बागेश्वर उपचुनाव होता जा रहा रोचक.. ‘आया राम गया राम’ नेताओं का फिसलना शुरू, आगे और उलझन!
उत्तराखंड में बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव के करीब आते ही राजनीतिक दलों में दल बदल की राजनीति तेज हो गई है। फिलहाल यह सिलसिला कांग्रेस और भाजपा में जारी है। ताकि जिताऊ कैंडिडेट को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कराया जाए और किसी भी तरीके से पार्टी को जीत हासिल हो। एक तरफ उत्तराखंड में बारिश के मौसम में लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया तो वहीं राजनीति में भी इस वर्षा के सीजन में नेताओं का फिसलने का दौर जारी हो गया है। बता दें कि प्रदेश के बागेश्वर विधान सभा में उपचुनाव होने हैं तो चुनाव के ठीक पहले नेताओं के दल बदल का दौर शुरू हो गया है। नेता इस बरसाती सीजन में फिसल कर एक पाले से दुसरे पाले में गिर रहे हैं।
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तोड़फोड़ ने उपचुनाव को और भी रोचक बना दिया
वहीं आज बागेश्वर-2022 में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी रहे बसंत कुमार और निर्दल लड़े भैरव नाथ भी फिसलकर सीधे कांग्रेस के पाले में गिरकर उनका हाथ थाम लिया है। आप के प्रत्याशी रहे बसंत कुमार और निर्दल लड़े भैरव नाथ को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। इनके साथ भाजपा कार्यकर्ता गोपाल राम और कमल टम्टा भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। शनिवार को कांग्रेस नेता रंजीत दास के भाजपा में शामिल होने के बाद अब दोनों दलों में मची तोड़फोड़ ने उपचुनाव को रोचक बना दिया है। अब भैरव और बसंत के भाग्य का फैसला सोमवार को कांग्रेस प्रत्याशी के नाम की घोषणा के साथ ही होगा।
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राज्य गठन से चला आ रहा तोड़फोड़ का खेल
उत्तराखंड में राज्य गठन से लेकर अब तक बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस की सरकार रही है, और दोनों ही पार्टियों ने एक दूसरे को विधायकों को तोड़कर सत्ता तक पहुंचने का रास्ता साफ किया है। 2007 में खंडूरी के लिए कांग्रेस विधायक टीपीएस रावत से सीट खाली कराई गई थी। 2012 में भी यही हुआ जब विजय बहुगुणा के लिए सितारगंज से भाजपा विधायक किरण मंडल से सीट खाली कराई गई। 2016 में उत्तराखंड की राजनीति में सबसे बड़ा दल बदल हुआ था। 2022 के चुनावों में भी कांग्रेस और भाजपा इसी रास्ते पर चलकर सरकार बनाने की जुटे थे, जिसमें भाजपा को कामयाबी मिली थी। अब बागेश्वर उप चुनाव में भी यही देखने को मिल रहा है।
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