36th Busan International Film Festival: पहली बार उत्तराखंड में बनी ‘पताल ती’ फिल्म का होगा अंतरराष्ट्रीय प्रीमियर
देहरादूनः उत्तराखंड एक फलक पर अपना परचम लहरा रहा है चाहे वो खेल हो, कला या फिर यहां की संस्कृति। यही वजह है कि पहली बार उत्तराखंड में बनी शॉर्ट फिल्म ‘पताल ती’ (Holy Water) दक्षिण कोरिया में होने वाले 39वें बुसान अंतरराष्ट्रीय शार्ट फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर होने जा रही है। बता दें कि ‘पताल-ती’ विश्व के 111 देशों से आई 2,548 फिल्मों में से चुनी गई 40 शार्ट फिल्मों में से एक है। पताल-ती’ का अर्थ है ‘पवित्र जल’। यह फिल्म भोटिया जनजाति की लोक कथा पर आधारित है, जिसमें किशोरावस्था की तरफ बढ़ रहा एक लड़का अपने दादा की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए भूत और भौतिक के बीच की दूरी को नापता है। इस दौरान प्रकृति और जीवन के बीच संघर्ष इस फिल्म को मानवीय पक्ष से और भी संवेदनशील और भावपूर्ण बना देता है।
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फिल्म में प्राकृतिक रोशनी, कैमरे और कलाकारों के नाम मात्र के संवादों में की गयी अदाकारी इसे और भी खास बना देती है। यही कारण है कि इस फिल्म को 39वें बुसान अंतरराष्ट्रीय शार्ट फिल्म फेस्टिवल (दक्षिण कोरिया) में प्रीमियर के लिए चुना गया है। फिल्म का निर्माण स्टूडियो यूके13 की टीम ने किया है और फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन में ध्वनि संयोजन ऑस्कर विजेता रेसुल पूकुट्टी (स्लमडॉग मिलियनेयर), एडिटिंग संयुक्ता काज़ा (तुम्बाड़) और पूजा पिल्लै (पाताल लोक) एवं रंग संयोजन ईरान के हामिद रेज़ाफातोरेचिअन ने किया है। फिल्म की शूटिंग रुद्रप्रयाग और चमोली जनपद के कई स्थानों पर की गई है। फिल्म के निर्माता-निर्देशक संतोष सिंह रावत एवं मुकुंद नारायण ने इस फिल्म में हिमालय के एक गाँव के जीवन को दर्शाया है। इस फिल्म के लिए टीम ने 20 दिनों में 4500 मीटर की ऊंचाई तक हिमालय में 300 किलोमीटर से भी ज्यादा की पैदल यात्राएं की हैं।
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इस फिल्म में आयुष रावत, धन सिंह राणा, कमला कुंवर, भगत सिंह बुरफाल ने प्रमुख भूमिका निभाई है। फिल्म के एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेंद्र रौतेला व सत्यार्थ प्रकाश शर्मा हैं। जबकि फिल्म का फिल्मांकन बिट्टू रावत और दिव्यांशु रौतेला ने किया है। फ़िल्म निर्माण के लिए व्यवस्थाएं बनाने और समन्वय स्थापित करने का काम एसोसिएट प्रोड्यूसर रजत बर्त्वाल ने किया है। एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेंद्र रौतेला बताते हैं कि पताल-ती फिल्म ने लोक भाषा के साथ-साथ कला को भी एक नई पहचान देने का काम किया है। साथ ही नई पीढ़ी के कलाकारों की प्रतिभा को मंच देने में अहम रोल अदा किया है। इस फिल्म के माध्यम से उत्तराखंड में फिल्म निर्माण की दिशा में भी नए अवसर प्रदान होंगे। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में फिल्म को और अधिक लोकप्रियता मिलेगी और इस फेस्टिवल में चयन के बाद ऑस्कर के लिए नामित होने की उम्मीद भी बढ़ गई है।
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इस पूरी फिल्म निर्माण की एक खास बात यह भी रही कि इस पूरी टीम में सिर्फ दो-तीन लोग ही फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र से रहे। बाकी पूरी टीम ग्रामीण परिवेश से थी या फिर फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में पहली बार कदम रख रहे थे। इस सबके बावजूद पूरी टीम के जज़्बे और जुनून ने एक शानदार उपलब्धि हासिल की है। यह इस बात का भी स्पष्ट करती है कि यदि किसी कहानी और उसके प्रस्तुतिकरण से न्याय किया जाए तो वो क्षेत्र और भाषा की सीमाओं को तोड़ देती है। यह बात इससे भी साबित होती है कि अंत में साउंड और एडिटिंग के लिए बॉलीवुड की जानीमानी हस्तियों ने भी इसके पोस्ट प्रोडक्शन में अपना सहर्ष सहयोग दिया। फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय प्रदेश के लिए यह भी एक बड़ी उपलब्धि है। गौरतलब हो कि उत्तराखण्ड की यह फ़िल्म यदि बुसान में पहला स्थान बना पाने में सफल होती है तो विश्वस्तरीय अन्य नामचीन फ़िल्म फेस्टिवल और प्रतियोगिताओं में इसे अपने-आप ही प्रवेश मिल जाएगा।