भैला ओ भैला, चल खेली औला, नाचा कूदा मारा फाल, फिर बौड़ी एगी बग्वाल..

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उत्तराखंड: दिवाली के 11 दिन बाद पहाड़ में एक ओर दिवाली मनाई जाती है, जिसे इगास कहा जाता है। इस दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं और शाम को भैलो जलाकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इगास पर्व मनाए जाने की यहां अलग अलग कहानी जुड़ी है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम जब रावण का वध करने के बाद अयोध्या पहुंचे तो इसकी सूचना उत्तराखंड को 11 दिन बाद मिली और तब यहां दीपावली मनाई गई थी। वहीं एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार करीब 400 साल पहले वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार, श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों से योद्धा बुलाकर सेना तैयार की गई। इस सेना ने तिब्बत पर हमला बोलते हुए वहां सीमा पर मुनारें गाड़ दी थीं। तब बर्फबारी होने के कारण रास्ते बंद हो गए। कहते हैं कि उस साल गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली नहीं मनी, लेकिन दीपावली के 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी युद्ध जीतकर गढ़वाल लौटे तो पूरे क्षेत्र में भव्य दीपावली मनाई गई। तब से कार्तिक माह की एकादशी पर यह पर्व मनाया जाता है।

14-15 को मना सकते हैं इगास
इगास पर्व 14 के साथ ही 15 नवंबर को भी मनाया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस वर्ष प्रबोधनी स्मार्थ एकादशी है। जो 14 नवंबर की सुबह 6.40 बजे शुरू होकर 15 नवंबर को 12. 47 मिनट बजे तक रहेगी। उन्होंने बताया कि इगास पर्व का मुख्य दिवस 14 नवंबर है, लेकिन एकादशी के दो दिनों तक जाने के चलते 15 नवंबर को भी मनाई जा सकती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 14 नवंबर इगास (बूढ़ी दिवाली) पर राजकीय अवकाश की घोषणा की है। जिसका आदेश शुक्रवार को जारी कर दिया गया था। हालांकि आदेश में इगास पर्व पर आगामी 15 नवंबर को राजकीय अवकाश घोषित किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि 14 नवंबर को रविवार का दिन पड़ रहा है। और इसे ध्यान में रखते हुए 15 नवंबर को अवकाश दिया गया है।

उत्साह के साथ खेलते हैं भैलो

इगास के दिन भैलो खेलने का विशेष रिवाज है। चीड़ की लीसायुक्त लकड़ी से भैलो बनाते हैं। इसे दली या छिल्ला कहा जाता है। जहां चीड़ के जंगल न हों, वहां लोग देवदार, भीमल या हींसर की लकड़ी आदि से भी भैलो बनाते हैं। इन लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ रस्सी अथवा जंगली बेलों से बांधा जाता है। फिर इसे जलाकर घुमाते हैं। इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है। भैला ओ भैला, चल खेली औला, नाचा कूदा मारा फाल, फिर बौड़ी एगी बग्वाल … लोक गायक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के इस गीत में गांवों में दीवाली और इगास उत्सव की महत्ता को बयां किया गया है। दीपावली के बाद इगास का त्योहार गांव-गांव श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। घरों में विशेष साज-सज्जा के साथ तरह-तरह के पकवान तैयार किए जाते हैं। पारंपरिक भैलो नृत्य इस पर्व का खास आकर्षण होता है, जो आपसी सौहार्द और सहभागिता का संदेश देता है।

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को इगास की शुभकामनाएं दी हैं। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने भी प्रदेशवासियों को इगास की शुभकामनाएं दी हैं। राज्यपाल ले.जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने अपने संदेश में कामना की कि इगास का यह पर्व सभी प्रदेशवासियों के जीवन में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली लाए। उन्होंने कहा कि यह पर्व उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं का प्रतीक है। यह पर्व पूर्वजों की संस्कृति एवं परंपराओं का प्रतीक है। हमें अपने लोकपर्व संरक्षित रखने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को इगास की बधाई देते हुए कहा कि हमारे लोकपर्व एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत सामाजिक जीवन में जीवंतता प्रदान करने का कार्य करते हैं। उन्होंने प्रदेशवासियों की सुख-शांति व समद्धि की कामना की है। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने सभी से यह पर्व मनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इससे नई पीढ़ी हमारी संस्कृति को समझ सकेगी।

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