उत्तराखंड के हर 4 किमी में एक बाघ। गिनती में नहीं चढ़े 15 बाघ, वरना आंकड़ा होता 575..

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उत्तराखंड का बाघों की संख्या में देश में तीसरा स्थान है, यहां पर 560 बाघ रिकॉर्ड हुए जबकि उत्तराखंड का क्षेत्रफल मध्य प्रदेश (3,08,252 वर्ग किमी) और कर्नाटक(1,91,751 वर्ग किमी) से बहुत छोटा है। जबकि उत्तराखंड का क्षेत्रफल 53, 483 वर्ग किमी है। प्रदेश के क्षेत्रफल की बात करें तो हर चार किमी पर एक बाघ मौजूद है। छोटा प्रदेश होने के बाद भी इतने बाघों का संरक्षण करने में उत्तराखंड का देश में पहला स्थान है। विश्व बाघ दिवस पर जारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में 785 बाघ होने के चलते देश में पहला स्थान है और राज्य को बाघ राज्य का दर्जा मिला। जबकि कर्नाटक में 563 बाघ हैं और देश में बाघ के मामले में दूसरा स्थान है। 560 बाघ के बाद उत्तराखंड को तीसरा स्थान मिला है। प्रदेश के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 260 मौजूद हैं, जो देश के सभी टाइगर रिजर्व में सर्वोच्च स्थान पर है। उत्तराखंड भले ही देश में बाघों के मामले में तीसरे स्थान पर हो, लेकिन छोटा प्रदेश होने के बाद भी इतने बाघों का संरक्षण करने में वह पहले स्थान है।

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उत्तराखंड के तराई में ज्यादा बाघ
क्षेत्रफल के हिसाब से उत्तराखंड भारत का 19वां राज्य है। राज्य का क्षेत्रफल लगभग 53,483 वर्ग किमी है। इसका 46,035 वर्ग किमी एरिया पहाड़ी है, जबकि 7,448 वर्ग किमी क्षेत्र मैदानी भाग है। इसी मैदानी भाग में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी पार्क, तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय, रामनगर वन प्रभाग, लैंसडोन वन प्रभाग, नैनीताल वन प्रभाग हैं। तराई क्षेत्र में ही ज्यादा बाघ हैं। क्षेत्रफल के हिसाब से बात करें तो उत्तराखंड के हर चार किमी में एक बाघ की मौजूदगी है। प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव समीर सिन्हा का कहना है कि क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखंड छोटा राज्य है, उसके बाद भी 560 बाघ होना गर्व की बात है। यह बेहतर संरक्षण से संभव हो पाया है जबकि मध्य प्रदेश और कर्नाटक राज्य उत्तराखंड से क्षेत्रफल में काफी बड़े हैं।

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प्रदेश में बाघ तो बढ़े लेकिन गिनती में नहीं चढ़े
वन विभाग बाघों की गिनती में अतिरिक्त एहतियात बरतता और कैमरा ट्रैप लगाने में लगाए गए वनकर्मियों की निगरानी होती तो बाघों की संख्या प्रदेश में 575 होती। दरअसल स्टेटस ऑफ टाइगर्स को प्रीडेटर्स एंड प्रे इंडिया-2022 रिपोर्ट में उत्तराखंड के तीन वन प्रभागों में 15 बाघों को कैमरा ट्रैप की कम फोटो और खराब छवियों के कारण गिनती में जोड़ा ही नही गया। यही वजह रही कि प्रदेश में बाघों की संख्या 560 पर अटक गई और उत्तराखंड देश में तीसरे स्थान पर आया। आपको बता दें कि बाघों के आकलन के लिए कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल किया जाता है। अन्य साक्ष्य भी जुटाए जाते हैं। कैमरा ट्रैप की फोटो एक बार आने के बाद पुनः उसी स्थान पर रीकैप्चर्ड किया जाता है। इसके बाद सभी कैप्चर्ड फोटो का विश्लेषण और गहनता से अध्ययन कर टाइगर की संख्या का अनुमान लगाया जाता है। राज्य के चंपावत वन प्रभाग, अल्मोड़ा वन प्रभाग और देहरादून वन प्रभाग में कैमरा ट्रैप पुराने और बेहतर नहीं थे। साथ ही वनकर्मियों ने भी पर्याप्त रुचि नहीं दिखाई थी, जिसकी वजह से बाघों की फोटो साफ और स्पष्ट नहीं आई। 

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चंपावत वन प्रभाग में 11 बाघों की हुई पहचान
रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां बाघों की 83 छवियां प्राप्त हुईं जिसमें 11 बाघों की पहचान की गई। यहां पर्याप्त कैमरा ट्रैप की फोटो नहीं मिली। रीकैप्चर्ड फोटो भी खराब थीं। कैमरा ट्रैप डिजाइन भी ठीक नहीं था। इसके चलते यहां के 11 बाघों को शामिल नहीं किया गया।
अल्मोड़ा वन प्रभाग में एक बाघ की पहचान
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के उत्तर में अल्मोड़ा वन प्रभाग है। इसे राज्य में ऊंचाई वाले इलाके में बाघ संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। रिपोर्ट में यहां बाघों की 12 फोटो मिलीं। इनमें एक बाघ की पहचान की गई, लेकिन कैप्चर फोटो की संख्या अपर्याप्त थीं। अपर्याप्त फोटो के चलते इस स्थान के बाघ का अनुमान नहीं लगाया गया है।

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पहली बार देहरादून डिविजन में कैमरा ट्रैप लगाया गया
देहरादून फॉरेस्ट डिविजन में पहली बार कैमरा ट्रैप लगाकर बाघों के आकलन का प्रयास किया गया। यहां 43 फोटो में तीन बाघों की पहचान की गई। यहां भी पर्याप्त कैमरा टाइप की फोटो और अपर्याप्त रीकैप्चर्ड फोटो के चलते बाघों की संख्या को अनुमान में शामिल नहीं किया गया। पहली बार नरेंद्र नगर डिविजन और कालसी भू संरक्षण वन प्रभाग में भी कैमरा ट्रैप लगाया गया लेकिन यहां बाघ की फोटो प्राप्त नहीं हुई। प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव समीर सिन्हा का कहना है कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के निदेशक से बातचीत हुई है। जल्द ही एक समीक्षा बैठक होगी जो परिवर्तन अपेक्षित होंगे, वह किए जाएंगे।
यहां के बाघों की गणना की गई
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी टाइगर रिजर्व, तराई पश्चिमी, लैंसडौन वन प्रभाग कैमरा ट्रैप लगाए गए। इसी तरह हल्द्वानी, तराई केंद्रीय, तराई पश्चिमी, नैनीताल, चंपावत, अल्मोड़ा, कालसी भू संरक्षण, देहरादून, नरेंद्र नगर, तराई पूर्वी वन प्रभाग में बाघों का आकलन किया गया।

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