उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों को मिलेगी वैश्विक पहचान, GI टैग की सूची में शामिल होंगे 18 उत्पाद..
उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के मद्देनजर यहां के 18 उत्पादों को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिलने जा रहा है। केंद्रीय उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार मंत्रालय के जीआई रजिस्ट्री विभाग के तत्वावधान में 17 से 21 नवंबर तक देहरादून में होने जीआई महोत्सव में इसके प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। कृषि एवं ग्राम्य विकास मंत्री गणेश जोशी ने सोमवार को महोत्सव की तैयारियों के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पूर्व सलाहकार भाष्कर खुल्बे समेत विभागीय अधिकारियों के साथ विमर्श किया। उन्होंने महोत्सव को लेकर अधिकारियों को आपसी समन्वय से कार्य करने को कहा।
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इन उत्पादों को मिलेगा जीआई टैग
सरकार ने कुछ समय पहले स्थानीय उत्पादों उत्तराखंड लाल चावल, बेरीनाग चाय, गहथ, मंडुवा, झंगोरा, बुरांस सरबत, काला भट्ट, चौलाई (रामदाना), पहाड़ी तोर दाल, माल्टा, अल्मोड़ा लखौरी मिर्च, रामनगर-नैनीताल लीची, रामगढ़-नैनीताल आड़ू के साथ ही पांच हस्तशिल्प उत्पादों पर जीआई टैग प्राप्त करने को आवेदन किए। केंद्रीय उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार मंत्रालय के स्तर पर पर इनका परीक्षण हुआ और इसी वर्ष मई में मंत्रालय के अधिकारियों ने विभिन्न जिलों में जाकर सुनवाई की। इन उत्पादों को तय मानकों की कसौटी पर खरा पाया गया।
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उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेग पहचान
कृषि एवं ग्राम्य विकास मंत्री गणेश जोशी के अनुसार, 17 से 21 नवंबर तक देहरादून में होने वाले जीआई महोत्सव में केंद्र सरकार की ओर से इन उत्पादों को जीआई टैग के प्रमाणपत्र राज्य को प्रदान किए जाएंगे। इसके साथ ही राज्य के जीआई टैग प्राप्त उत्पादों की संख्या बढ़कर 27 हो जाएगी। इससे यहां के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। मंत्री जोशी ने सोमवार को जीआई महोत्सव की तैयारियों के संबंध में बैठक की। उन्होंने बताया कि महोत्सव में कृषि विश्वविद्यालयों को भी शामिल किया जाएगा। विद्यार्थियों के मध्य जीआई टैग से संबंधित प्रतियोगिताएं होंगी तो रैली भी निकाली जाएगी।
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क्या होता है GI टैग
वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। ऐसा प्रोडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है। भारत में संसद की तरफ से सन् 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। ये टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली या फिर तैयार की जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है।
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किसे मिलता है GI टैग
जीआई टैग से पहले किसी भी सामान की गुणवत्ता, उसकी क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है। यह तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजिनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है। इसके साथ ही यह भी तय किए जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्थिति का उसके उत्पादन में कितना योगदान है। कई बार किसी खास वस्तु का उत्पादन एक विशेष स्थान पर ही संभव हो पाता है। इसके लिए वहां की जलवायु से लेकर उसे आखिरी स्वरूप देने वाले कारीगरों तक का बहुत योगदान होता है।
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