उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों को भूकंप दे रहा चेतावनी..
अफगानिस्तान में बुधवार को आए भूकंप को इससे जुड़े दुनिया के अन्य हिस्सों में किसी बड़े भूंकप की चेतावनी समझा जाना चाहिए। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों के मुताबिक, हिंदुकुश पर्वत से नार्थ ईस्ट तक का हिमालयी क्षेत्र भूकंप के प्रति अत्यंत संवेदनशील है, लेकिन भूंकप जैसे खतरों से निपटने के लिए इन राज्यों में कारगर नीतियां नहीं, जो चिंताजनक है। खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में भूकंपरोधी तकनीक के बिना बन रहे बहुमंजिला भवन खतरे का असर कई गुना बढ़ा सकते हैं।
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उत्तराखंड भी भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील जोन
हिमालयी राज्यों और उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में भूकंप को लेकर वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं। हालांकि तमाम प्रयासों के बावजूद वैज्ञानिक भूंकपों का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे हैं। वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नरेश कुमार के मुताबिक, जमीन के नीचे लगातार हलचल चलती रहती है। उत्तराखंड भी इस हलचल के लिहाज से काफी संवेदनशील जोन में है। अफगानिस्तान में बीते जून माह में ही भूंकप के कई छोटे झटके आ चुके हैं। इस माह अभी तक जम्मू कश्मीर, लेह लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, असम, उत्तराखंड, ईस्ट खासी हिल्स मेघालय से लेकर यूपी के सहारनपुर तक भूंकप के दर्जनों छोटे-बड़े झटके आ चुके हैं।
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उत्तराखंड में ही 6 से 8 साल के बीच एक बड़ा भूंकप दर्ज
छोटे-छोटे भूकंप भूगर्भ की असीम ऊष्मा को समय-समय पर रिलीज तो कर रहे हैं। साथ ही ये एक बड़े भूकंप की चेतावनी भी दे रहे हैं। खासकर हिमालयन बेल्ट में यूरेशियन और भारतीय प्लेटों में टकराहट एवं उससे होने वाले तनाव से महसूस किए जाने वाले भूकंप के अलावा हर साल हजारों ऐसे भूकंप भी आ रहे हैं, जिन्हें सिर्फ मशीनें दर्ज कर पा रही हैं। उत्तराखंड में ही छह से आठ साल के बीच एक बड़ा भूंकप दर्ज हो रहा है। राहत की बात ये है कि उनकी क्षमता 6.5 मेग्नीट्यूड से ऊपर नहीं रही। 1991 में उत्तरकाशी, 1999 में चमोली और 2017 में रुद्रप्रयाग में बड़े भूंकप आए, जिसमें व्यापक जनहानि हुई। वैज्ञानिकों के अनुसार कांगड़ा (1905) और बिहार-नेपाल (1934) के भूंकपों के बाद इस क्षेत्र में 8.0 से अधिक तीव्रता का भूंकप नहीं आया है।
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