नौ आछरी बहनों में एक थी भराड़ी! भराड़ीसैंण कहने भर को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी, लेकिन महत्व और आकर्षण बहुत अधिक..

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लेख वरिष्ठ पत्रकार- शीशपाल गुसाईं
उत्तराखंड की लोक संस्कृति में ऐसी कई परंपराएं और मान्यताएं हैं जो इस खूबसूरत क्षेत्र के रहस्य और आकर्षण को बढ़ाती हैं। ऐसी ही एक मान्यता है “सुंदर परियों” की अवधारणा जिन्हें “आछरी” के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि ये परियां पहाड़ों के सुरम्य बुग्यालों में निवास करती हैं, जो प्राकृतिक परिदृश्य के आकर्षण और जादू को बढ़ाती हैं। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार व चमोली के वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट के 2017 के लेख के अनुसार उत्तराखंड के जंगलों और घास के मैदानों में कई दिव्य सत्ताएं निवास करती हैं। इनमें “बारह भै” ( बारह भाई ) “वण दयो” ( वन देवता ) सोलह “लिंग ऐडी” ( ऐडी भी वन परी हैं ) और नौ बहनें हैं जिन्हें आछरी के नाम से जाना जाता है। इन सभी प्राणियों को अविश्वसनीय रूप से सुंदर और पवित्र माना जाता है, जो प्राकृतिक दुनिया की सुंदरता और पवित्रता का प्रतीक हैं। सबसे पूजनीय वन बहनों में से एक का नाम “भराड़ी” है। इसी नाम से उत्तराखंड राज्य की ग्रीष्मऋतु राजधानी के नाम से पवित्र भराड़ीसैण में बना है। स्थानीय लोककथाओं में इस नाम का बहुत महत्व है, जो सुंदरता, अनुग्रह और दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है। जिस स्थान पर भराड़ी निवास करती है, उसका वर्णन “सुंदर हथेलियों की तरह है जिस पर अल्पना की मेहंदी रची जाती है” जो इसके आकर्षक और अलौकिक स्वरूप को और भी अधिक आकार देती है। “भराड़ीसैंण” को अत्यंत सुंदर बताया गया है, जो किसी परी कथा से मिलता जुलता है। इसकी सुंदरता अद्वितीय बताई जाती है, जिसमें पवित्रता और रहस्य की आभा है जो इसे देखने वाले सभी को मोहित कर लेती है। कहा जाता है कि यह स्थान आकर्षण और आश्चर्य की भावना को प्रकट करता है, जो अपने अलौकिक आकर्षण से आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। अब इस सत्र में परी भराड़ी देवी के मंदिर बनाये जाने के लिए मुख्यमंत्री धामी ने संस्कृति विभाग को निर्देश दिए हैं।

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भराड़ीसैंण में 1970 में विदेशी पशु प्रजनन केंद्र खोला गया
1970 के दशक में भराड़ीसैंण के सुरम्य गांव में डेनिश गायों के शांत परिदृश्य में आने से एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। इन गायों को स्थानीय जलवायु में पनपने की उनकी क्षमता और घास के मैदानों और औषधीय घास की प्रचुरता के कारण इस क्षेत्र में लाया गया था, जो उनकी चराई की ज़रूरतों को पूरा कर सकते थे। परिणामस्वरूप, गांव में एक विदेशी मवेशी प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया, जिसने क्षेत्र में पशुधन खेती के एक नए युग की शुरुआत की। डेनमार्क की गायों ने अपने नए परिवेश में अच्छी तरह से अनुकूलन किया और जल्द ही स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गईं। अपने उच्च दूध उत्पादन के साथ, उन्होंने स्थानीय लोगों के लिए डेयरी उत्पादों का एक मूल्यवान स्रोत प्रदान किया। कई वर्षों तक, भराड़ीसैंण के लोगों ने इन गायों के ताजे और पौष्टिक दूध का आनंद लिया, जो उनके समग्र कल्याण और पोषण में योगदान देता था। सरकार की इन गायों के बछड़ों को क्षेत्र के हर गाँव और घर में वितरित करने की महत्वाकांक्षी योजना थी, जिसका उद्देश्य दूध उत्पादन बढ़ाना और निवासियों की आजीविका में सुधार करना था। हालांकि, समय बीतने के साथ, गाय पालन केंद्र के शुरुआती लक्ष्य पूरी तरह से साकार नहीं हो पाए और परियोजना उम्मीद के मुताबिक आगे नहीं बढ़ पाई।
2012 में भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन की आधारशिला रखी गई
गैरसैंण से 14 किलोमीटर दूर ऊंचाई में भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण उत्तराखंड के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और विकासात्मक यात्रा रही है। 2012 में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने इस परियोजना के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए इसकी आधारशिला रखी और लगभग 200 करोड़ रुपये के टेंडर जारी किए। उनके उत्तराधिकारी हरीश रावत ने भी इस पहल का जोरदार समर्थन किया। एक उल्लेखनीय कदम में, रावत की सरकार ने 17 और 18 नवंबर 2016 को आंशिक रूप से नव निर्मित भराड़ीसैंण विधानसभा भवन में पहला सत्र आयोजित किया, तब उसमें खिड़कियां में शीशे नहीं लगे थे, हवा के झोंके मंडप के अंदर आ जाते थे।

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4 मार्च 2020 को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित !
भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में गैरसैंण को और पहचान तब मिली जब उन्होंने 4 मार्च 2020 को इसे उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया। यह घोषणा इस क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण थी और इसने इसके राजनीतिक महत्व को मजबूत किया। आज तक, भराड़ीसैंण क्षेत्र में लगभग 500 करोड़ रुपये की बिल्डिंगे बनाई जा चुकी हैं, जो 47 एकड़ में फैली हुई है। इस व्यय में विधानसभा, मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधायकों और सचिवों के लिए आवासों का निर्माण शामिल है।
भराड़ीसैंण विधानसभा भवन एक भव्य संरचना है!
भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन एक भव्य संरचना है जो इसके निर्माताओं की वास्तुकला कौशल का प्रमाण है। नए संसद भवन की भव्यता से मिलता-जुलता यह भवन साढ़े तीन मंजिला प्रवेश द्वार गैलरी से सुसज्जित है, जिसके अंदरूनी हिस्से में जटिल लकड़ी की कलाकृतियाँ हैं। विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) के लिए बैठने की विशाल व्यवस्था खुली चर्चा और वाद-विवाद की अनुमति देती है, जबकि आधुनिक संचार सुविधाओं से सुसज्जित मीडिया सेंटर की मौजूदगी निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित करती है।।अंग्रेजों द्वारा निर्मित, देहरादून में प्रतिष्ठित वन अनुसंधान संस्थान की तरह, भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन वास्तुकला से चमत्कार पहाड़ों की विरासत को संरक्षित करने का इरादा जाहिर करता है।

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भवन में आयोजित सत्र के दौरान, एक जीवंत मेला लगता है, जिसमें विधायक, अधिकारी, मीडिया की भीड़ उमड़ती है। अंतिम दिन चमोली- अल्मोड़ा आसपास के छोटे बड़े नेता भी यहाँ प्रवेश कर जाते हैं। तीन लेयर की सुरक्षा उन्हें ढील दे देती है। वह यहां ज्यादातर फोटो खिंचवाने आते हैं। कुछ लोग मुख्य मंत्री से मिलने आते हैं। हालांकि, जैसे-जैसे सत्र समाप्त होता है, मेले की चहल-पहल कम होती जाती है और ध्यान देहरादून पर केंद्रित हो जाता है। सत्र समाप्ति वाले दिन मंत्री, विधायक, आला अधिकारी देहरादून जा रहे थे तब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने ऑफिस में बैठे लोगों, मीडिया से मिल रहे थे। जब सारा भराड़ीसैंण खाली हो चुका था तब उस रात मुख्यमंत्री ने वहाँ रुकने की इच्छशक्ति दिखाई। हो सकता है यह एक संदेश हो। सीएम कुल चार रात वहाँ रुके। सत्र के तीनों दिन वह कुछ देर सत्र में बैठते थे, कभी आपदा में भिलंगना टिहरी आते, कभी शहीद के घर जाते, कभी मेले का उद्घाटन करने। यह आवागमन हेलीकॉप्टर से होता था। अक्सर वह लंच का समय चुनते थे। हेलिपैड भराड़ीसैंण में है लेकिन वहां कोहरा छाया हुआ रहता था। इसलिए नीचले इलाकों में हैलीपेड बनाये गए थे। सुरक्षा कर्मियों को आवागमन का पता रहता था। मैं जब एक दिन वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली को 14 किमी दूर मूर्ति को नमन करने जा रहा था। तब रोकने पर पता चला कि मुख्यमंत्री सदन के अलावा अन्य जगह भी जाते हैं।

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हमारे वरिष्ठ सहयोगी अर्जुन सिंह बिष्ट और चौखुटिया की ब्लॉक प्रमुख किरन बिष्ट को मुख्यमंत्री ने बताया कि अगला सत्र 15 दिन का यहाँ होगा। तब अधिकारियों को स्थायी रूप से यहाँ रहना होगा। उन लोगों ने मुस्कुराते हुए बाहर आकर यह बात मुझे बताई। मैं विधानभवन के बाहर, सीढ़ियों में 7800 फीट की ऊंचाई पर कोहरे और ठंडी हवा से घिरे होने का अनूठा अनुभव ले रहा था, जो अन्यत्र आसानी से नहीं मिलता। हर दिन रास्ते में, हम लोग अक्सर चाय के लिए, आदिबद्री , चाँदपुरगढ़ी रुकते थे, और आस-पास के पहाड़ों और घाटियों के लुभावने दृश्यों का आनंद लेते थे। बातचीत में स्थानीय लोग, चाय के होटल वाले लोग बताते थे कि कल, या परसों सत्र का आखिरी दिन है आप लोग देहरादून के लिए निकल जाओगे ? यह उदासीभरे लेकिन हल्का सा उत्तेजना वाले उनके सवाल होते थे। जैसे उन्होंने पहले ही हमारे लिए सवाल मस्तिष्क में तय किया हो। कुछ लोग बताते हैं गैरसैंण, गर्मियों की राजधानी होने की अफवाह है, वास्तव में कुछ महीनों के लिए यहाँ शासन का केंद्र बन जाए तो स्थानीय लोगों की यह धारणा बदल सकती है। हम लोग “देहरादून वाले हैं” इस मानसिकता में उनका बदलाव आ सकता है। जैसे-जैसे सूरज पहाड़ियों पर डूबता है और कोहरा चारों ओर छा जाता है,भराड़ीसैंण शांति और स्थिरता का आश्रय स्थल बना रहता है, जो भविष्य में आशा और प्रगति से भरा होने का वादा करता है।

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