खतरें में गंगा का अस्तित्व, तेजी से पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर। 87 सालों में 1.7 किमी पीछे खिसका..
ग्लेशियरों के पिघलने की वजह को लेकर वैज्ञानिकों के भले अलग-अलग मत हों किन्तु भारत का दूसरा सबसे बड़ा और गंगा को जीवन देने वाला गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है। ग्लोबल वार्मिंग, बदलता मौसम चक्र जैसी वजहों से ग्लेशियर का गोमुख वाला हिस्सा तेजी से पीछे खिसक रहा है। एक अध्ययन के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर कई मीटर प्रतिवर्ष पीछे खिसक रहा है। हालांकि इसकी चौड़ाई और मोटाई में पिघलने की रफ्तार तथा सहायक ग्लेशियरों की स्थिति को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक अध्ययन सामने नहीं आया है। लेकिन गंगोत्री ग्लेशियर चारों ओर से लगातार सिकुड़ रहा है। देश के हिमालयी राज्यों में 9597 ग्लेशियर हैं। वर्ष 1935 से 2022 के बीच 87 साल में देश के बड़े ग्लेशियरों में से एक उत्तराखंड का गंगोत्री ग्लेशियर 1.7 किमी पीछे खिसक गया है। कमोबेश यही हाल हिमालयी राज्यों में स्थित 9575 ग्लेशियरों में से ज्यादातर का है। यह खुलासा किया है देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने अपने ताजा शोध में।
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क्यों सिमट रहा ग्लेशियर?
1- ग्लेशियरों में पहले सिर्फ बर्फबारी होती थी लेकिन अब बारिश भी होने लगी।
2- पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ने के कारण भी पिघल रहे हैं ग्लेशियर।
3- संवेदनशील क्षेत्रों में इंसानी दखल बढ़ने के कारण भी हो रहा ग्लेशियर को नुकसान।
4- ग्लोबल वार्मिंग भी हिमालय के ग्लेशियर पिघलने की है मुख्य वजह।
ये हैं देश के कुछ प्रमुख बड़े ग्लेशियर
आर्कटिक और अंटार्कटिका क्षेत्र से बाहर दुनिया का सबसे बड़ा ग्लेशियर सियाचिन है। इसके अलावा गंगोत्री ग्लेशियर, जेमू ग्लेशियर, बड़ा सीकरी, पिंडारी, काफनी, सुंदरढूंगा, अलम, नामिक, मिलन, चौराबाड़ी, हरिपर्वत, पराक्विक, नूनकुन आदि देश के कुछ बड़े ग्लेशियर हैं।
ये हैं उत्तराखंड के प्रमुख ग्लेशियर
इनमें महत्वपूर्ण गंगोत्री ग्लेशियर समूह, ढोकरानी-बमक ग्लेशियर, चोराबाड़ी ग्लेशियर, द्रोणागिरी-बागनी ग्लेशियर, पिण्डारी ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर, कफनी, सुंदरढुंगा, सतोपंथ, भागीरथी खर्क, टिप्रा, जौन्धार, तिलकू और बंदरपुंछ ग्लेशियर हैं।
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जानें देशभर के ग्लेशियरों के बारे में
1- 37465 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले हैं ग्लेशियर।
2- 2735 ग्लेशियर हैं हिमाचल में।
3- 449 ग्लेशियर हैं सिक्किम में।
4- 162 ग्लेशियर हैं अरुणाचल में।
5- 1.6 सेल्सियस तापमान बढ़ा पिछली एक शताब्दी में।
6- 142 क्यूबिक किमी बर्फ ग्लेशियरों में है ।
7- 968 ग्लेशियर हैं सिर्फ उत्तराखंड में ।
8- 618 फीसदी ग्लेशियर हैं जम्मू कश्मीर और लद्दाख में।
दिख रहा बारिश का नया पैटर्न
वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राकेश भ्रांबरी के मुताबिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बारिश का नया पैटर्न दिख रहा है। पहले ग्लेशियर में सिर्फ बर्फबारी होती थी, लेकिन अब वहां बारिश होने लगी है जिससे बर्फ के पिघलने की रफ्तार बढ़ गई है। लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर हिमालय के ग्लेशियरों पर दिख रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी शोध पहले ही बता चुके हैं कि हिमालय के ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं। हिमालय को एशिया का वाटर हाउस कहा जाता है। वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से हिमालय पूरे विश्व में अलग स्थान रखता है।
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गंगा का अस्तित्व भी खतरे में
गंगा नदी करोड़ों हिंदुओं के लिए आस्था को केंद्र है। वह उनके लिए केवल नदी नहीं बल्कि एक संस्कृति है, जो सदियों से सदानीरा बहते हुए मनुष्यों के पापों को धोती आ रही है। गंगोत्री ग्लेशियर गंगा नदी का उद्गम स्थल है। हजारों श्रद्धालु गंगोत्री दर्शन के बाद प्रति वर्ष गोमुख पहुचते हैं।
ऐसे बनते हैं ग्लेशियर
वैज्ञानिक कहते हैं कि ग्लेशियर तब बनते हैं, जब लंबे समय तक हिम की परतें एक के ऊपर एक जमा हो जाती हैं। हिम की यह परतें कई सौ फुट मोटी हिमनदों का रूप ले लेती हैं। गंगोत्री ग्लेशियर भी ऐसे ही बना होगा। ग्लेशियर हैं तो नदियां हैं, नदियां हैं तो जल, जंगल, और मानव सभ्यता और जीवन है। लेकिन सचाई फिलहाल यही है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हिमालय के ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं। ऐसे में पूरे विश्व के इनके संरक्षण के दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।
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