उत्तराखंडः शराब व अन्य नशे को हाथ तक नहीं लगाते इन गांव के 3 हजार लोग, पीछे है यह मान्यता..

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उत्तराखंड राज्य का शराब से काफी पुराना नाता रहा है। पहाड़ों में लगभग हर आयोजन में शराब पीने-पिलाने का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे यहां की युवा पीढ़ी नशे की लत में बर्बाद हो रही है। पुरुषों के नशे की गर्त में जाने का असर अगर किसी पर सबसे ज्यादा पड़ता है, तो वह उस घर की महिला होती है। उत्तराखंड के मैदानी जिलों से लेकर पहाड़ तक शराब गहरे तक अपनी जड़े जमा चुकी है। किशोर और युवा नशे के दलदल में फंसकर अपना स्वर्णिम भविष्य और माता-पिता की उम्मीदों को चकनाचूर कर रहे हैं। लेकिन वहीं उत्तराखंड के गांव ऐसे भी हैं जहां के लोग शराब का बिल्कुल भी सेवन नहीं करते। हम बात कर रहे हैं। देहरादून जनपद के विकासनगरर के कालसी तहसील क्षेत्र के कोटा डिमोऊ और बोरी गांव के लोग की.. यहां के लोग शराब या किसी अन्य नशे को हाथ तक नहीं लगाते हैं।

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संकल्प मात्र से नशे की इच्छा हो जाती है समाप्त
इसके पीछे कोई बंदिश नहीं बल्कि धार्मिक मान्यता है। दोनों गांवों के भूमि देवता भगवान परशुराम महाराज है। मान्यता के अनुसार जहां भगवान परशुराम का वास होता है, वहां नशा पूरी तरह से वर्जित होती है। स्थानीय लोग तो नशा करते ही नहीं, बाहर से भी लोग मंदिर और भगवान परशुराम की महिमा सुन कर नशा मुक्ति के लिए आते हैं। यहां नशा मुक्ति के लिए केवल एक बार संकल्प लेना पड़ता है। माना जाता है कि संकल्प लेने के बाद नशे की इच्छा ही समाप्त हो जाती है। अगर कोई संकल्प तोड़ता है तो वह पागल हो जाता या उसके साथ अनहोनी घटित होती है।

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3 हजार लोगों में कोई भी नहीं करता नशा
गांव की आबादी करीब तीन हजार है। यहां कोई भी व्यक्ति शराब व अन्य नशा का सेवन नहीं करता है। शराब पीना तो दूर यहां घर में भी शराब नहीं रखी जाती है। यह परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। कोटा डिमोऊ और बोरी में अगर कहीं बारात आती है तो पहले आगाह कर दिया जाता है कि गांव की सीमा में कोई शराब लेकर नहीं आएगा।
भगवान खुद जाते है भक्त के घर
लोगों का कहना है कि मंदिर में भगवान परशुराम महाराज की पालकी और उनकी माता रेणुका देवी के चिह्न हैं। कई लोग मनोकामना सिद्धि के लिए मंदिर में आते हैं। वह मनोकामना पूरी होने पर देवता को अपने साथ ले जाने का वचन देते हैं। मनोकामना रखने वाला श्रद्धालु एक पुर्जी (लाल कपड़े में चावल को बांधकर) अपने घर के शुद्ध स्थान पर रख लेता है। मनोकामना पूरी होने पर देवता पालकी सहित भक्त के घर में जाकर एक दिन प्रवास करते हैं, वहीं उनकी पूजा भी होती है।

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युवाओं का कहना है..
गांव के युवाओं का कहना है कि भगवान परशुराम हमारे इष्ट देव हैं। जीवन में कभी नशा नहीं किया। कभी इच्छा भी नहीं होती है। दूसरे लोग पूछते है और कुछ मंदिर में संकल्प लेने के लिए भी आते हैं। नशे के बिना जीवन बहुत अच्छा होता है। हमारे यहां गांव में कोई भी नशा नहीं करता है। हम कहीं बाहर भी जाते है तो नियम का पूरा पालन करते हैं। यह आस्था का विषय है, इसमें किसी तरह की कोई जोर जबरदस्ती नहीं होती है। नशा भविष्य को बर्बाद कर देता है। देवता पर विश्वास हमें नशे से दूर रखता है। अगर सभी जगह भगवान में आस्था रख दुर्व्यसनों से दूर रहा जाए तो सभी तरह के अपराध और गलत काम स्वत: बंद हो जाएंगे।

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