उत्तराखंड का पारंपरिक वाद्ययंत्र, जिसे नहीं पहचानती आज की पीढ़ी। जो है विलुप्त की कगार पर..

0

उत्तराखंड लोक गीतों, लोक नृत्यों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों का खजाना है। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के वाद्य यंत्र हों या उनसे निकलने वाला संगीत, दोनों बेहद विशिष्ट हैं। उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना में पर्वतीय क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति एक महत्वपूर्ण बिंदु था, परन्तु यह दुर्भाग्य है कि उत्तराखंड बनने के बाद यह बिंदु धीरे धीरे गायब होने लगा है। इसका प्रमुख कारण वादकों के परिवार में रोजी रोटी का संकट होना था। सरकारों ने लोकविधाओं, लोक कलाकारों, लोक वाद्यों को आगे बढ़ाने, उन्हें संरक्षित करने को प्रयास नहीं किया। नतीजतन कलाकार अपनी विधाओं और कला से दूर होते चले गए। वहीं आधुनिक समय डिजीटलाइजेशन होने के कारण भी लोकवाद्य पर ग्रहण सा लग गया। मांगलिक कार्यों और मेलों आदि अवसरों पर बजाई जाने वाली नागफणी तांबे और पीतल की तुरही नुमा लोक वाद्य है। तुरही का आगे का हिस्सा खुला और चौड़ा होता है, जबकि नागफणी का आगे का हिस्सा या मुंह नाग या सांप के मुंह की तरह का बना होता है। इसी के कारण इसे नागफणी कहते हैं। कम प्रचलित होने के कारण भी यह मांगलिक कार्यों पर प्रयोग होती रही है।

नागफणी है लुप्त होने के कगार पर
उत्तराखंड के अधिकांश लोक वाद्य आज या तो लुप्त होने को हैं या लुप्त हो चुके हैं। नागफणी उत्तराखंड का एक ऐसा लोक वाद्य यंत्र है जो अब लुप्त हो चुका है। पहाड़ की नई पीढ़ी ने तो कभी इसका नाम भी नहीं सुना होगा। शिव को समर्पित यह कुमाऊं का एक महत्वपूर्ण लोक वाद्य यंत्र है, जिसका प्रयोग पहले धार्मिक समारोह के अतिरिक्त सामाजिक समारोह में भी खूब किया जाता था। लगभग डेढ़ मीटर लम्बे इस लोक वाद्य में चार मोड़ होते हैं, कुछ नागफणी में यह चारों मोड़ पतली तार से बंधे होते थे। नागफणी का आगे का हिस्सा या सांप के मुंह की तरह का बना होता है, इसी कारण इसे नागफणी कहा जाता है।

तांत्रिक साधना करने वाले लोग करते है नागफणी का इस्तेमाल
नागफणी को बजाने के लिये बेहद कुशल वादक चाहिये। तांत्रिक साधना करने वाले लोग आज भी इस नागफणी वाद्ययंत्र का प्रयोग करते हैं। मध्यकाल में नागफणी का इस्तेमाल युद्ध के समय अपनी सेना के सैनिकों में जोश भरने के लिये भी किया जाता था। बाद नागफणी का इस्तेमाल मेहमानों के स्वागत में किया जाने लगा। विवाह के दौरान भी इस वाद्य यंत्र का खूब प्रयोग किया जाता था। उत्तराखंड के अतिरिक्त नागफणी गुजरात और राजस्थान में भी बजाया जाता है। दोनों ही राज्यों में भी इस वाद्य यंत्र की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। अब इस वाद्ययंत्र को बजाने वालों की संख्या नहीं के बराबर है, इसलिए अब कोई इसे बनाता भी नहीं है। हां पुराने संग्रहालयों में नागफणी आज भी देखने को जरूर मिल जाता है।

5/5 - (1 vote)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिलवाणी में आपका स्वागत है |

X