क्या है सशक्त भू-कानून.. किस सरकार में हुई सख्ती, किसने दी ढील। अब धामी सरकार की क्या है तैयारी..

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Uttarakhand Domicile and Land Law

उत्तराखंड में लंबे समय से सख्त भू-कानून की मांग की जा रही है, जिसको लेकर अब उत्तराखंड की धामी सरकार भी हरकत में आ गई है। शुक्रवार 27 सितंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर सचिवालय में प्रेस वार्ता की और कई अहम जानकारियां दी। उत्तराखंड राज्य की स्थापना के साथ ही राज्य में जमीनों की खरीद-फरोख्त चर्चाओं में आती गईं। राज्य की एनडी तिवारी सरकार ने इस दिशा में पाबंदियों की शुरुआत की थी जो कि खंडूड़ी सरकार में और बढ़ाई गईं थीं। हालांकि औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए राज्य की सरकारों ने इस दिशा में अधिक सख्ती से गुरेज ही किया है।

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एनडी सरकार ने पहली बार लगाई थी पाबंदी
उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में यूपी का ही कानून चल रहा था, जिसके तहत उत्तराखंड में जमीन खरीद को लेकर कोई पाबंदियां नहीं थीं। वर्ष 2003 में एनडी तिवारी की सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) अधिनियम की धारा-154 में संशोधन कर बाहरी व्यक्ति के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीदने को ही अनुमति देने का प्रतिबंध लगाया। साथ ही कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया था। 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था। चिकित्सा, स्वास्थ्य, औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया था। तिवारी सरकार ने यह प्रतिबंध भी लगाया था कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा। बाद में परियोजना समय से पूरी न होने पर कारण बताने पर विस्तार दिया गया।

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खंडूड़ी सरकार ने की और सख्ती
तिवारी सरकार में औद्योगिकी पैकेज मिलने के चलते तेजी से जमीनों की खरीद-फरोख्त हुई। नए उद्योग स्थापित हुए। लेकिन धीरे-धीरे इनमें से काफी जमीनों का इस्तेमाल उद्योग के बजाए आवासीय उपयोग के लिए होने लगा। अनियोजित विकास को बढ़ावा मिलने लगा। इसके विरोध में प्रदेशभर में आवाजें उठने लगीं। नतीजतन दूसरी निर्वाचित जनरल बीसी खंडूड़ी की सरकार ने वर्ष 2007 में भू-कानून में संशोधन कर उसे कुछ और सख्त बना दिया। खंडूड़ी सरकार ने आवासीय मकसद से 500 वर्गमीटर भूमि खरीद की अनुमति को घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया। भू-कानून को लेकर पिछली तिवारी सरकार के अन्य प्रावधान लागू रहे। इसके बाद 2017-18 में त्रिवेंद्र सरकार ने कानून में संशोधन कर, उद्योग स्थापित करने के उद्देश्य से पहाड़ में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता खत्म कर दी थी। साथ ही, कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलना आसान कर दिया था। पहले पर्वतीय फिर मैदानी क्षेत्र भी इसमें शामिल किए गए थे।

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त्रिवेंद्र सरकार ने हटाई थी भूमि खरीद की सीमा
त्रिवेंद्र सरकार ने 2017-18 में यह तर्क दिया था कि तराई क्षेत्रों में औद्योगिक प्रतिष्ठान, पर्यटन गतिविधियों, चिकित्सा तथा चिकित्सा शिक्षा के विकास के लिए निर्धारित सीमा से अधिक भूमि की मांग की जा रही है। कई प्रस्ताव इसी कारण लंबित हैं। इसके लिए उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम व्यवस्था 1950) में परिवर्तन किया गया था। उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 (अनुकलन एवं उपरांतरण आदेश 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2018 को मंजूरी दी थी। अधिनियम की धारा 154 (4) (3) (क) में बदलाव किया गया, जिससे कृषि और औद्यानिकी की भूमि को उद्योग स्थापित करने के लिए खरीदा जा सकता है। त्रिवेंद्र सरकार ने उद्योगों के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि के लिए 12.5 एकड़ की सीलिंग हटा दी थी। किसान अपनी भूमि का उपयोग उद्योग लगाने के प्रयोजन से बिना राजस्व की अनुमति लिए कर सकता है। लैंड यूज बदलने के लिए अधिनियम की धारा 143 के तहत पटवारी से लेकर एसडीएम तक चक्कर काटने की औपचारिकताएं अध्यादेश प्रभावी होते ही खत्म हो गईं थीं। राजस्व विभाग की अधिकारों में कटौती कर पर्वतीय क्षेत्रों के धारा 143 को 143 (क) में परिवर्तित किया गया था। नौ पर्वतीय जिलों में उद्योगों के लिए 12.5 एकड़ से अधिक खरीद की व्यवस्था पहले से थी लेकिन त्रिवेंद्र सरकार में उसमें मामूली संशोधन करते हुए कृषि एवं फल प्रसंस्करण, औद्योगिक हैंप एवं प्रसंस्करण, चाय बगान प्रसंस्करण तथा वैकल्पिक ऊर्जा परियोजना के लिए किसी व्यक्ति, संस्था, समिति, न्यास, फर्म, कंपनी तथा स्वयं सहायता समूह को भूमि लीज या पट्टे पर दिए जाने के लिए संशोधन किया गया था। जब से त्रिवेंद्र सरकार ने ये नियम बदले थे, तब से ही इस पर विवाद होता आया है।

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बाहरी फाइनेंसर्स और प्रॉपर्टी डीलर्स ने खड़ा किया सिंडिकेट
राज्य में कठोर भू-कानून के अभाव में कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त के चलते बाहरी राज्यों से आए फाइनेंसर और प्रॉपर्टी डीलर्स का सिंडिकेट बन चुका है। जिनकी वजह से आए दिन जमीनों के नाम पर लाखों-करोड़ों की धोखाधड़ी के मामले सामने आ रहे हैं। ये फाइनेंसर गांवों में काश्तकारों से उनकी कृषि भूमि की औनी-पौनी कीमत लगाकर उसकी महज 10 प्रतिशत कीमत बयाना देते हैं फिर 100 रुपये के स्टांप पेपर पर मनमाना एग्रीमेंट करवा लेते हैं, जिसकी शर्तों में साफ लिखा होता है कि सौदा करने वाला तीन या चार महीने में बाकी की रकम काश्तकार को उपलब्ध करवाएगा। यह शर्त भी रखते हैं कि उनकी भूमि की रजिस्ट्री अलग-अलग टुकड़ों में किसी के नाम पर भी करवाने के लिए स्वतंत्र रहेंगे। इस तरह बाहरी लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाकर उन्हें ऊंचे दामों पर कृषि भूमि रिहायशी बताकर बेच रहे हैं। इस खेल में खरीदार और काश्तकार दोनों ठगे जा रहे हैं। बता दें कि तमाम रजिस्ट्री की जांच की जाए तो पता चलेगा कि एक ही परिवार में पति-पत्नी और बच्चों ने कागजों पर खुद को अलग या संबंध विच्छेद बताकर जमीनें अपने नाम पर खरीदी है। लेकिन उनके प्लॉट अगल-बगल या एक ही खसरे में मिलेंगे। इस तरह से बड़ी धांधलियां हैं, जिनकी आसानी से जांच हो सकती है।

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कैसा है हिमाचल का भू-कानून…जो बना लोगों की पहली पसंद
उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों से लगातार हिमाचल प्रदेश जैसा सख्त भू-कानून बनाने की मांग हो रही है। आपको बताते हैं कि हिमाचल के भू-कानून में ऐसे क्या प्रावधान हैं, जो उत्तराखंड के लोगों की पहली पसंद बन गया है। हिमाचल में जमीन खरीद का टेनेंसी एक्ट लागू है। इस एक्ट की धारा-118 के तहत कोई भी गैर हिमाचली व्यक्ति हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकता है। अगर आप गैर हिमाचली हैं तो हिमाचल में जमीन खरीदने के लिए आप राज्य सरकार की इजाजत के बाद यहां गैर कृषि भूमि खरीद सकते हैं। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के टेनेंसी और लैंड रिफॉर्म्स रूल्स 1975 की धारा 38ए(3) के तहत आपको राज्य सरकार को यह बताना होता है कि आप किस मकसद से जमीन खरीद रहे हैं। राज्य सरकार उस पर विचार करती है। इसके बाद आपको 500 वर्ग मीटर तक की जमीन खरीदने की अनुमति मिल सकती है। वहीं हिमाचल में कृषि भूमि खरीदने की अनुमति तब ही मिल सकती है जब खरीदार किसान ही हो और हिमाचल में लंबे अरसे से रह रहा हो। हिमाचल प्रदेश किराएदारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 के 11वें अध्याय ‘कंट्रोल आन ट्रांसफर आफ लैंड’की धारा-118 के तहत गैर कृषकों को जमीन हस्तांतरित करने पर रोक है। यह धारा ऐसे किसी भी व्यक्ति को जमीन हस्तांतरण पर रोक लगाती है, जो हिमाचल प्रदेश में किसान नहीं है।

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धामी सरकार ने बनाई थी समिति, 2022 में आई थी रिपोर्ट
भू-कानून की मांग तेज हुई तो वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने पांच सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। समिति ने सशक्त भू-काननू को लेकर 23 संस्तुतियां दीं थीं। सरकार ने समिति की रिपोर्ट और संस्तुतियों के अध्ययन के लिए उच्च स्तरीय प्रवर समिति का गठन भी किया हुआ है। धामी सरकार ने कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने से पहले खरीदार और विक्रेता का सत्यापन करने के निर्देश भी दिए हुए हैं।
उत्तराखंड में सख्त भू-कानून का निवेश पर नहीं पड़ेगा असर
उत्तराखंड में उद्योग लगाने की योजना बना रहे निवेशकों में सख्त भू-कानून के लागू होने पर जमीन को लेकर संशय है। लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि निवेश पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जमीन के लिए निवेशकों को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। दिसंबर 2023 में हुए वैश्विक निवेशक सम्मेलन में प्रदेश सरकार ने 3.56 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव पर एमओयू किए थे। इसमें 72 हजार करोड़ के निवेश प्रस्तावों की ग्राउंडिंग हो चुकी है। प्रदेश सरकार ने निवेश के लिए छह हजार एकड़ का लैंड बैंक भी तैयार किया है। इसके बावजूद नए निवेश के लिए जमीन कम पड़ रही है। प्रदेश सरकार का कहना है कि जिन लोगों ने उद्योग या अन्य व्यावसायिक के नाम पर जमीन खरीदी। लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं किया या जिस उद्देश्य के लिए जमीन दी गई थी, उससे इतर इस्तेमाल किया है, तो ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई कर खरीदी गई जमीन सरकार में निहित की जाएगी। इससे प्रदेश सरकार के पास नए निवेश के लिए लैंड बैंक तैयार होगा। प्रदेश में कई बड़े निवेश प्रस्तावों को धरातल पर उतारने का काम चल रहा है। इसके लिए निवेशकों को जमीन की जरूरत है।

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इन सवाल-जवाब के साथ समझिए क्या है भू-कानून
सवाल: उत्तराखंड में बाहरी व्यक्ति कितनी जमीन खरीद सकता है।
जवाब : उत्तराखंड उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम के तहत राज्य से बाहर का व्यक्ति बिना अनुमति के उत्तराखंड में 250 वर्गमीटर जमीन खरीद सकता है। लेकिन राज्य का स्थायी निवासी के लिए जमीन खरीदने की कोई सीमा नहीं है।
सवाल : क्या उत्तराखंड वासियों पर भी यह कानून लागू है?
जवाब : वर्तमान में लागू भू-कानून उत्तराखंड वासियों पर लागू नहीं है। यह कानून केवल बाहरी राज्यों के लोगों पर लागू है। उत्तराखंड के स्थायी निवासी कितनी भी जमीन खरीद सकते हैं।
सवाल : बाहरी व्यक्ति राज्य में परिवार के सदस्यों के नाम से अलग-अलग जमीन खरीद सकता है?
जवाब: वर्तमान में लागू भू-कानून के तहत एक व्यक्ति को 250 वर्गमीटर जमीन ही खरीद सकता है। लेकिन व्यक्ति के अपने नाम से 250 वर्गमीटर जमीन खरीदने के बाद पत्नी के नाम से भी जमीन खरीदी है तो ऐसे लोगों को मुश्किल आ सकती है। तय सीमा से ज्यादा खरीदी गई जमीन को सरकार में निहित करने की कार्रवाई करेगी।
सवाल: सख्त भू-कानून से उद्योगों को भी जमीन की दिक्कत आएगी?
जवाब: राज्य के विकास और रोजगार के लिए उद्योगों लगाने के लिए निवेशकों को जमीन की कोई दिक्कत नहीं आएगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट किया कि निवेशक करने वाले लोगों को जमीन के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है।
सवाल:सख्त भू-कानून से जमीनों खरीद फरोख्त और दुरुपयोग रुकेगा?
जवाब: यदि किसी व्यक्ति ने उद्योग लगाने के नाम पर जमीन ली। उस जमीन का उपयोग दूसरे प्रयोजन के लिए किया है। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर जमीन को सरकार में निहित की जाएगी।
सवाल: भू-कानून के तहत जमीन खरीद के प्रावधान राज्य के किस क्षेत्र में लागू होते हैं?
जवाब: आवास के लिए 250 वर्गमीटर जमीन का प्रावधान है, निकाय क्षेत्रों को छोड़कर पूरे प्रदेश में लागू हैं।

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