World Mental Health Day: बच्चों को बचाना है तो मोबाइल से बनाएं दूरी, दिमागी रूप से हो रहे कमजोर..
हमारे आसपास मोबाइल का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। आजकल की लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि बिना मोबाइल के घर से बाहर भी नहीं निकल सकते। फोन का दखल हमारी जिंदगी में काफी हद तक बढ़ गया है। बिना मोबाइल के आज हमारी जिंदगी अधूरी सी नजर आती है। पर क्या हो जब बच्चों को इसकी लत लग जाए। उनकी आंखें हर समय फोन की स्क्रीन पर चिपकी रहती हैं, जो उनके लिए ठीक नहीं है। मोबाइल अब बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करने लगा है। फोन में कार्टून देखना, गेम खेलना बच्चों को इस कदर प्रभावित कर रही है कि मोबाइल न मिले तो वह अजीब हरकतें करने लगते हैं। यही नहीं, फोन न देने पर अपने आप को नुकसान पहुंचाने से भी पीछे नहीं रहते। बच्चों के दिमाग में हो रही यह उथल पुथल देखकर माता-पिता भी परेशान हैं कि कहीं उनके लाडलों को कोई बीमारी तो नहीं है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल की लत बच्चों को बिगाड़ रही है। फोन पाने के लिए बच्चे माता-पिता के सामने अजीब हरकते करते हैं। कभी उनका गला दबाने की कोशिश करते हैं तो कभी खुद को नुकसान पहुंचाते हैं। पिछले दिनों अस्पताल में ऐसे केस आए हैं। जब बच्चे से अकेले में पूछा तो बताया कि यह सब नाटक इसलिए किया, ताकि उन्हें नया मोबाइल फोन मिल सके।
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आइए आप इन आसान तरीकों से इस मुसीबत से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं उनकी लत को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए
फिजिकल एक्टिविटीज के लिए करें प्रेरित
बच्चों को पार्क में बाहर खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ध्यान खेलने में लगेगा उतना ही कम मोबाइल में होगा। खेलने से बच्चे की हेल्थ भी अच्छी होगी। छोटे बच्चों को फिजिकल एक्टिविटीज जैसे स्विमिंग, पार्क में खेलने के लिए मोटिवेट करें।
एंटरटेनमेंट के लिए डालें ये आदतें
घर में बच्चे को मनोरंजन के लिए टीवी, किताबें पढ़ना और स्पीकर पर गाने सुनने को प्रेरित करना चाहिए। अगर आप बच्चे को मनोरंजन के लिए मोबाइल देंगे तो हर समय वह टाइमपास के लिए फोन में ही लगा रहेगा।
बच्चों के सामने खुद बनें उदाहरण
अगर अपने बच्चे को मोबाइल की लत से दूर रखना है तो आपको भी ऐसा ही करना पड़ेगा। आप खुद तो मोबाइल में लगे रहें और बच्चों को कहें कि आप न छुओ। अपने बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखने के लिए आपको खुद अच्छा उदाहरण बनना पड़ेगा
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बेडरूम में न रखें मोबाइल, टैबलेट
मोबाइल, टैबलेट या टीवी का प्रयोग किसी भी सूरत में देर रात तक बेडरूम में नहीं करना चाहिए। बच्चों के मोबाइल फोन रात में अपने साथ अपने कमरे में ही रखें।
कंप्यूटर-लैपटॉप बेहतर
अगर बच्चों को पढ़ाई के लिए इंटरनेट की जरूरत है, तो उन्हें मोबाइल की जगह कंप्यूटर या लैपटॉप मुहैया कराएं। इससे बच्चों की सेहत पर मोबाइल की तुलना में बहुत कम नुकसान होगा। कंप्यूटर या लैपटॉप में सिक्योरिटी कोड के साथ एंटी-वायरस डाल सकते हैं। लैपटॉप और कंप्यूटर पर आप बच्चों की एक्टिविटी की पर भी नजर रख पाएंगे।
बनाएं यह नियम
अब एकदम से तो ये हो नहीं सकता कि बच्चे पूरी तरह गैजेट्स या स्मार्ट टीवी को छोड़ दें। इसलिए बीच का रास्ता निकालना जरूरी है। आप बच्चे को गैजेट्स देने या स्मार्ट टीवी देखने के लिए एक टाइमिंग तय करें। बच्चा कितने बजे से और कब तक इन्हें यूज करता है उसे इसका टाइम बताएं।
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इन बातों पर ध्यान रखें-मोबाइल स्क्रीन का टाइम लिमिट तय करना
3 साल से पहले: कोई स्क्रीन टाइम नहीं
6 साल से पहले: इंटरनेट का प्रयोग नहीं
9 साल से पहले: विडियो गेम नहीं
12 साल से पहले: सोशल मीडिया का कोई प्रयोग नहीं
बच्चे हो सकते हैं इन समस्याओं का शिकार
कई स्टडी में दावा किया गया है कि अगर बच्चे ज्यादा मोबाइल चलाते हैं, तो उनकी आंखों की रोशनी कम हो सकती है। बच्चे चिड़चिडे़ हो जाते हैं और उन्हें एंग्जायटी, डिप्रेशन और सेल्फ डाउट्स जैसी समस्या हो सकती है। जिन बच्चों को फोन की लत लग गई है उनकी हेल्थ के साथ उनके विचारों में बदलाव देखा जाता है। ऐसी स्थिति में बच्चे ऑनलाइन साइबर क्राइम तक का शिकार हो सकते हैं। साथ ही कम बोलना, हर समय रोते रहना, जिद करना, गुस्सा करना, खुद को पीटना, बातें सब सुनना लेकिन किसी भी बात को न बोलना पाना, अपने से बड़े माता-पिता को पीटना, हाथ पैर पटकना
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