उत्तराखंड निकाय चुनावः इन 3 सीटों पर होगा रोचक मुकाबला, बागी उम्मीदवारों ने बिगाड़ा खेल

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Uttarakhand civic elections

उत्तराखंड में तापमान भले गिरा हुआ हो लेकिन निकाय चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। उत्तराखंड में 11 नगर निगमों, 43 नगर पालिका, 46 नगर पंचायतों में निकाय चुनाव में कैंडिडेट जीत की कोशिश के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। हर जगह मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच नजर आ रहा है लेकिन ऋषिकेश नगर निगम में निर्दलीय दिनेश चंद्र ‘मास्टर जी’ की एंट्री ने चुनाव को रोचक बना दिया है। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के तरीकों से सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। मास्टर जी सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहे हैं। आपको बता दें कि ऋषिकेश, श्रीनगर और हल्द्वानी में मेयर पदों के लिए हो रही टक्कर दिलचस्प हो गई है।

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ऋषिकेश नगर निगम चुनाव में छाए ‘मास्टर जी’
ऋषिकेश नगर निगम में कांग्रेस के बागी निर्दलीय दिनेश चंद्र मास्टर ने बीजेपी और कांग्रेस की नीदें उड़ा रखी है। स्थानीय कैंडिडेट का मुद्दा उछाले जाने से यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए परेशानी खड़ी हो गई है। दोनों के ही प्रत्याशियों पर मूल रूप से यूपी का होने का ठप्पा लगा है। बीजेपी ने ऋषिकेश से शंभू पासवान को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने दीपक जाटव को मेयर कैंडिडेट बनाया है। वहीं उत्तराखंड क्रांति दल से महेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है। आपको बता दें कि मास्टर जी मूल रूप से देवप्रयाग के रहने वाले हैं। पिछले 30 साल से वह ऋषिकेश में रह रहे हैं। उन्होने ऑटो चलाने से लेकर टेलरिंग और छोटे बच्चों को पढ़ाने तक हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।

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श्रीनगर में पंचकोणीय मुकाबला
श्रीनगर गढ़वाल नगर निगम में लड़ाई बहुकोणीय बन गई है। बीजेपी ने आशा उपाध्याय को टिकट दिया है जबकि आशा उपाध्याय टिकट फाइनल होने से एक दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हुईं। इससे बीजेपी से टिकट पाने की लाइन में लगे दूसरे कैंडिडेट में असंतोष पैदा हो गया। इससे असंतुष्ट हुए बीजेपी के जिला पदाधिकारी लखपत सिंह भंडारी ने निर्दलीय के तौर पर अपनी पत्नी आरती भंडारी को मेयर के लिए खड़ा किया है। वहीं पूर्व में पालिका अध्यक्ष रहीं पूनम तिवाड़ी इस बार कांग्रेस का टिकट न मिलने पर निर्दलीय के तौर पर चुनावी मैदान में उतरी हैं। कांग्रेस ने मीना रावत को मैदान में उतारा है, जो पार्टी की पुरानी और सक्रिय कार्यकर्ता हैं। यूकेडी ने भी मेयर कैंडिडेट के लिए सरस्वती देवी को चुनावी मैदान में उतारा है। इस तरह यहां पंचकोणीय मुकाबला हो रहा है।

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हल्द्वानी राष्ट्रीय पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बनी
हल्द्वानी नगर निगम में मुकाबला तो सीधा है लेकिन छात्र संघ के जमाने से एक दुसरे का मुकाबला करते चले आ रहे ललित जोशी कांग्रेस से तो गजराज बिष्ट बीजेपी से टक्कर में हैं। यह सीट दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बनी है। बीजेपी की सरकार ने इसे पहले OBC के लिए आरक्षित घोषित किया बाद में उसे इसे सामान्य सीट घोषित करना पड़ा। एक OBC चेहरे को कांग्रेस से बीजेपी में यह आश्वासन देकर लाने के बाद कि उनको मेयर का चुनाव लड़ाया जाएगा यह युक्ति बीजेपी को भारी पड़ी। गजराज का टिकट काटने के लिए हल्द्वानी को OBC सीट घोषित किया वे OBC सीट के भी दावेदार निकले। लेकिन सामान्य घोषित होने पर भी गजराज ने दावा छोड़ा नहीं।

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बीजेपी ने पार्टी से निकाला तो एकजुट हुए बागी!
उत्तराखंड बीजेपी में दल बदल की विस्तारवादी नीति अब धीरे-धीरे एक नया स्वरूप लेती जा रही है। जहां पुराने कार्यकर्ता अक्सर चुनावी समर में पार्टी के फैसलों से नाराज होकर अलग हो जाते हैं तो वहीं बीजेपी में कांग्रेस समेत अन्य दलों से आने वालों की आमद लगातार बढ़ती जा रही है। गाहे बगाहे दबी जुबान में पार्टी के पुराने कार्यकर्ता भी महसूस कर रहे हैं कि बीजेपी में लगातार बाहर से आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। जिससे अपने पुराने कार्यकर्ताओं को पार्टी से रुखसत होना पड़ रहा है। मौजूदा समय में निकाय चुनाव के दंगल के बीच कुछ इस तरह से ही हालात देखने को मिल रहे हैं। देहरादून नगर निगम में बीजेपी ने 100 वार्ड में अपने कई पुराने कार्यकर्ताओं को नाराज किया है। इन कार्यकर्ताओं को पार्टी से निष्कासित भी किया गया है। बीजेपी के ये कार्यकर्ता जो कि संगठन को बारीकी से समझते हैं और पिछले लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे थे, अब पार्टी में नहीं है, लेकिन ये सभी निष्कासित लोग एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं। अलग-अलग वार्ड में ऐसे तकरीबन 40 प्रत्याशी हैं, जो बीजेपी से निष्कासित हुए हैं और चुनाव लड़ रहे हैं।

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