हरेला महोत्सव 2022: मानव संस्कृति तथा पर्यावरण का विकास साथ-साथ हुआ…

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Human culture and environment developed together. Hillvani News

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मानव संस्कृति तथा पर्यावरण का विकास साथ-साथ हुआ है। हमारी संपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति जैविक रूप से संपन्न हिमालय पारितंत्र द्वारा होती है। स्प्रिंग्स जैव-विविधता के क्षय से न सिर्फ हमारी जीवन, संस्कार व संस्कृति प्रभावित होगी, अपितु वन्य-जीवन भी प्रभावित होगा। अतः अपनी गौरवशाली सांस्कृतिक पहचान के लिये हमें जैव-विविधता को फिर से पुनःस्थापित करना होगा ये कहना हैं नौला फाउंडेशन के पर्यावरणविद पद्मश्री कल्याण सिंह रावत का जो जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार, नमामि गंगे एवं समुदाय आधारित नौला फाउंडेशन द्वारा आयोजित हरेला बायोडायवर्सिटी महोत्सव कार्यशाला जो राजकीय आदर्श कीर्ति इंटर कॉलेज उत्तरकाशी में प्रतिभाग किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी महोदय अभिषेक रुहेला एवं मुख्य विकास अधिकारी गौरव कुमार ने हिमालयी जैव विविधता हेतु वैविक पौधों का वृक्षाणरोपण किया। जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार और नौला फाउंडेशन द्वारा राज्य भर में स्प्रिंग्स जैवविविधता की पाठशाला ‘हरेला महोत्सव -2022 ‘ का आयोजन चल रहा हैं। स्प्रिंग्स जैव-विविधता मृदा निर्माण के साथ-साथ उसके संरक्षण में भी सहायक होती है। स्प्रिंग्स जैव-विविधता मृदा संरचना को सुधारती है, जल-धारण क्षमता एवं पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाती है।

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स्प्रिंग्स जैव-विविधता जल संरक्षण में भी सहायक होती हैं, क्योंकि यह जलीय चक्र को गतिमान रखती है। आइये हम साथ एक शुरुवात करते हैं हिमालय की स्प्रिंग्स जैवविविधता के विविध पहलुओं को समझने की। हम पुरानी जैव विविधता को फिर से पुनःस्थापित करना होगा। पर्यावरणविद संदीप मनराल हिमालयी इलाकों को जल संकट की इस समस्या से निकालने के लिए आइये हम साथ एक शुरुवात करते हैं हिमालय की स्प्रिंग्स जैवविविधता के विविध पहलुओं को समझने की। यह जैविक सम्पूर्णता का महोत्सव है। हिमालय की आबादी पानी की जरूरतों के लिए प्राकृतिक स्रोतों जैसे गाड़-गदेरे, नौले-धारे आदि पर निर्भर है। जैव विविधता के लगातार कम होने से जल संकट गहराता जा रहा है। डॉ. शम्भू नौटियाल का कहना हैं की यह जैविक सम्पूर्णता का महोत्सव है। हिमालयी नदियों को सैंकड़ों स्रोतों से पानी प्राप्त होता है। एक प्रकार के नदियों को मुख्य रूप से स्रोतों से ही पानी मिलता है, लेकिन स्रोतों के सूखने से नदियों का प्रवाह प्रभावित हो चुका है । जैसे जैसे जैव विविधता कम होती जा रही है, जलस्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं।

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आइये हम साथ एक शुरुवात करते हैं हिमालय की स्प्रिंग्स जैवविविधता के विविध पहलुओं को समझने की। यह जैविक सम्पूर्णता का महोत्सव है। वर्तमान समय में जैव विविधता से समृद्ध हिमालय की सुंदरता और शांति मानवीय हस्तक्षेप से दांव पर है। ख़तरे की घंटी बज चुकी है, जलवायु परिवर्तन के कारण 50 प्रतिशत से ज्यादा जल धाराएं सूख चुकी है और जो बची है उनमें भी सीमित जल ही बचा है। अगर हम अभी भी नहीं सुधरें तो वो दिन दूर नहीं जब गंगा यमुना जैसी सतत वाहिनी नदिया को बनाने वाली जलधाराएं सूख जाएगी और तब स्थिति कितनी भयावह होगी ये आप कल्पना कर सकते हैं। हमारे वेदों  के पारम्परिक जल विज्ञान पर आधारित परम्परागत जल सरंक्षण पद्धति व सामुदायिक भागीदारी को ज्यादा जागरूक करके पारम्परिक जल सरंक्षण पर ध्यान देना होगा। अब समय आ चुका हैं हिमालय के लिए एक ठोस नीति बनानी होगी और पर्यटकों पर पर्यावरण शुल्क भी लगाने के साथ साथ प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना होगा तभी थोड़ा बहुत हम अपने बच्चों को  साफ़ सुधरा भविष्य  दे सकते हैं। आज पूरा विश्व जिस संकट की आशंका से चिंतित है उसने हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दी है। प्रकृति का क्रोध प्रत्यक्ष रूप से हमें विश्व के विभिन्न भागों मै साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में साल २०३१ तक सिर्फ ४०% लोगों को ही पीने का जल उपलब्ध हो पायेगा।

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