केदारनाथ हेलीकॉप्टर क्रैश: हेली सेवाओं पर फिर उठे सवाल, मानकों की हो रही अनदेखी। पढ़ें..
केदारनाथ धाम में निजी कंपनी के हेलीकॉप्टर के क्रेश होने के बाद इसे एक बार फिर हेली सेवाओं की मनमानी, डीजीसीए और एनजीटी के मानकों की अनदेखी से जोड़कर देखा जा रहा है। केदारनाथ धाम के लिए के लिए संचालित कोई भी हवाई सेवा एनजीटी तथा डीजीसीए के मानकों पर खरे नहीं उतर पा रही है। बार-बार भारतीय वन्यजीव संस्था को इनके विरुद्ध जांच के आदेश भी दिए गए हैं, लेकिन बावजूद इसके अभी तक किसी भी कंपनी के विरुद्ध कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई है। इससे पूर्व 31 मई को भी खराब मौसम के चलते एक निजी कंपनी के हेलीकॉप्टर ने इमरजेंसी लैंडिंग की थी, जो कि काफी भयावह थी। हालांकि इस घटना से किसी भी यात्री को चोट नहीं पहुंची थी। मानकों के अनुसार प्रत्येक हेलीकॉप्टर को मंदाकिनी नदी के तट से 600 मीटर ऊपर उड़ने की अनुमति है, क्योंकि मंदाकिनी के ऊपर केदारनाथ धाम तक हवाई मार्ग बेहद संकीर्ण है। जिसमें एक बार केवल दो ही हेलीकॉप्टर आवाजाही कर सकते हैं ,लेकिन कई बार इस संकीर्ण मार्ग से तीन तीन हेलीकॉप्टर भी आवाजाही करते देखे गए हैं।
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कई बार तो हेलीकॉप्टर शाम के धुंधले अंधेरे में भी तीर्थ यात्रियों की जान की परवाह न करते हुए आवाजाही करते हैं। केवल मुट्ठी भर पैसों के लिए तीर्थ यात्रियों की जान को भी जोखिम में डाल रहे हैं। गत वर्ष तो नारायणकोटि स्थित आर्यन एविएशन क्षतिग्रस्त हेलीपैड से अपनी सेवाएं दे रहा था, प्रशासन को अवगत कराने के बाद भी उक्त हेली कंपनी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई है। मानकों के अनुसार एक हेलीकॉप्टर एक बार में 4 सवारियों को ही ले जा सकता हैऔर कॉकपिट में पायलट और को-पायलट का होना नितांत जरूरी है, लेकिन अधिक पैसे कमाने ही होड़ में ये हेली सेवाएं कभी 6 तो कभी कभार 7 यात्रियों को भी उड़ा रही हैं। जबकि केदारनाथ धाम में संचालित सभी हेलीकॉप्टर सिंगल इंजन वाले हैं। केदारघाटी में निर्मित कई हेलीपैड के निकट 30 मीटर के फासले पर गौशाला या आवासीय भवन बने हुए हैं, जो कि डीजीसीए के मानकों के अनुरूप नहीं है। प्रतिदिन की शटल, साउंड ऊंचाई की रिपोर्ट केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग को भेजी जाती है,लेकिन प्रभाग को भी ज्ञात है कि कोई भी हेली सेवा ऊंचाई और ध्वनि को मेंटेन नही रख पा रही है। बाबजूद इसके इनके विरुद्ध कभी भी कार्यवाही नहीं होती है।
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हेली कंपनी के मालिकों के रसूख के सामने वन जीव प्रभाग, शासन और प्रशासन घुटने टेक चुका है या तो इन्हें भी भारी भरकम कमीशन दिया जा रहा है, जिस कारण ऐसे हादसों से केदारघाटी में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। ये हेली सेवाएं सेंचुरियन क्षेत्र में कम ऊंचाई पर उड़ान भर रहे हैं ,जिससे न केवल पर्यावरण प्रदूषण ही हो रहा है, बल्कि वन्यजीवों को भी पलायन को मजबूर होना पड़ रहा है। सेंचुरियन क्षेत्रों में इनकी अधिक आवाज सुनकर कई वन्यजीव मृत्यु को भी प्राप्त हो रहे हैं। अमूमन हेली अपनी टाइमिंग से 15 या 20 मिनट पहले और अपनी टाइमिंग से 15 या 20 मिनट बाद तक 2 या 3 अतिरिक्त शॉर्टी पूर्ण करती है। कई बार तो सायंकाल के अंधेरे में भी इन हेलीकॉप्टरों को मंदाकिनी के संकीर्ण मार्ग पर आवाजाही करते देखा गया है। आज की घटना भी कुछ इसी तरह से है, कोहरे और भारी बरसात के बाद भी यह हेली सेवाएं सुरक्षा मानकों को दरकिनार करते हुए निरंतर निजी स्वार्थ के कारण संचालित हो रहे हैं, जो कि निकट भविष्य के लिए बड़ा ही कष्टप्रद है।
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