उत्तराखंडः क्या कल-कल करतीं जलधाराएं होंगी शांत? 353 नदियों के अस्तित्व पर संकट..
आबादी और विकास के दबाव के कारण हमारी बारहमासी नदियां मौसमी बन रही हैं। कई छोटी नदियां पहले ही गायब हो चुकी हैं। बाढ़ और सूखे की स्थिति बार-बार पैदा हो रही है क्योंकि नदियां मानसून के दौरान बेकाबू हो जाती हैं और बारिश का मौसम खत्म होने के बाद गायब हो जाती हैं। उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों की बारहमासी नदियां या तो मौसमी बनती जा रही हैं या पूरी तरह सूख रही हैं। उत्तराखंड की कई छोटी नदियां तो गायब ही हो गई हैं। आपको बता दें कि उत्तराखंड की 353 गैर हिमालयी और बरसाती नदियों का अस्तित्व संकट में आ गया है। इन नदियों में मानसूनकाल में भी पर्याप्त पानी नहीं है। हालात नहीं सुधरे तो अगले 20 साल में कई नदियों का अस्तित्व ही खत्म हो सकता है। शोध के मुताबिक इन नदियों के उद्गम स्रोतों में पानी साल-दर-साल घटता जा रहा है।
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मौसम में आए बदलाव के अलावा उद्गम स्रोतों से पेयजल योजनाओं के लिए पानी के इस्तेमाल से यह संकट बढ़ा है। अवैज्ञानिक खनन भी इसकी बड़ी वजह है। नैनीताल के भूगोल विभाग कुमाऊं विवि के पूर्व एचओडी प्रो. जेएस रावत कहते हैं कि नदियों का पुनर्जनन प्रोजेक्ट ही बरसाती नदियों को बचाने का एकमात्र रास्ता है। प्रो. रावत ने हाल में जागेश्वर धाम की जटा गंगा नदी पर शोध पूरा किया है। मानसून काल में भी जटा गंगा का प्रवाह महज 19 लीटर प्रति सेकेंड मिला। जागेश्वर की इस प्रमुख नदी के जल से जागेश्वर धाम में भगवान शिव का अभिषेक होता है। हालात नहीं सुधरे तो आने वाले कुछ सालों में जटा गंगा भी सूख जाएगी। प्रो. जेएस रावत ने कहा कि ‘उत्तराखंड की सभी 353 गैर हिमालयी नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसके लिए नदियों के उद्गम स्थल के ऊपर चाल, खाल और खंतियों के निर्माण पर फोकस करना होगा। साथ ही सरकार को नदियों के संरक्षण के लिए प्राधिकरण या अलग से विभाग बनाने की पहल करनी चाहिए।’
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कोसी नदी का जलस्तर 90 से अधिक गिरा
प्रो. रावत 1992 से कोसी नदी पर शोध कर रहे हैं। 1992 में गर्मियों के दिनों में कोसी का प्रवाह 790 लीटर प्रति सेकेंड था। इस साल यह गिरकर 48 लीटर प्रति सेकेंड पहुंच गया था। यही हाल अधिकांश नदियों का है।
संकट में हैं ये नदियां
गढ़वाल मंडल: नयार, मंडल, सोना, रिस्पना, सौंग, बिंदाल, आसन आदि।
कुमाऊं मंडल: कोसी, कुंजगढ़, शिप्रा, गगास, लोहावती, पनार, गरुड़ गंगा, गोमती, गौला, नंधौर।
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इससे आप कैसे प्रभावित होते हैं
1- अनुमान बताते हैं कि जल की हमारी 65 फीसदी जरूरत नदियों से पूरी होती है।
2- 3 में से 2 बड़े शहर पहले से ही रोज पानी की कमी से जूझ रहे हैं। बहुत से शहरी लोगों को एक कैन पानी के लिए सामान्य से दस गुना अधिक खर्च करना पड़ता है।
3- हम सिर्फ पीने या घरेलू इस्तेमाल के लिए जल का उपयोग नहीं करते। 80 फीसदी पानी हमारे भोजन को उगाने के लिए इस्तेमाल होता है। हर व्यक्ति की औसत जल आवश्यकता 11 लाख लीटर सालाना है।
4- बाढ़, सूखा और नदियों के मौसमी होने से देश में फसल बर्बाद होने की घटनाएं बढ़ रही हैं।
5- अगले 25-30 सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे की स्थिति और बदतर होगी। मानसून के समय नदियों में बाढ़ आएगी। बाकी साल सूखा रहेगा। ये रुझान शुरू हो चुके हैं।
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