी में नायब सूबेदार थे और माता एक गृहिणी थी। वह भी आर्मी में भर्ती हो कर अपने पिता की तरह देश की सेवा करना चाहते थे पर किसी कारणवश यह संभव ना हो पाया। नरेंद्र सिंह नेगी जी का विवाह उषा नेगी जी के संग हुआ। उनकी दो संताने हैं एक पुत्र कविलास नेगी व एक पुत्री रितु नेगी। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव पौड़ी के विद्यालय से सम्पन की और अपनी स्नातक के लिए वह अपने चचेरे भाई अजीत सिंह नेगी के साथ रामपुर चले गए। जहा उन्होंने अपने चचेरे भाई जोकि संगीत के प्रोफेसर थे से तबला बादन भी सीखा और यही से उनकी रूचि संगीत जगत एवं गायन की ओर बढ़ती गयी जोकि आजतक कायम है।

नरेंद्र सिंह नेगी जी का व्यवसाय
अपनी पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात नेगी जी को जिला सूचना अधिकारी के पद पर तैनाती मिली परन्तु अपनी संगीत की ललक को उन्होंने यहां भी कायम रखा फलस्वरूप सरकारी नौकरी के साथ साथ उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ के प्रादेशिक केंद्र से गढ़वाली गाने भी गए। वह सूचना और जनसंपर्क विभाग में जिला सूचना अधिकारी के पद पर कार्य भी कर चुके हैं।

बचपन से थी संगीत में रुचि
संगीत में उन्हें बचपन से ही रुचि थी पर उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह एक संगीतकार बनेंगे। वह तो आर्मी ज्वाइन करना चाहते थे पर उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने 1000 से अधिक गीत गाए हैं। उन्होंने अपना पहला गीत पहाड़ों की महिलाओं के कष्टों से भरे जीवन पर आधारित गाया। इस गीत को लोगों ने बहुत पसन्द किया सब को लगा जैसे कि यह गीत उन्ही के लिए गाया गया होगा। इस गीत के बोल “सैरा बसग्याल बोण मा, रुड़ी कुटण मा, ह्युंद पिसी बितैना, म्यारा सदनी इनी दिन रैना ” (अर्थात बरसात जंगलों में, गर्मियां कूटने में, सर्दियाँ पीसने में बितायी, मेरे हमेशा ऐसे ही दिन रहे ) लोगों के जीवन को छु गए थे। इस गीत की सक्सेस के बाद उन्होंने उत्तराखंड के गायन की हर एक शैली जैसे कि जागर, मांगल, बसंती झुमेला, औज्यो की वार्ता, चौंफला, थड्या आदि में भी गाया हैं। उन्होंने अपने गीतों से हर विषय को छूने की कोशिश की हैं जैसे कि जन सन्देश, सुख दुःख, प्यार प्रेम, देवी देवताओं के भजन, गाथाएं, बच्चों के लिए लोरियां आदि।

प्रसिद्ध लोक संगीतकार के रूप में उभरे
वह उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक संगीतकार के रूप में उभर के सामने आये। उन्होंने उत्तराखंड की तीनों भाषाएं जैसे की गढ़वाली, कुमाऊनी तथा जौंसारी में भी कई गीत गाये। वैसे तो उन्होंने हज़ारों गीत गाये हैं उनमे से कुछ चुनिंदा इस प्रकार हैं घुघूती घुरोण लगी, कैका मने की केन नि जाणी, कोई त बात होलि, छम घुंघरू बजिनी, सुना का मैना, तुम्हारी माया मा, ठंडो रे ठंडो, मेरी डांडी कांठ्युं का मुलुक, चली भाई मोटर चली, घर बटि चिट्ठी, आंसू होरि मा, जख मेरी माया रौंदी, मुलमुल के को हसनी छे, तेरी खुद किसे ते नि लगनी, ना उकाल ना उदार आदि। विदेशों में रहने वाला गढ़वाली और कुमाऊंनी समाज अक्सर उन्हें विदेशों में गाना गाने के लिए आमंत्रित करते रहे हैं। उन्होंने कई देशो में परफॉर्म किया हैं जैसे कि कनाडा,ऑस्ट्रेलिया, मस्कट, न्यूज़ीलैण्ड, ओमान, बहरीन, यू.एस.ऐ., यू.ऐ.इ. आदि सहित लंबी लिस्ट है।

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