उत्तराखंड में बढ़े 118 बाघ, आंकड़ा पहुंचा 560। जहां नहीं दिखते थे, अब वहां भी दिख रहे बाघ..

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उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में वैश्विक बाघ दिवस का आयोजन किया गया। इस दौरान केंद्रीय वन राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने विस्तृत रिपोर्ट जारी की। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी समेत केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट भी मौजूद थे। केंद्र सरकार ने बाघ गणना के राज्यवार आंकड़े जारी कर दिए हैं। मध्य प्रदेश 785 बाघों के साथ अव्वल रहा है। मध्य प्रदेश ने लगातार दूसरी बार अपना टाइगर स्टेट का दर्जा कायम रखा है। दूसरे स्थान पर कर्नाटक है, जहां 563 बाघ हैं वहीं 560 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे स्थान रहा।

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उत्तराखंड में ये हैं आंकड़े
उत्तराखंड की बीते वर्षों की बात करें तो साल 2006 में यहां 178 बाघ थे, 2010 में बाघों की संख्‍या 227 हो गई। चार साल बाद 2014 में 340 बाघ हो गए। साल 2018 में यह संख्‍या 442 हो गई। वहीं, 2022 में यहां बाघों की संख्‍या 560 हो गई है। उम्मीद पहले से ही जताई जा रही थी कि इस बार उत्तराखंड में बाघों के मामले में स्थिति में और सुधार आएगा और बाघों की संख्या का आकड़ा पांच सौ से अधिक पहुंच सकता है। पिछली बार राज्य बाघों के मामले में देश में तीसरे स्थान पर था, इस बार पायदान में एक स्थान ऊपर पहुंच सकता है। लेकिन इस बार भी प्रदेश तीसरे स्थान पर ही रहा।

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जहां नहीं दिखते थे, अब वहां भी दिख रहे बाघ
पिछली बार कार्बेट पार्क में 252 बाघ रिपोर्ट हुए थे जबकि पश्चिम वृत्त के अधीन आने वाले रामनगर, हल्द्वानी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय और तराई पूर्वी वन प्रभाग में 140 से अधिक बाघ मिले थे। राजाजी नेशनल पार्क से लेकर चंपावत और नैनीताल वन प्रभाग में बाघ मिले थे। इस बार भी भीमताल जैसे इलाकों में बाघ का मूवमेंट मिला है। ऐसा नहीं है कि बाघों की संख्या केवल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ही बढ़ रही हो। इससे सटे जंगलों और आसपास के इलाकों में भी बाघ देखे जा रहे हैं। सीतावनी रिज़र्व फॉरेस्ट, रामनगर-हल्द्वानी मार्ग और मालधन क्षेत्र में बाघ रिपोर्ट होना अच्छा संकेत है। कॉर्बेट लैंडस्केप में बाघों के रहने की जो आदर्श संख्या है, घनत्व के हिसाब से अधिक है।

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बढ़ रहा मानव-वन्यजीव संघर्ष
ऐसे में बाघों का रहने का क्षेत्रफल सिकुड़ रहा है और इनके बीच आपसी संघर्ष भी बढ़ रहा है। ऐसे में जो ताकतवर है वो अंदर रहेगा और जो कमज़ोर है वह इलाके से भागेगा। कॉर्बेट से सटे हुए कई गांव और खत्ते हैं और ऐसे में इलाका छोड़कर भागे बाघ इन गांवों के आसपास अपनी सीमा बना लेते हैं और पालतू मवेशियों का शिकार करते हैं। कभी-कभी इंसान भी इनका शिकार बन जाते हैं। मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए लिविंग विद लैपर्ड, लिविंग विद टाइगर जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इन कार्यक्रमों के तहत स्थानीय जनता को जागरूक किया जा रहा है कि वह कैसे वन्यजीवों से अपनी सुरक्षा करें। आबादी के आसपास बाघ या तेंदुआ दिखने पर वनकर्मियों को सूचित करें।

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