आखिर क्या है बादल फटने का रहस्य? उत्तराखंड में फटते हैं सबसे ज्यादा बादल, क्या हैं वजह, जानें..

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Most of the clouds burst in Uttarakhand. Hillvani News

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उत्तराखंड में अन्य हिमालयी राज्यों की तुलना में मानसून सीजन में सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की जाती है। हिमालयी राज्यों में सबसे ज्यादा बादल फटने की घटनाएं भी उत्तराखंड में होती हैं। मॉनसून के सीजन में बादल फटने की घटनाओं में भी लगातर इजाफा होता जा रहा है। एक चिंता की बात यह भी है कि अब कुछ क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं बार बार दिखाई दे रही हैं। वैसे ऐसी घटनाएं पर्वतीय क्षेत्रों के आसपास ही ज्यादा हो रही हैं। लेकिन चिंता की बात यह भी है कि कई बार कुछ जगहों पर इससे नुकसान काफी ज्यादा होता है। इस मानसून सीजन में सबसे ज्यादा बादल फटने और अतिवृष्टि की घटनाएं दर्ज की गई हैं। जिसकी वजह से उत्तराखंड में जानमाल की हानि भी सबसे ज्यादा हुई है। बादल फटने और अतिवृष्टि की वजह जहां एक और पर्यावरणीय कारण है तो दूसरी तरफ अंधाधुन विकास भी है। खास बात यह है कि मौजूदा स्थितियों के पीछे के कारणों को जानने के लिए अब वैज्ञानिकों की टीम भी जुट गई हैं, ताकि कुछ चिन्हित क्षेत्रों में बार बार बादल फटने की घटनाओं की वजह को जाना जा सके।

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उत्तराखंड में कई जगह पर बादल फटने और अतिवृष्टि बारिश होने की वजह से आपदाएं आ रही हैं और इसकी वजह लगातार मौसम का बदलना और बारिश के पैटर्न में हो रहे बदलाव को भी माना जा रहा है। तो वहीं उत्तराखंड जैसे छोटा राज्य में सबसे ज्यादा बादल फटने और अतिवृष्टि बारिश के आंकड़े हिमालय राज्यों में सबसे ज्यादा दर्ज किए गए हैं। कुछ ऐसी बादल फटने की घटनाएं हैं जो बहुत बड़ी रही है। उत्तराखंड में लगभग ऐसी 60 से ज्यादा घटनाएं हैं जिन का रिकॉर्ड भी है। उत्तराखंड के मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह के मुताबिक जम्मू कश्मीर, हिमाचल या फिर दूसरे अन्य हिमालय राज्यों की तुलना में उत्तराखंड में मानसून सीजन में सबसे ज्यादा बारिश होती है जिससे बादल फटना या फिर अतिवृष्टि होने की घटनाएं होती हैं। वहीं आपको बता दें कि उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक के मुताबिक साल 2021 में कुल 26 बादल फटने और अतिवृष्टि की घटना हुईं हैं। जिसमें 11 लोगों की जान गई। 50 जानवर भी मरे थे।

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उत्तराखंड में मानसून सीजन में बादल फटने या अतिवृष्टि के आंकड़े-
1- साल 2021 में कुल 26 बादल फटने /अतिवृष्टि की घटना हुईं, जिसमें 11 लोगों की जान गई, 50 जानवर भी मरे।
2- साल 2020 में कुल 14 बादल फटने/अतिवृष्टि की घटनाएं हुई, जिसमें 19 लोगों की मौत हुई।
3- साल 2019 में कुल 23 बादल फटने या अतिवृष्टि की घटनाएं रिकॉर्ड हुई, 31 लोगो की मौत भी हुई।
4- साल 2018 में कुल 7 बादल फटने अतिवृष्टि की घटनाएं रिकॉर्ड हुई, 10 लोगों की मौत हुई।
बादल फटने का कारण ग्लोबल वार्मिंग
यही नहीं कुछ निश्चित जगहों पर बार बार बादल फटने की घटनाएं भी रिकॉर्ड की गई हैं। जानकारों का कहना है कि इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है। पर्यावरण में बदलाव ने ऐसी घटनाओं में इजाफा किया है। विभिन्न अध्ययन यह बताते हैं कि आने वाले दिनों में भी इससे दिक्कतें बढ़ती हुई दिखाई देंगी। हालांकि इससे हो रहे ज्यादा नुकसान के लिए वह इंसानों को ही जिम्मेदार बताते हैं। वहीं हाल ही में देहरादून के माल देवता क्षेत्र में बादल फटा। इस घटना के रिकॉर्ड होने के बाद न केवल सरकार बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। सवाल यह कि आखिरकार माल देवता क्षेत्र में बार बार बादल फटने की घटनाएं क्यों हो रही हैं। इन सवालों का जवाब अध्ययन के तौर पर तो वैज्ञानिकों के पास अभी नहीं है।

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बड़ी और गहरी संकरी घाटियां बादल फटने की वजह
2020 की बात करें तो हिमालय राज्यों में उत्तराखंड में 14, हिमाचल में 3, जम्मू कश्मीर में 9, मेघालय ,सिक्किम और अरुणाचल में 1-1 बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गई। अब सवाल यह आता है कि उत्तराखंड राज्य में पिछले कुछ सालों में बादल फटने की घटनाओं में क्यों इजाफा होता जा रहा है। इस पर वाडिया इंस्टीट्यूट के रिटायर्ड वैज्ञानिक डीपी डोभाल का मानना है कि उत्तराखंड में बड़ी और गहरी संकरी घाटियां है। जिसकी वजह से बादल ज्यादा घाटियों में ऊपर नहीं उठ पाते हैं और निचले हिस्सों में गर्म हवा और ठंडी हवा की वजह से दबाव इतना बढ़ जाता है कि घाटियों में और ज्यादातर इलाकों में बादल फटने की घटनाएं होती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि क्लाउड बर्स्ट यानी बादल फटने की घटनाओं का सही डाटा अभी तक ना तो उत्तराखंड के पास और ना ही अन्य हिमालय राज्यों के पास है।

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मैदान के सापेक्ष पहाड़ में बादल फटने से ज्यादा नुकसान
बादल फटने की घटनाएं वैसे तो पहले भी होती थीं और मैदानी जिलों में भी कई बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं। लेकिन कुछ जगहों पर इसका नुकसान काफी ज्यादा होता है। मैदानी जिलों में बादल फटने की घटना ज्यादा प्रभाव नहीं डालती। ऐसा इसलिए क्योंकि नदियों के किनारे और विभिन्न झरनों के आसपास तमाम अतिक्रमण होने के कारण ऐसी जगह पर बादल फटने के बाद काफी ज्यादा नुकसान होता है।
डॉपलर रडार से जुटा सकेंगे बादल फटने की घटनाओं का डाटा
वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके लिए डॉपलर रडार ज्यादा से ज्यादा लगाने होंगे तो डाटा की रिसर्च भी जरूरी है। बादल फटने की घटनाएं जिस तरीके से पिछले कुछ समय में उत्तराखंड राज्य में बढ़ी है उसकी वजह एक ओर जहां प्राकृतिक कारक जिम्मेदार है तो वहीं इसकी सबसे बड़ी वजह पेड़ों का कटान और डेवलपमेंट भी है। क्योंकि लगातार कंस्ट्रक्शन होने से पोलूशन बढ़ता है और हवा में धूल के कण ज्यादा हो जाते हैं साथ ही धरातल ज्यादा गर्म हो जाता है।

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