कुछ सालों में उत्तराखंड में बढ़ी बादल फटने की घटनाएं, पढ़े कारण और प्रभाव..

Incidents of cloudburst increased in Uttarakhand. Hillvani
उत्तराखंड हर साल प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलता है। जिसमें जान माल का काफी नुकसान पहुंचता है। इस आपदा में बादल फटने की घटना भी शामिल है, जो आपदा की मुख्य वजहों में शामिल है। प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का करीब तीन चौथाई हिस्सा गंभीर से लेकर हाई भूस्खलन जोन वाले क्षेत्र में आता है। प्री मानसून का दौर जारी है और मानसून शुरू होने वाला है। पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार इस तरह की आपदा का प्रकोप बना रहता है। विशेषकर बीते कुछ वर्षों के दौरान बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं।
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क्यों फटते हैं बादल
मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो जब बादलों का घनत्व बढ़ जाता है, तब वो पहाड़ी इलाकों में फंस जाते हैं। जिससे वो आगे नहीं बढ़ पाते हैं। यानी बादल फटने की घटना तब होती है, जब बहुत ज्यादा नमी वाले बादल एक ही जगह पर रुक जाते हैं। पानी की बूंदों का वजन बढ़ने से बादलों का घनत्व भी बढ़ जाता है। ऐसे में अचानक से एक ही जगह पर बरस जाते हैं। इस दौरान कुछ ही मिनटों में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा तक बारिश हो जाती है। बादल फटने के दौरान नदी नालों और गदेरों का जलस्तर अचानक बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं। ढलान की वजह से पहाड़ों पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता है। ऐसे में खड़ी ढलानों से बहता पानी तेजी से नीचे की ओर आता है। नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़, पत्थर, मलबा और पेड़ों के साथ लेकर आता है। कीचड़ का यह सैलाब रास्ते में जो भी आता है, उसे अपने साथ बहा ले जाता है।
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बादल फटने के कारण
बादल फटना एक जटिल प्राकृतिक घटना है, जो कई कारणों से हो सकता है। यह हम बादल फटने के कारणों पर एक नजर डालें…
भौगोलिक कारण- भौगोलिक संरचना भी बादल फटने के कारणों में शामिल होती है। पर्वतीय क्षेत्र और घाटियाँ विशेष रूप से इस घटना के लिए संवेदनशील होती हैं। जब ह्यूमिडिटी हवा पर्वतों की ओर उठती है, तो वह ठंडी होती जाती है और बादल बनने लगते हैं। अगर यह बादल बहुत भारी हो जाते हैं और उनके भीतर पानी के कणों का दबाव बढ़ जाता है, तो वे अचानक फट सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप भारी बारिश हो सकती है, विशेषकर उन स्थानों पर जहां नदियाँ और झीलें स्थित हैं।
जलवायु परिवर्तन- जलवायु परिवर्तन भी बादल फटने के कारण के रूप में सामने आता है। जब पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता है, तो वायुमंडल में अधिक पानी वाष्पित होता है, जिससे अधिक नमी उत्पन्न होती है। इस नमी के कारण बादल तेजी से बनते हैं और इनका आकार भी बढ़ता है। इन बदलावों के कारण बादल में संचित जलवाष्प बहुत अधिक हो सकता है, जिससे बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है।
अन्य कारण
1- जंगलों की कटाई और शहरीकरण– जंगलों की अंधाधुंध कटाई और शहरीकरण प्राकृतिक वायुमंडलीय स्थितियों को प्रभावित करता है, जिससे वाष्पीकरण और ह्यूमिडिटी में बदलाव होता है।
2- प्राकृतिक जल निकासी में रुकावट– जब नदियों या जलाशयों का प्रवाह बाधित होता है, तो जलवाष्प का संचार बढ़ सकता है। इससे भारी और दबावपूर्ण बादल बनने पर वे अचानक फट सकते हैं।
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बादल फटने के प्रभाव
बादल फटना प्राकृतिक आपदाओं में से एक है, जिसके गंभीर प्रभाव पर्यावरण, मानव जीवन और कृषि पर पड़ सकते हैं। यह घटना जलवायु परिवर्तन, मानसून और अन्य मौसमीय कारकों के साथ जुड़ी होती है। बादल फटने के प्रभाव काफी व्यापक होते हैं और इसके परिणामस्वरूप बहुत सी नकारात्मक स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव
1- भूस्खलन (Landslide) और बाढ़– बादल फटने से भारी बारिश बाढ़ और भूस्खलन का कारण बनती है, खासकर पहाड़ी इलाकों में। यह भूमि, पारिस्थितिकी तंत्र, और जल गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाता है, क्योंकि मिट्टी और प्रदूषक नदियों में बह जाते हैं।
2- नदियों का जल स्तर बढ़ना– भारी बारिश से नदियों का जल स्तर बढ़कर बाढ़ का कारण बनता है। इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह और घाटी की बनावट प्रभावित हो सकती है।
मानवीय प्रभाव
1- जान-माल का नुकसान– बादल फटने के कारण होने वाली बाढ़ और भूस्खलन के परिणामस्वरूप जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है। नदियों के किनारे बसे गाँव और शहर बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं, और स्थानीय लोग जान गंवा सकते हैं। इसके अलावा, भूस्खलन के कारण सड़कों, पुलों और घरों का विनाश हो सकता है, जिससे भारी क्षति होती है।
2- गांवों और शहरों में बुनियादी ढांचे का विनाश– बाढ़ से सड़कें, पुल, बिजली और संचार व्यवस्था प्रभावित होती है, जिससे स्थानीय जीवन और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है। पानी की आपूर्ति और स्वच्छता खराब होने से स्वास्थ्य संकट भी उत्पन्न हो सकते हैं।
कृषि और आजीविका पर प्रभाव
1- फसलों का नुकसान– भारी बारिश से फसलें डूबकर उत्पादन घटता है, जिससे किसानों की आजीविका और आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है। बाढ़ से होने वाले नुकसान के कारण किसान अपनी फसलें बेचने में सक्षम नहीं हो पाते, जिससे उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है।
2- भूमि का कटाव– तेज बहाव से भूमि कटाव होता है, जिससे उपजाऊ कृषि भूमि नष्ट हो जाती है। यह दीर्घकालिक कृषि संकट और पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ाता है। यह स्थिति किसानों के लिए एक दीर्घकालिक संकट उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि उपजाऊ भूमि के नष्ट होने से अगले कुछ वर्षों तक कृषि कार्य प्रभावित हो सकते हैं।
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आंकड़ों पर डालिए एक नजर
अगर पिछली आंकड़ों पर गौर करें तो आपदा ने उत्तराखंड को कई गहरे जख्म दिए हैं। जिसमें हजारों लोगों की असमय ही जानें जा चुकी है। सबसे बड़ी आपदा साल 2013 में केदारनाथ में आई थी। इसके अलावा अगस्त 1998 में रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ और पिथौरागढ़ में बादल फटा था। अगस्त 2001 में रुद्रप्रयाग के फाटा, अगस्त 2002 में टिहरी के बूढ़ाकेदार, अगस्त 2012 उत्तरकाशी के अस्सी गंगा, सितंबर 2012 रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ, जून 2013 रुद्रप्रयाग के केदारनाथ में बादल फटने की घटना हुई। इसके अलावा अगस्त 2019 में उत्तरकाशी के आराकोट, अगस्त 2020 रुद्रप्रयाग, मई 2021 देहरादून, मई 2022 में नैनीताल और बागेश्वर, जुलाई 2023 उत्तरकाशी, अगस्त 2024 में टिहरी में बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गई। हाल ही वर्षों की बात करें तो साल 2019 में उत्तराखंड में ऐसी 23 घटनाएं हुईं और 19 लोगों की मौत हुई। साल 2020 में 14 बादल फटने की घटनाएं हुई। जबकि, साल 2021 में उत्तराखंड के 9 जिलों में कम से कम 26 बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। वहीं, साल 2022 में बादल फटने की 31 घटनाएं हुईं। 2023 के दौरान उत्तराखंड में 28 बादल फटने की घटना हुई।
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बादल फटने के बाद कैसे बचें?
बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह से रोकना संभव नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव को कम करने के लिए वर्तमान में कई उपाय लागू किए गए हैं। इन उपायों का उद्देश्य न केवल आपदा के दौरान बल्कि उसके बाद भी लोगों की सुरक्षा और पुनर्वास सुनिश्चित करना है। आपके आस-पास बादल फटने की स्थिति में सुरक्षित रहने के लिए सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको शांत रहना चाहिए। आपातकालीन स्थिति में घबराहट कभी भी मदद नहीं करती है, इसके बजाय आपको अपने बारे में समझदारी रखनी चाहिए और अपनी सुरक्षा और अपने आस-पास के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। बाहर जाने से बचें। भारी वर्षा के दौरान ब्लैकआउट आम बात है। ऐसे में जनरेटर या यूपीएस जैसा बैकअप पावर स्रोत पहले से तैयार रख सकते हैं। बारिश में खड़े न रहें या बाढ़ वाले इलाकों के पास न जाएं। खुद को करंट लगने से बचाने के लिए बिजली के खंभों या तारों से दूर रहें। आपकी सुरक्षा के लिए बाढ़ वाले क्षेत्रों और मौसम की भविष्यवाणी जैसी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए ताजा समाचारों पर अपडेट रहना जरूरी है। आपातकालीन किट काम आ सकती हैं।
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