पहाड़ी फल: औषधीय गुणों का भंडार है घिंगारू, जानें इसके औषधीय उपयोग..
उत्तराखंड: पर्वतीय क्षेत्र विशिष्ट जैव विविधता के लिए विख्यात हैं। जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार ही है। परंपरागत रूप से यह फल यात्रियों और चरवाहों की क्षुधा शांत करते थे लेकिन समय परिवर्तन के साथ ही लोगों को इनका महत्व समझ में आया तो ये लोकजीवन का हिस्सा बन गए। ये जंगली फल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं तो स्थानीय पारिस्थितिकी-तंत्र में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। इन्हीं वन्य वनस्पतियों में शामिल है घिंघारू। जिसे वानस्पतिक नाम पैइराकैंथा क्रेनुलाटा है। इसके अतिरक्त इसे हिमालयन फायर थोर्न, ह्वाइट थोर्न तथा स्थानीय कुमाऊंनी बोली में घिंगारू और नेपाल में घंगारू कहा जाता है। घिंगारू पादप रोजेसी कुल का बहुवर्षीय कांटेदार झाड़ीनुमा पौधा है।
यह बहुत ही बहुमूल्य औषधीय पौधा दक्षिण एशिया के मध्य-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में भारत के उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत और चीन में भी पाया जाता है। यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में समुद्रतल से 1700 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर खुली ढलानों, जंगलों, चरागाहों, सड़कों, पैदल रास्तों, खेतों, झरनों व नदी-नालों के किनारे तथा पहाड़ी घाटियों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली इस छोटी और कंटीली झाड़ी का विशेषज्ञों के अनुसार स्थानीय पारिस्थितिकी-तंत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। यह भूस्खलन को रोकने में काफी मददगार होती है।
घिंगारू के औषधीय उपयोग
उपेक्षित घिंगारू का पारम्परिक रूप से उपयोग घरों में छोटे-मोटे घरेलू उपचार में किया जाता रहा है क्योंकि यह औषधीय गुणों से भरपूर है, हालांकि ग्रामीण लोग इसकी गुणवता से अनजान हैं। यह हृदय को स्वस्थ रखने में सक्षम है। यह फल पाचन क्रिया के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। अब तो रक्तवर्द्धक औषधि के रूप में इसका जूस भी तैयार किया जाने लगा है। इसमें विटामिन्स और एंटी ऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा होती है। इसके इन्हीं औषधीय गुणों की खोज रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान पिथौरागढ़ ने विशेष रूप से की है। संस्थान ने इसके फूलों के रस से ’हृदय अमृत’ नामक औषधि बनाई है। इसके फलों के रस में रक्तवर्धक गुण पाये जाते हैं।
चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार घिंघारू के फलों में कार्डियोटोनिक, कोरोनरी वैसोडिलेटर और हाइपोटेंशियल गुण होते हैं। इसका उपयोग कार्डियक फेल्योर, पेरोक्सिस्मल टैचीकार्डिया, मायोकार्डिअल दुर्बलता, उच्च रक्तचाप, धमनीकाठिन्य और बर्गर्स रोग के लिए किया जाता है। इसके फलों को सुखाकर तैयार किये गये चूर्ण का उपयोग दही के साथ पेचिश तथा मधुमेह के उपचार में भी किया जाता है। इसकी पत्तियों में पाया जाने वाला पदार्थ त्वचा को जलने से बचाने से यह एंटी सनबर्न प्रभावी है। इसकी पत्तियों से अनेक एंटी ऑक्सीडेंट सौंदर्य प्रसाधन और कॉस्मेटिक्स तैयार किये जाते हैं। इसकी पत्तियां हर्बल चाय बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं। घिंगारू की छाल का काढ़ा स्त्री रोगों के निवारण में लाभदायी होता है। एक्जिमा के उपचार के लिए भी घिंगारू से तैयार टॉनिक का प्रयोग किया जाता है। दही के साथ फलों से तैयार पाउडर एवं सूखे फलों का प्रयोग खूनी पेचिश का उपचार करने में किया जाता है।
इसके फलों में पर्याप्त मात्रा में शर्करा पायी जाती है जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करती है। घिंगारू के फल में फ्लेवोनोइड्स और ग्लाइकोसाइड्स होने के कारण इसमें बेहतरीन सूजनरोधी गुण होते हैं। इसकी पतली डंडियों का प्रयोग दातून के रूप में भी किया जाता है जिससे दांत दर्द में भी लाभ मिलता है। पारम्परिक रूप से बीते समय में स्थानीय लोग घिंगारू की चटनी बनाकर खाते थे। घिंगारू के फूलों से मधु-मक्खियों द्वारा बनाया गया शहद औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यह शहद रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए शुगर के मरीजों के लिए लाभदायक होता है। सामान्यत: शारीरिक लाभ के लिए घिंगारू के फलों का प्रयोग किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। घिंगारू के ताजा फलों का प्रयोग पूर्णत: सुरक्षित है।
प्रोटीन के भरपूर घिंघारू
वन अनुसंधान केंद्र ने अपनी नर्सरी में घिंगारू का सफल संरक्षण किया है। इससे वहां पौधों पर फूल व फल दोनों आ चुके हैं। घिंघारू में प्रोटीन की काफी मात्रा होती है। इसके औषधीय गुणों को लेकर अनुसंधान कार्य जारी है। यह ध्यान रखना चाहिये कि किसी भी प्रकार से घिंगारू के औषधीय प्रयोग से पूर्व किसी विशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य अथवा चिकित्सक की सलाह अनिवार्यत: ली जाये। यदि इस सलाह के बाद भी कोई व्यक्ति घिंगारू का प्रयोग एक औषधि के रूप में करता है और इससे उसे किसी प्रकार की हानि होती है तो सम्बंधित व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार होगा।
घिंगारू के अन्य उपयोग
घिंगारू की लकड़ी काफी मजबूत होने से इसकी लाठियां, हॉकी स्टिक, कृषि उपकरणों के हत्थे आदि बनाने में काम आती है। इसकी कांटेदार झाड़ियों की बाड़ को पार करना पशुओं के लिए काफ़ी मुश्किल होने से कहीं-कहीं पर किसान अपने खेतों की बाड़ के लिए इसकी झाड़ियों को संरक्षित भी करते हैं। इसके पत्तों और फलों को भेड़-बकरी जैसे छोटे मवेशी बड़े चाव से खाते हैं जिस कारण बारिश के दिनों में इन मवेशियों का यह काम चलाऊ आहार माना जाता है। इसकी टहनियों में कांटे होने के कारण बड़े पशु इसकी पत्तियां व फलों को अपेक्षाकृत नहीं खा पाते हैं। घिंगारू का तना काफ़ी गठीला, लचीला और मजबूत होता है। इससे इसकी लकड़ी काफी मजबूत मानी जाती है। इसीलिए स्थानीय स्तर पर इससे विभिन्न घरेलू व कृषि उपकरणों के हत्थे आदि बनाये जाते हैं। व्यावसायिक स्तर पर भी इसके तने की मजबूत लकड़ियों का इस्तेमाल लाठी (वॉकिंग स्टिक) तथा हॉकी स्टिक बनाने में भी किया जाता है। महानगरों में कुछ परिवारों द्वारा घिंगारू पौधे का प्रयोग ड्राइंग रूम में सजावट के लिए डेकोरेटिव बोन्साई प्लांट के रूप में भी किया जा रहा है।
घिंगारू के फूलने-फलने का समय
घिंगारू में प्रतिवर्ष मार्च-अप्रैल माह के बीच काफी सारे गुच्छों की शक्ल में सफेद रंग के फूल आते हैं। फूल के परिपक्व होने के बाद मई-जून तक इसमें छोटे-छोटे हरे रंग के दाने लगते हैं, जो पकने पर गुलाबी, नारंगी, लाल या गहरे लाल रंग के हो जाते हैं। इन पके फलों से इसकी झाड़ियां छोटे-छोटे लाल रंग के फलों से झूल जाती हैं। यह जंगली फल आकृति में सेव की तरह लेकिन बहुत छोटा (मटर के दाने बराबर) और स्वाद में हल्का खट्टा-मीठा होता है। इसके फलों को बंदर, लंगूर आदि जंगली पशु और पक्षी बड़े चाव के खाते हैं। स्थानीय बच्चे इसे छोटा सेव कहते हैं और काफी पसंद करते हैं।
हिमालय के पारिस्थितिकी-तंत्र में घिंगारू का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसकी जल तथा मृदा संरक्षण व वन भूमि की उर्वरता के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है। इधर देखा गया है कि आधुनिकीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण इस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है क्योंकि आबादी में वृद्धि के कारण इसके प्राकृतिक आवास वाली बंजर भूमि निरंतर कम होती जा रही है। जंगलों में प्रतिवर्ष लगने वाली आग ने इसे बहुत नुकसान पहुंचाया है। सरकार तथा अन्य लोगों के प्रयास से उत्तराखंड के इस जंगली फल को बाजार से जोड़कर यहां की आर्थिकी संवारने का जरिया बनाया जा सकता है। इससे न केवल स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि यहाँ प्रतिवर्ष आने वाले लाखों पर्यटक भी घिंगारू के औषधीय तथा अन्य उत्पादों का लाभ ले सकेंगे।